मामला शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय में भर्ती भ्रष्टाचार का..
तो, कुलगुरू
चोर है...?
--------------------- (त्रिलोकी नाथ )-------------------
18 दिसम्बर को क्योंकि मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई और शिक्षा विभाग के मंत्री और कई मंत्री, संत्री भी आने थे इसलिए तैयारी उच्च स्तर की थी किंतु अचानक कुछ घंटे पहले उनका कार्यक्रम निरस्त हो गया इसलिए पंडित शंभूनाथ शुक्ला के जयंती के अवसर पर शायद दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय में हो रहा था। किंतु जब वहां गए तो जो बेरुखी व नीरस्ता अपेक्षित सी उससे ज्यादा मरी हुई नीरसता देखी गई ।क्योंकि विश्वविद्यालय प्रबंधन पर आरोप यह भी देखे गए की इन्होंने जिला प्रशासन को भी नहीं पूछा था। इसलिए प्रशासनिक अमला भी सून्य बटा सन्नाटा की तरह वहां उपस्थित दिखा।
फिर भी दंभ इस कदर हावी था अपने पूरे कार्यक्रम में पंडित शंभूनाथ शुक्ला की जयंती पर एक शब्द भी किसी भी अतिथि ने व्यक्त नहीं किए। उन्हें मालूम था की कोई फर्क नहीं पड़ता तो अपन को निराशा भी ज्यादा मलीन होती दिखी। उनकी जयंती पर कुछ तो सिखाया जा ही सकता था, उन्होंने कुछ तो किया रहा होगा जिसके कारण यह विश्वविद्यालय उनके नाम पर पड़ा और उससे भी ज्यादा बदतर शर्मनाक समापन हुआ क्योंकि राष्ट्रगान के लिए विश्वविद्यालय में एक भी सांस्कृतिक तौर पर किसी छात्र को तैयार नहीं किया गया था इसलिए डीजे के जरिए राष्ट्रगान का बाजा बजाया गया ।हां, जब समाप्त हुआ तब दौड़ कर किसी नारी शक्ति को याद आया कि भारत माता की जय बोलना है तो वह तेजी से आ माइक में आकर उसकी औपचारिकता पूरी की। यही विश्वविद्यालय की पारदर्शिता छलक कर सामने आई।
अब बात दृष्टांत की जिसमें इसी तरह गवर्नर के आगमन के संबंध में जो फैसले पहले कर लिए गए थे उसी पर प्रबंधन कायम दिखा ।तो एक फैसला यह भी था कि पत्रकारों को राज्यपाल और मंत्री तथा संत्री से दूर रखा जाए ।वैसे भी जिस प्रकार का प्रबंधन यहां पर सत्ता में काबिज है वह पत्रकारों को अपना मित्र नहीं मानता है और जब खतरा यह हो की तमाम भ्रष्टाचार पर कहीं कोई चर्चा ना हो जाए तो हिटलर शाही कडाई से लागू थी। सो बाद प्रोग्राम , पत्रकारों को 1 किलोमीटर दूर खाने में जगह दे दी गई थी। पत्रकारों ने उसका विरोध किया और नाराजगी व्यक्त की किंतु इतना डर कुलपति को इसलिए कि कार्यक्रम ना खराब हो जाए बाकी भोपाल से शहडोल तक सब प्रबंधन ठीक कर लिए जाने की संभावना थी। इसीलिए वे डंके की चोट में कह रहे थे कि जिन्हें आपत्ति है वह हाईकोर्ट जाएं विश्वविद्यालय के भर्ती के भ्रष्टाचार के संबंध में।
लेकिन शायद बात बनी नहीं, प्रबंधन में कहीं कोई कमी रह गई शो अब अपर सचिव ने एक नया पत्र जारी कर दिया जिसमें स्पष्ट कह दिया है कि
