गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

लोकतंत्र ,भ्रष्टाचारियों का...

 मामला फर्जी जाति प्रमाण पत्र का

उपायुक्त ,आदिवासी विभाग यानी 

लोकतंत्र 
भ्रष्टाचार द्वारा, 
भ्रष्टाचार के लिए, 
भ्रष्टाचार का शासन 

--------------------------(त्रिलोकी नाथ )----------------

लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन है' अब्राहम लिंकन ने कहा है। वह संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने 4 मार्च, 1861 से 15 अप्रैल, 1865 तक राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने लोकतंत्र के लिए अपनी परिभाषा परिभाषित की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन है। आमतौर पर ऐसा समझा जाता है कि दुनिया में भारत का लोकतंत्र सबसे मजबूत लोकतंत्र है किंतु 21वीं सदी के जिस भारत में हम रह रहे हैं विशेषकर आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल संभाग की बात करें तो यहां के आदिवासी विभाग का मुखिया उप आयुक्त आदिवासी विभाग होता है वर्तमान में उषा अजय सिंह नाम की अधिकारी उपायुक्त हैं वैसे तो इनके लिए यह उपलब्धि ही है की इनके कार्यकाल में भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपती मुर्मू का शहडोल में जनजाति गौरव नाम का एक बड़ा कार्यक्रम भी पिछले 15 नवंबर को हुआ किंतु अब जो शिकायतें उषा अजय सिंह के नाम पर उछल उछल कर आ रही हैं उससे लोकतंत्र की परिभाषा पांचवी अनुसूची क्षेत्र में कुछ इस प्रकार बदल दी गई है यह  कह सकते हैं की उपायुक्त आदिवासी विभाग शहडोल का मतलब है भ्रष्टाचार का लोकतंत्र भ्रष्टाचारियों के द्वारा और भ्रष्टाचार के लिए शासन है ।


थोड़ा सा वक्त लगेगा समझने में क्योंकि जिन लोगों ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में प्रमाणित पाई गई उषा अजय सिंह की शिकायत मुख्यमंत्री को की है उन पर खुद ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं और उपायुक्त उषा अजय सिंह प्रमाणित भ्रष्टाचार की न्यायालय द्वारा दंडित अधिकारी हैं किंतु जिस प्रकार से वह कई मामलों में भ्रष्टाचार की जांच कर्ता अधिकारी बनाई जाती हैं तो यह भ्रष्टाचार का शासन कहलाया जा सकता है।

 तो कुल मिलाकर के जिस आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल से भारत की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति जनजातीय समाज के गौरव दिवस पर शामिल होती हैं वहां का लोकतंत्र विशेषकर को देखने वाले विभाग का लोकतंत्र भ्रष्टाचारियों द्वारा, भ्रष्टाचार के लिए, भ्रष्टाचार का शासन करता है... ऐसा समझा जाना चाहिए ।

अब अगर यह नहीं समझ में आया है तो हम इसी विभाग के एक अनुभवी और सिद्ध पुरुष कर्मचारी के के सिंह का पत्र जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को लिखा गया है उसको पढ़ाना चाहेंगे। के के सिंह का कहना है

