रविवार, 11 दिसंबर 2022

क्या राष्ट्रपति की अपील को पुलिस ने सुना.. (त्रिलोकीनाथ)

मामला श्रीकृष्ण पांडे की हत्या और केवल आदिवासी के लुट जाने का..


क्या राष्ट्रपति की भाषा को पुलिस-प्रशासन ने समझा
...?

महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपती मुर्मू आम आदमी की भाषा बोलती हैं और उनकी भाषा में इसलिए कड़वी सच्चाई होती है उन्होंने न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका की उपस्थिति में कड़वा सच बहुत ही आसान भाषा में समझाने का काम किया है।


अब इसे शहडोल की पुलिस प्रशासन नहीं समझना चाहता तो उसका उत्तर भी महामहिम ने अपने भाषण के अंतिम पैरा में दे दिया है कि "यह मैं आप लोगों के ऊपर छोडती हूं।"
वैसे तो कई मामले हैं जैसे नरोजाबाद के केवल आदिवासी का मामला जिसमें 17लाख रुपए सूदखोर उमेश सिंह थाना नरोजाबाद के संरक्षण में अंततः डकार गया। अभी तक तो फिलहाल कुछ होता नहीं दिख रहा है। एक मामला और जो बहुत मेरे निकट में है उसका जिक्र जरूर करना चाहूंगा क्योंकि उसमें पुलिस अधीक्षक जान भी गए थे यह प्रकरण पूरी तरह से झूठा है और बनावटी है किंतु पुलिस अधिकारी की यह लाचारगी कहे या मजबूरी कहें अथवा उच्च अधिकारी के आदेश का पालन कर्तव्यशीलता कहें किंतु अंततः झूठा, दो सौ पर्सेंट झूठा प्रकरण थाना कोतवाली शहडोल दर्ज कर देता है। पूरी निष्ठा और कर्तव्य शीलता के साथ उसके पालन के लिए भ्रष्टाचार का दवाब भी उस जांचकर्ता अधिकारी के ऊपर शायद उतना ही रहता है जितना कि एडीजीपी का दबाव पुलिस अधीक्षक के ऊपर रहता है।
शायद महामहिम राष्ट्रपति इन्हीं दबावों को उजागर करती हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए...। लोग खुलेआम अपराध करके बाहर घूमते रहते हैं इसी थाना कोतवाली में झूठे प्रकरण दर्ज कराने वाले माहिर लोग कैसे वर्ष 2016 में श्री कृष्ण पांडे की जहर देकर की गई हत्या को अंततः सूचना के अधिकार में पुलिस विभाग उसे आत्महत्या बताकर नस्ती बंद कर देता है।
यह बात महामहिम राष्ट्रपति की भाषण का अंश होता है जिसने वह कहती हैं "कि लोग अपराध करके पूरे जीवन बाहर घूमते रहते हैं "और निरपराध लोग कैसे लोग जेल में अनावश्यक बंद रहते हैं।
क्योंकि कोतवाली मैं मनमाने तरीके से भ्रष्टाचार के दबाव में मनमानी धाराएं लगा देती हैं। यह जानबूझकर किया गया एक प्रकार का अपराध ही होता है किंतु यह अपराध संबंधित पुलिस अधिकारी या थाना प्रभारी के द्वारा किया जाता है इसलिए अपराध नहीं बल्कि कर्तव्य के रूप में उसे स्वीकार करते हुए उच्च अधिकारी उस पर पर्दा डालने का काम करते रहते हैं। इससे अपराधियों का एक और जहां मनोबल बढ़ता है वहीं पर भ्रष्टाचार पूर्ण व्यवस्था कोतवाली शहडोल की स्थाई व्यवस्था के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
और अपराध करने वाला अपराधी यह जान जाता है कि कोतवाली की भ्रष्टाचार की औकात कितनी है..? कोई जरूरी नहीं कि भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक प्रलोभन पर टिकी हो वह किसी अन्य प्रलोभन पर भी टिक सकती है.. किंतु जब तक चाहे नरोजाबाद के केवल आदिवासी के मामले इसकी जांच अथवा खासतौर से श्री कृष्ण पांडे की हत्या का मामला शुरुआत के जड़ से न देखी जाएगी कि कैसे कोई अपराधी श्री कृष्ण पांडे के विजय बैंक के अकाउंट से करीब ₹100000 अपने अकाउंट में ट्रांसफर करा लेता है और यदि श्रद्धा हत्याकांड नई दिल्ली के मामले में अपराधी आफताब के बैंक अकाउंट से फंड ट्रांसफर होने के सूत्र को दिल्ली की पुलिस खंगाल सकती है तो शहडोल की पुलिस अपराधी सूत्र को क्यों तलाश नहीं कर पाती...? आखिर हमारी भी पुलिस उतनी ही योग्य क्यों नहीं है जितनी दिल्ली की पुलिस योग्यता सिद्ध करती है और अंत फिर वकील और अपराधी मिलकर किसी हत्या को अंजाम होने और उसके बाद उसे संरक्षण देने के लिए पुलिस के साथ न सिर्फ इस मामले को आत्महत्या में बदलने का लंबा पीरियड लेते हैं बल्कि इस हत्या का पर्दाफाश ना हो जाए तो इसमें संलग्न तमाम लोगों को लगातार झूठी प्रकरणों में बनावटी प्रकरणों में फंसाने का भी काम करते हैं ।
ताकि हत्या का प्रकरण को पूरी तरह से आत्महत्या के रूप में परिवर्तित किया जा सके। तो अगर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपति मुर्मू अपने भारत के "ज्ञानी-गुणीं "लोगों से जेल में बंद निरपराध लोगों के लिए रिहाई की भीख मांगते हैं तो उसे पूरे सिस्टम को संदेश के रूप में क्यों नहीं देखना चाहिए।
कि आखिर यदि झूठे प्रकरणों को कोई व्यक्ति दर्ज कर रहा है और अनावश्यक प्रकरणों पर वकीलों पुलिस और अपराधी की मिलीभगत से मामले कोर्ट में तर्क के आधार पर डिसाइड हो रहे हैं या फिर गलत फैसले हो रहे हैं या यूं कहा जाए कि फर्जी प्रकरण  इस बुनियाद पर, इस प्रमाण के आधार पर बनाए जाते हैं कि जब जज फैसला करेगे तो उन्हें किस प्रकार के साक्ष्य की जरूरत पड़ेगी...., तो उसके कौन जवाबदेह होगा...?
क्योंकि जिस निकटतम प्रकरण को मैं देख पा रहा हूं उसमें एक व्यक्ति जिसके ऊपर हमला होता है न्यायालय उसी को दंडित करने का काम करती है इसका मतलब है कि जज भी गलत फैसला सिस्टम (यानी गढ़े गए तर्कपूर्ण झूठे बुनियाद पर) के दबाव में आकर कर रहे हैं शायद इन्हीं परिस्थितियों को ठीक करने के लिए महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार अपने कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका को एकमत होकर लोगों के हित में निर्णय लेने की अपील करती हैं।
उनका यह अर्धसत्य वास्तव में एक पूर्ण सत्य होता है किंतु सवाल यह है कि क्या शहडोल स्थित पुलिस प्रशासन चाहे वह जिले का प्रशासन हो अथवा जोन का क्या वह चिन्हित नौरोजाबाद क्षेत्र के केवल आदिवासी के मामले में अथवा शहडोल कोतवाली के श्री कृष्ण पांडे की हत्या के मामले में महामहिम राष्ट्रपति की अपील को समझ पा रहा है...? यह भी देखना होगा।

