तो क्या सिस्टम सड़ चुका है...? बड़ा प्रश्न
क्या जंतर-मंतर से कोई निकलेगा मंत्र
यौन उत्पीड़न से बचने का...?
(त्रिलोकीनाथ)
क्योंकि वकील दिनेश के संपर्क में इस प्रकार की महिलाएं हैं जो अश्लीलता की अराजकता को अपना पेशा समझती है और वकील को शायद अपनी रोजी-रोटी और परिवार पालने के लिए इसकी आदत पड़ गई है | सच बात तो यह भी है कि मैं भी डरा और सहमा हुआ हूं| एक पत्रकार ,एक समाजसेवी के नाते और इस डर और निराशा को मैंने सिटी स्टार होटल के भारतीय जनता पार्टी के 2 विधायकों और जिलाध्यक्ष के सामने उठाया भी, जिसे जिलाध्यक्ष भाजपा ने यह कहकर खारिज कर दिया कि जब अखबार लिखता है तब हम सोचते हैं कि कहीं कोई समस्या है... लेकिन अब मैं अब मेरा डर खत्म हो गया है क्योंकि सिस्टम ही सड़ा हुआ है और इसे प्रमाणित किया है भारत में ओलंपिक पदक लाने वाली महिला खिलाड़ियों ने जब जंतर मंतर पर धरना देकर यौन उत्पीड़न पर सुनवाई ना होने की आवाज उठाई |ऐसी महिलाओं को मैं सलाम करता हूं जो इस देश को निर्भयता का वरदान देती हैं|
दैनिक अखबार जनसत्ता में प्रकाशित समाचार अंश को देखना चाहिए
सच बात है यह भी एक खेल है यौन उत्पीड़न का राष्ट्रीय खेल, इसमें हमें शर्म आनी चाहिए या फिर डूब मरना चाहिए या फिर इसे दबाने के लिए राष्ट्रीय गौरव की ताकत से उसे नष्ट करने का काम होना चाहिए....? बेहतर तो यह होना चाहिए कि अगर भारत का गौरव उठाने वाले तमाम महिला खिलाड़ी और पुरुष खिलाड़ी किसी गंभीर अपराध पर उंगली भी उठाते हैं तो तत्काल उसका निराकरण होना चाहिए| और इस राम राज्य की सरकार में अगर यह नहीं हो पाया है तो यह लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला भारतीय इतिहास का बड़ा चेहरा होगा ,इसमें कोई शक नहीं .....|
तो समझ लेते हैं कि हुआ क्या था और इसका शहडोल में किस प्रकार का चेहरा है... जब भारत के खेल जगत के शीर्ष खिलाड़ी जिन्होंने सोने चांदी पदक भारत सरकार को ला कर दिए हैं और वह थक गए हैं कि खेल जगत में शीर्ष पद पर बैठे हुए अध्यक्ष तक योन भ्रष्टाचार अश्लीलता की तमाम हदें पार कर गए हैं और उनकी शिकायतें इस रामराज्य में कहीं नहीं सुनी जा रही हैं तब उन्होंने उसी
लोकतंत्र की गली जंतर मंतर का सहारा लिया और महात्मा गांधी के सबसे बड़े हथियार अनशन को अपना हथियार बनाया पहले, तो प्रशासन ने उन्हें नजरअंदाज करने का काम किया |
किंतु बाद में जब भारत की महिलाएं चेतावनी दे डाली कि वे सब कुछ पर्दाफाश कर देंगे, तब हिमाचल प्रदेश के ठंडे क्षेत्र में रहने वाले खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को होश आया और भाग कर दिल्ली आए ताकि इन महिलाओं को चुप करा सकें........|
संयोग से महिला आबादी को आधा लोकतांत्रिक हक दिलाने वाली विपक्ष की नेता प्रियंका गांधी ने भी इस पर अपनी टिप्पणी कर दी की महिलाओं की आवाज को सुना जाना चाहिए|
बहराल अपने तरह के रामराज्य चलाने वाले वर्तमान सत्ता निश्चित तौर पर इन महिलाओं को न्याय के नाम पर अब आश्वासन के झुनझुना से पार दबाव में आकर कोई निर्णय लिया होगा| बताते चलें भारत की पहली उड़न परी खिलाड़ी पीटी उषा ने भी आश्वासन दिया है कि महिला खिलाड़ियों के साथ न्याय होगा\
शर्मसार कर देने वाली इस लोकतांत्रिक धरना आंदोलन में महिला और पुरुष खिलाड़ियों के साथ प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को तब सामने लाया गया| जब सब खिलाड़ी एकमत होकर अपनी बात कहने का साहस कर पाए| निश्चित तौर पर अब न्याय हो सकता है किंतु दूर अंचल शहडोल जैसे क्षेत्रों में प्रताड़ना की कार्यवाही या झूठे मुकदमों को गढ़ने और रचने की कार्यवाही या उस पर पुलिस से मिलीभगत कर उन्हें चालान पुट अप कर देना कोर्ट में अपमानित कराने वाले धाराओं को लगा देना आम बात हो गई है ...क्योंकि सिस्टम सड़ चुका है और इस सड़े हुए सिस्टम में कोई कोई अधिकारी होता है जो सिस्टम को समझ पाता है और वह लोकतंत्र को बचाने की दिशा में कुछ करने का साहस जुटा पाता है|
इसके बावजूद भी यह औरगंभीर हो जाता है कि जब उच्च अधिकारी कहीं मोनू डांस करते हैं और वह वायरल होता है तब ऐसा लगता है कि एक सड़ा हुआ सिस्टम का प्रतीक इस पर डांस कर रहा है... बजाय अपनी स्वयं को पारदर्शी आंतरिक भ्रष्टाचार को खत्म करने की और पर्दाफाश करने पर यदि सिस्टम डांस कर रहा होता है तो यह लोकतंत्र के लिए एक अपमान भी है और खतरा भी कि कोई भी व्यक्ति किसी भी षड्यंत्र में 376 के बलात्कार प्रकरण में, लड़की की छेड़खानी के प्रकरण, में चोरी के प्रकरण में, गांजा के प्रकरण में आराम से फंसा कर उसे जेल भेजा जा सकता है....? तू क्या इससे बचने का कोई रास्ता है अथवा गुलामी और लाचारकी आदिवासी क्षेत्र की वह भयानक व्यवस्था बन जाएगी ...? (जारी भाग 2)
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