महोदय

मैं प्रार्थी कृष्ण कुमार सिंह जनजातीय कार्य विभाग का सेवा निवृत्त कर्मचारी हूं। 
डॉ.उषा अजय सिंह, संभागीय उपायुक्त, जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति विकास शहडोल संभाग शहडोल में पदस्थ हैं। पूर्व में श्रीमती उषा अजय सिंह के विरुद्ध श्रीमान प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश म०प्र० भोपाल के न्यायालय में सत्र प्रकरण क्रमांक 544/2013 जे0एल0 मिश्रा बनाम श्रीमती उषा अजय सिंह के विरूद्ध अपराध धारा 466, 467, 468,471, 420 भा.द.वि. का विधारण चला विचारण उपरान्त न्यायालय की सम्पूर्ण कार्यवाही ही साक्षियों के कथन लेने के बाद दिनांक 29.12.2017 को निर्णय पारित किया गया। अभियुक्त उषा अजय सिंह को
अपराध धारा 468, 420 एवं 471 में अपराध प्रमाणित पाया गया जिसमें अपराध धारा 468 भा.द.वि. मेंदो वर्ष का सश्रम कारावास एवं 2000/- (रुपये दो हजार मात्र) अर्थदण्ड एवं अपराध धारा 420 में एक वर्ष का सश्रम कारावास व एक हजार रुपये का अर्थदण्ड एवं अपराध धारा 471 भा.द.वि. में एक वर्ष का सश्रम कारावास एवं एक हजार रुपये अर्थदण्ड से दण्डित किया गया है।
उक्त दण्डादेश के उपरांत डॉ. उषा अजय सिंह को जनजातीय कार्य विभाग द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई बल्कि उन्हें पृथक-पृथक स्थानों पर निर्णय पारित होने के उपरांत वरिष्ठ पद पर पदस्थापना की जा रही है। वर्तमान समय में संभागीय उपायुक्त जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति विकास शहडोल एवं जबलपुर संभाग का प्रभार दिया गया है। 

सामान्य प्रशासन विभाग म०प्र० भोपाल के ज्ञाप क्र. / सी-6-3/77/3/1 भोपाल, दिनांक15.09.77 एवं क्रमांक सी-6-2/80/3/1 भोपाल, दिनांक 06.10.80 एवं क्रमांक सी-2-98-03-1 भोपाल, दिनांक 26.05.1998 में दिये गये निर्देशानुसार इस प्रकार की कार्यवाही करने के लिये इस बात का कोई प्रतिबन्ध नहीं है कि उस शासकीय सेवक ने अपनी दोष सिद्धि के विरूद्ध अपील दायर कर दी है। इसलिये शास्ति अंधिरोपित नहीं की जा सकती" के उपरान्त भी लगातार राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कर लगातार शासकीय सेवा कर रही हैं। नियमानुसार अगर किसी भी व्यक्ति / शासकीय सेवक को न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाकर दण्डित किया गया तो उसके विरुद्ध विभाग को यह अधिकारिता होती है कि तत्काल उसे सेवा से पृथक किया जावे। किन्तु श्रीमती उषा अजय सिंह के विरूद्ध जनजातीय कार्य विभाग द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई है। श्रीमती उषा अजय सिंह के विरूद्ध पारित निर्णय दिनांक 29.12.2017 के परिपालन में उन्हें उनके पद से सेवा समाप्त किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।
और अंत में उन्होंने शिवराज सिंह से विनती की है कि
 न्यायालय श्रीमान् अतिरिक्त सत्र न्यायालय के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भोपाल के सत्र प्रकरण क्रमांक 544 / 2013 जे०एल० मिश्रा बनाम श्रीमती उषा अजय सिंह में पारित निर्णय दिनांक 24.12.2017 के पालन में श्रीमती उषा अजय सिंह संभागीय उपायुक्त जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति विकास संभाग शहडोल एवं संभाग जबलपुर के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही की जाकर तत्काल उनके पद से पदच्युत (बर्खास्त) किया जाये।
तो यह जानना भी बहुत जरूरी है कि जिस न्यायाधीश के न्याय का हवाला देकर विभिन्न आरोपों को झेल रहे केके सिंह ने अपनी बात कही है वस्तुतः न्यायाधीश ने क्या कहा था