क्योंकि फिलहाल तो मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया लगता है जब तक की उच्च न्यायालय में हजारों रुपए खर्च करके कोई अपील करने की हैसियत नहीं रखता है और उसके लिए पक्षकार को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की भाषा में "अपना घर और द्वार बेचना पड़ सकता है" तो पक्षकार अपना घर द्वार ना बेंचा, इसके लिए पुलिस प्रशासन कितनी गंभीरता से इसे लेता है यह भी देखना होगा...?
अथवा पुलिस प्रशासन कि यह सोच इस आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल में क्या राष्ट्रपति पद पर पदस्थ महिला आदिवासी महामहिम श्रीमती  मुर्मू की भाषा को समझ पाने में योग्य हैं अथवा नहीं....? यह भी हम आगे देखेंगे।
फिलहाल महामहिम की भाषा में हम अधूरी बात कह कर लेख को विराम दे रहे हैं किंतु यह अंतिम विराम नहीं होगा क्योंकि जब तक राष्ट्रपति पद पर महामहिम द्रोपति मुर्मू जैसी आम आदिवासी महिला बैठी हैं तब तक हमें यह कहने का और समझाने का नैतिक अधिकार रखना ही चाहिए चाहे कार्यपालिका ,न्यायपालिका अथवा विधायिका सुने या ना सुने...?




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