मामला केवल आदिवासी कि 17 लाख की सूदखोरी का
तो नौरोजाबाद उमरिया जिला आदिवासी विशेष क्षेत्र नहीं है...?
वैसे मध्य प्रदेश के 89 आदिवासी विकासखंड भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत विशेष आदिवासी क्षेत्र घोषित किए गए हैं किंतु आदिवासी विशेष संभाग शहडोल के पाली विकासखंड क्षेत्र के अंतर्गत नरोजाबाद थाने का निवासी केवल आदिवासी शायद इसके अंतर्गत लाभार्थी नहीं हो सकता अगर शहडोल कलेक्टर
बंदना वैद्य की बातों को समझा जाए तो सहज समझ आता है की जितनी भी सूदखोरी के प्रकरण बिना लाइसेंस के सूदखोर मनमानी ब्याज पर धंधा कर रहे थे उन पर कार्यवाही करके आदिवासियों को सूदखोरी के जाल से मुक्त कराया जाएगा किंतु उमरिया जिले के कलेक्टर ने अभी तक इस प्रकार का कोई बयान जारी नहीं किया है और यह भी नहीं बताया है की नरोजाबाद थाना आदिवासी विकासखंड का हिस्सा है अथवा नहीं.....
या फिर वर्ष 1996 में पंचायत विस्तार अधिनियम के अंतर्गत उस क्षेत्र के रहने वाले आदिवासियों को पेसा एक्ट का लाभ मिलेगा या नहीं ......?
यह अलग बात है कि कानून 89 विकास खंडों के लिए 1996 में लागू किया गया था इसके बाद भी नरोजाबाद थाने का रहने वाला केवल सिंह आदिवासी, जो कि राज्य के वर्तमान आदिवासी मंत्री मीना सिंह का रिश्तेदार है इसके साथ ही पड़ोसी गांव छाता के रहने वाले पूर्व सांसद और पूर्व कैबिनेट आदिवासी मंत्री ज्ञान सिंह का भी रिश्तेदार है। बावजूद इसके उसे कैसे और क्यों तथा किसके संरक्षण में किसी उमेश सिंह ने उसका 17लाख रुपए सूदखोरी के जाल में उसके बैंक से निकाल कर लूट लिया।
और उससे भी ज्यादा यह खतरनाक दृश्य है कि थाना नरोजाबाद में जब अपने साथ हुई सूदखोरी की शिकायत केवल सिंह ने किया तो कहीं ना कहीं यह बात स्थापित करने का काम किया गया की केवल सिंह आदिवासी स्वयं ब्याज में पैसा चलाता था और उमेश सिंह ने उससे पैसा लिया था ..?
ऐसा नहीं है कि अपनी जीवन भर की एसईसीएल की नौकरी से की गई कमाई का जीपीएफ आदि 1700000 रुपए केवल सिंह को सिर्फ सभी 2002 में कोई ₹30000 उमेश सिंह सूदखोर से उधार लेने के कारण उसे खोना पड़ा।
यह भी नहीं कि केवल सिंह ने अपनी आदिवासी स्तर की सहज सहज समझ से जैसा कि हाल में महामहिम राष्ट्रपति द्रोपती मुर्मू ने जेल में रहने वाले
निरपराध कैदियों के लिए तमाम उच्च न्यायिक अधिकारियों के समक्ष उन्हें समझाने का प्रयास किया था और उसका लाभ भी निश्चित रूप से हजारों कैदियों को मिलेगा।
उसी प्रकार की भाषा में हर संभव प्रयास पुलिस अथवा प्रशासन के सामने केवल सिंह स्वयं के लूट जाने और डर और भय के बावजूद भी मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग तक अपनी बात 3 वर्ष पहले पहुंचाया किंतु जिस तरह नरोजाबाद थाना अथवा उमरिया जिला का प्रशासन उसे गोल गोल घुमाता रहा उसी तरह अनुसूचित जनजाति आयोग मात्र एक बड़े थाने की तरह उसे सिर्फ थकाने का काम किया और पुलिस प्रशासन की रिपोर्ट पर उसके 1700000 न सिर्फ डूब जाने दिया बल्कि स्वयं केवल सिंह आदिवासी को ही कहीं नहीं कहीं सूदखोर साबित करने पर अपनी मौन सहमति दे दी।
ऐसे में यह बात बार-बार खड़ी होती है कि वैसे तो पेसा लागू हो गया था जब तत्कालीन शहडोल जिला पेशा एक्ट वर्ष 1996 में ही संविधान की पांचवी अनुसूची में अधिसूचित हो गया था, फिर अगर उसे भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किसी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया और 5 दिसंबर 2021 को जब टंट्या भील महोत्सव इंदौर में इसे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पुनः लागू किया गया। तब भी लागू करने की घोषणा की।
अंततः 15 नवंबर 2022 को चाहे गुजरात के चुनाव के मद्देनजर ही आदिवासी वोटरों को उनका हितकारी संरक्षण दिखाने के दृष्टिकोण से शहडोल
की लालपुर की जमीन में खड़े होकर भारत की राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के सामने जब बिरसा मुंडा जनजाति गौरव दिवस मनाया जा रहा था तब भी पेसा एक्ट को लागू करने का तीसरी बार प्रयास किया गया। इन तीनों प्रयासों के बावजूद भी और अब शहडोल कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य के वीडियो को यदि आदिवासी समझ से समझा जाए तो भी यह समझ में आने का भ्रम पैदा होता है की उमरिया जिले के नरोजाबाद विधानसभा क्षेत्र जो की राज्य की आदिवासी मंत्री का विधानसभा क्षेत्र है उस नरोजाबाद थाना के अंतर्गत केवल सिंह आदिवासी को क्या पेशा एक्ट का लाभ मिलेगा...?
क्योंकि उमरिया जिले की पुलिस और प्रशासन ने
शायद मिलकर मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग को भी यह समझाने का काम किया है कि केवल सिंह आदिवासी 1700000 रुपए डुबोने के बाद भी वह सूदखोरी का शिकार नहीं हुआ है..?, बल्कि वह स्वयं एक सूदखोर हैं।
ऐसे में अब सिर्फ उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली की सीजेआई ही जब शहडोल आकर सूदखोरी और पेशा एक्ट को समझाने का प्रयास करेंगे तभी शायद उमरिया जिले के कलेक्टर यदि संविधान सम्मत होगा तो केवल सिंह को उसकी बदतर और लुटी-पिटी बुढ़ापे की बीमार जिंदगी से निजात दिलाने के लिए सूदखोर उमेश सिंह से उसे राहत दिला पाएंगे...?
अन्यथा लगता तो नहीं कि मध्य प्रदेश के कैबिनेट आदिवासी मंत्री के क्षेत्र का केवल आदिवासी पेसा एक्ट का हकदार है क्योंकि क्षेत्र के आदिवासी और अन्य लोग उसके जीवन भर की कमाई गोल गोल घूमते हुए लूट रहे हैं फिलहाल प्रकरण ठंडे बस्ते में जो है या नस्ती वध अगर नहीं कर दिया गया हो तो...? शायद पेसा एक्ट की जमीनी धरातल में लागू होने की यही कड़वी सच्चाई है।
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