न्यायालय प्रथम अतिरसत्र न्यायालय के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश,भोपाल-वाचस्पति
मिश्र ने( वर्तमान में शहडोल उपायुक्त उषा अजय सिंह के मामले को लेकर) प्रकरणजे.एल. मिश्रा 
प्रधान संपादक योग गर्जना, भोपाल बनाम
श्रीमती उषा अजय सिंह पति श्री अजय सिंह,
आयु 52 वर्ष, निवासी-34, करनल कार्नरम,
एयरपोर्ट रोड, भोपाल मे निर्णय दिनाक 29 दिसम्बर/2017 को पारित आदेश में कहा था22
यह भी उल्लेखनीय है कि आरोपिया द्वारा पूर्व में प्रस्तुत अपराध के संदर्भ में
संज्ञान लिए जाने की स्टेज पर दं.प्र.सं. की धारा 482 के अंतर्गत संस्थित याचिका नं.
(एमसीआरसी नं. 13305/11 दिनांक 22.04.13) भी निरस्त की गई है। जहां तक रिट
पेटीशन नं. 12297/09 के अंतर्गत दिनांक 25.11.09 को पारित अंतरिम स्टे का प्रश्न
है उक्त याचिका के अंतर्गत केवल आरोपिया की सेवा के संबंध में अंतरिम स्टे जारी
किया गया था अथवा किमिनल प्रासीक्यूसन के विरुद्ध कोई स्टे जारी किया जाना
नहीं पाया जाता है। बचाव पक्ष द्वारा उपर्युक्त तथा का खण्डन नहीं किया गया है।
23. उक्त विवेचन एवं विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष यह है कि आरोपिया
के विरुद्ध भादवि की धाराओं 463, 420 एवं 471 के अंतर्गत अभियोजन अपना
मामला संदेह के परे स्थापित करने में सफल रहता है।
(24)
जहां तक मा.द.वि. की धारा 467 का प्रश्न है अभिलेख पर यह नहीं आया है।
कि आरोपियों (उषा अजय सिंह )ने उक्त दस्तावजी की स्वयं कोई कूटरचना की हो। अतः आरोपिया को भा.दं.वि. की धारा 467 के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
25
परिणामतः यह न्यायालय आरोपिया श्रीमती उषा अजय सिंह पत्नि श्री अजय
सिंह को भा.दं.वि. की धारा 466, 467, 468, 471, 420 के स्थान पर मात्र धारा 468,
420 एवं 471 भा.द.वि. के अंतर्गत दोषी पाती है।

 28 
 सजा के प्रश्न पर उभय पक्ष को सुना गया । बचाव पक्ष से यह तर्क किया है
कि आरोपिया का यह प्रथम अपराध है। अतः आरोपिया को न्यूनतम कारावास की सजा अधिरोपित किए जाने का निवेदन किया है। इसके विपरीत विद्वान अपर लोक
अभियोजक ने अधिकतम दण्ड अधिरोपित किए जाने की मांग की गई है। सजा के प्रश्न पर विचार किया गया। अपराध की प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में आरोपिया को भा.द.वि की धारा 468 के अंतर्गत /02 वर्ष के सश्रम कारावास एवं
2000/-रू के अर्थदंड एवं भा.द.वि की धारा 420 के अंतर्गत 01 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 1000/- के अर्थदंड एवं भा.द.वि की धारा 471 के अंतर्गत 01 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 1000/- के अर्थदंड से दंडित किये जाने से न्याय के उददेश्य की पूर्ति हो जाती है।
..
30. उक्तानुसार दोषी श्रीमती उथा अजय सिंह पत्नि श्री अजय सिंह को भादवि की धारा 468 के अंतर्गत 02 वर्ष के सश्रम कारावास एवं 2000/ रु.के पद एवं भादवि की धारा 420 के अंतर्गत 01 पर्दाग कारावास ए 1000/- के अर्थदंड एवं भा.द.वि की धारा 471 के अंतर्गत 01 वर्ष का सश्रम का  एवं 1000/- से दंडादिष्ट किया जाता है। अर्थदण्ड अदा किये जाने में यतिक्रम की दशा में प्रत्येक अपराध के समझ दोषी को छ-छ: माह का अतिरिक्त
समक-पृथक भुगताया जाये।
सभी धाराओं में कारावास की सजायें एक साथ भुगताई जाय।
--------------------------------(जारी भाग -2)---------------




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