पंडित शंभू नाथ विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार / अनियमितता संबंधी शिकायत विभाग में दिनांक 01.12.2022 को प्राप्त हुई है। म०प्र० विधानसभा से विश्वविद्यालय की भर्ती प्रक्रिया संबंधी शिकायत पर प्रश्न क्रमांक 374, 998, ध्यानाकर्षण सूचना एवं अविश्वास प्रस्ताव में एक बिन्दु प्राप्त हुआ है। शिकायत में विज्ञापन के बिन्दु- 28 (interview in the ratio of 1:12 maximum from each category in the order of merit)
अनुसार कार्यवाही न करते हुए समस्त आवेदकों का साक्षात्कार लेकर चयन किया गया है। उक्ताशय का निर्णय कार्य परिषद बैठक दिनांक 06.10.2022 के बिन्दु क्रमांक-08 में लिया गया है किन्तु विज्ञापन की संशोधित सूचना जारी नहीं की गई है।
शिकायत में अपात्र आवेदकों को साक्षात्कार में बुलाते हुए चयन करना, merit आधार पर चयन न करना, चयनित आवेदकों की सूची प्रकाशित नही करना एवं अपने चहेतों को नियुक्ति देना सम्मिलित है।
-2/ विश्वविद्यालय की कार्य परिषद बैठक दिनांक 06.10.2022 एवं 08.11.2022 की कार्यवाही विवरण के संबंध में अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा, संभाग रीवा का पत्र संलग्न है। निर्देशानुसार प्रकरण पर नियमानुसार निर्णय हेतु कार्य परिषद के समक्ष समस्त शिकायती बिन्दुओं को रखते हुए निर्णय हेतु बैठक आयोजित की जाए तथा निर्णय से शीघ्र अवगत कराना सुनिश्चित करें ।
दिनांक 26.12-22 को लिखे गए इस कथित पत्र में यह बात तो साफ हो गई है कि भ्रष्टाचार पारदर्शी तरीके से किया गया था। अब सवाल यह है पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय मे जो लोग पूरी बेशर्मी के साथ पत्रकारों को संदेश दे रहे थे कि जिन्हें हाई कोर्ट जाना है वे स्वतंत्र हैं हमारा काम ठीक हुआ है ।क्या वे उसी बेशर्मी के साथ अपर सचिव को जवाब देंगे अथवा उनका प्रबंधन क्या इतना सक्षम है कि वह पत्रकारों को 1 किलोमीटर दूर अपने गिरोह से तटस्थ करके सपने को उच्च शिक्षा मंत्रालय के स्तर पर भी निपटाने का प्रबंधन करेंगे ...? फिलहाल तो शासन के पत्र से इतना उनका दुस्साहस नहीं होगा ,ऐसा समझना चाहिए। किंतु तमाम प्रकार के सांस्कृतिक, संस्कार, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर प्रवचन करने वाले हरिश्चंद्र लोग अब किस तरह है प्रबंधन करेंगे यह भी देखना होगा।
फिलहाल यह अर्ध सत्य ही विश्वविद्यालय का उसके जन्म काल से उसका पूर्ण सत्य रहा है जिसमें कुछ अध्यापक अध्ययन भी नहीं कराने आए और विश्वविद्यालय ने उनका पूर्ण भुगतान भी कर दिया .. सब नामी-गिरामी चर्चित चेहरे हैं और पूरी तरह से पारदर्शी भी रहे हैं इसलिए आश्चर्य नहीं होता कि कोई पत्र आना चाहिए था बल्कि इसका पालन कैसा होगा यह भी देखना होगा बहरहाल देखना होगा की दंभी विश्वविद्यालय प्रबंधन किस स्तर पर इस पारदर्शी भ्रष्टाचार पर अपनी पकड़ कायम रखता है। किंतु दुख इस बात का है कि अगर भ्रष्टाचार सिद्ध होता है तो कुलपति शब्द ही ठीक रहता विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार के लिए अब कहा जाएगा कि कुलगुरु चोर हैं..? बेहतर होता कुल पतियों को कुलगुरू संबोधन ना किया गया होता।
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