शनिवार, 31 दिसंबर 2022

गांधी की वसीयत किसके पास..? ( त्रिलोकी नाथ )

 यात्रा के मामले में गांधी का पुनर्जन्म...


2022
से 2023 तक 

का एक सुखांत यात्रा

नफरत से मोहब्बत की यात्रा

 --------------( त्रिलोकी नाथ )------------------

2022 की अगर सबसे बड़ी घटना के रूप में कोई चीज दर्ज की जाएगी तो शायद वह किसी सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में किसी बड़े राजनीतिक दल की नेता के रूप में राहुल गांधी की पदयात्रा नफरत के खिलाफ मोहब्बत के रूप में दर्ज की जानी चाहिए. क्योंकि जिस प्रकार से 1947 के बाद भारत की स्वतंत्रता के बाद दलित उत्थान के लिए भारत ने आरक्षण का प्रयोग किया कहते हैं कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने भी इसका विरोध किया था क्योंकि यह दूरियों को बढ़ाने वाला था. किंतु सिर्फ 10 वर्ष के लिए प्रयोग के रूप में किया गया.अब यह कार्य इस लोकतंत्र की वोट बैंक की राजनीतिक मजबूरी बन गया और अब भस्मासुर बन कर के वोट बैंक के स्वार्थी राजनीतिक तुष्टि का कारण बन रहा है.

 इससे दलित उत्थान के दायरे में कुछ नए सामंतवादी पैदा हो गए और उन्होंने अपने ही दुनिया में इसे लगातार बढ़ाते रहने के अनेकानेक कारण होने लगे .नतीजतन सर्वांगीण दलित उत्थान तो हुआ नहीं बल्कि आरक्षण के नए नए वेरिएंट विकसित होने लगे .आर्थिक आरक्षण, पिछड़ा वर्ग का आरक्षण, फिर जातिगत आरक्षण, मराठा ,जाट आरक्षण अनेक प्रकार के आरक्षण राजनीतिक वोट बैंक के बड़े हथियार के रूप में प्रयोग किए जाने लगे .यह अलग बात है जैसा कि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक व्यक्ति राजभर कहते हैं कि बाकी जातियों का क्या हुआ..? क्या उन्हें लाभ मिला, सिर्फ यादव जाति को ही पिछड़ा वर्ग का लाभ मिला.

 यही परिस्थिति जो हालात स्वतंत्रता के बाद आरक्षण के प्रयोग में आज राजनीतिक मजबूरी बनकर वोट बैंक का सबसे बड़ा धंधा बन गई है. जबकि स्पष्ट है कि इससे सर्वांगीण विकास नहीं हुआ है .अनुसूचित जाति और जनजाति में ही कई ऐसी जातियां हैं जो आज भी उतनी ही गरीब और उससे भी ज्यादा मानसिक रूप से भिखारी बन गई हैं और उसकी याने उस ऐसे नागरिकों की भिखारी होने की प्रवृत्ति राजनीतिक दलों के वोट डालने यानी वोट का धंधा करवाने और उसके जरिए सत्ता में बने रहने का बड़ा राजनीतिक हथियार प्रमाणित हो गई है .इन नागरिकों को वास्तव में बहुत विशेष लाभ नहीं हुआ ,कुछ परिवार जरूर उठ गए हैं वह भी अपनी जाति में उन गरीबों से उतनी ही दूरियां बनाकर रखते हैं जितनी दूरियां स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस दलित आरक्षण का कारण बनी थी.

 दूसरे नागरिकों के साथ यही आरक्षण का कड़वा सच है अन्यथा जिसे एक बार आरक्षण मिल गया उसे दोबारा आरक्षण देने पर भी इस छोटी सी नीति पर भी विचार नहीं हुआ, क्योंकि राजनीतिक हवस जानती है आरक्षण से निकला सामंतवादी परिवार उसका सबसे बड़ा हथियार है. इसलिए आरक्षण भस्मासुर भारतीय नागरिकता में पैदा प्रमाणित हो रहा है .

यह बीसवीं सदी की दुखांत वायरस रहा है तो 21वीं सदी में राजनीतिज्ञों के सत्ता में बने रहने के लिए नए वायरस का निर्माण किया गया. राजनीत की प्रयोगशाला में जानबूझकर इस वायरस को पैदा किया गया इसका नाम था नफरत का धंधा और यह धंधा लोकतंत्र में कानून बनाकर तो किया नहीं जा सकता इसलिए इसे इवेंट के जरिए लगातार प्रयोगशाला में प्रयोग किया जाता रहा है .

 


हालांकि इस धंधे को आजादी के पहले से ही प्रयोग किया जाता रहा है जो
भारत में तालिबानी संस्कृति के रूप में राजस्थान की धरती में इस नारे के साथ अपने खौफनाक चेहरे के रूप में देखा गया की नवी से गुस्ताखी यानी सर धड़ से अलग और सामान्य भारतीय परिवार में जहां की गाली देना भी कलेवा का कारण माना जाता था, यानी बारात किसी परिवार में आती है जिसे गारी कहते हैं एक आवश्यक परंपरा होती थी यह वह मीठी परंपरा होती थी जिसका परिणीति जिसे गारी दिया जाता था वह ढेर सारे मेवा और कुछ पैसे गाली देने वाले को देता था .इस महान परंपरा वाले देश में किसी व्यक्ति के खिलाफ बोलना एक भयानक य सूचना या फिर उसके बारे में अफवाह फैलाने पर उसकी हत्या कर देना एक भयानक सच्चाई के रूप में गौरव का कारण बना है .और यह पागलपन इस्लाम धर्म के प्रवर्तक अनुयायियों ने नफरत के कारोबार से सीखा. जो भारत में पिछले 8 साल में धीरे- धीरे पनपा . नफरत से डर और डर  से हत्या, नफरत के धंधे की परिणीति होती है और यह धंधा आधुनिक राजनीति की सबसे बड़ा हथियार है.

 पहले भी कांग्रेस पार्टी पर इस धंधे को धीरे-धीरे चलाने का कारोबार का आरोप लगता रहा है तब की विपक्षी राजनीतिक दल इसे महसूस करती रही किंतु वर्तमान का विपक्षी कांग्रेस इससे ज्यादा महसूस किया और समझ गया कि यह एक बड़ा कारोबार नफरत के इस कारोबार को समझने और जानने की चाहत उस युवा कांग्रेस नेता के समझ में आया जो जिस पर यह आरोप लगते रहे कि वह सोने की चम्मच लेकर पैदा हुआ था. यानी राहुल गांधी को इस बात के लिए सलाम करना चाहिए कि उन्होंने यह दृढ़ निश्चय किया कि वह दुनिया की सबसे बड़ी लंबी दूरी की राजनीतिक यात्रा नफरत के खिलाफ मोहब्बत के रूप में किया.

 


शायद राहुल गांधी को महसूस हो गया रहा होगा लोकतंत्र का मीडिया जब हाईजैक हो जाता है सत्ता के संरक्षण में प्रदेश में गांधी का प्रयोग करना ही चाहिए सिर्फ गांधीगिरी ही इस देश को बचा सकती है इसमें कोई शक नहीं कि ढेर सारी तुष्टीकरण की नीतियों के कारण गलतियां हुई है उससे जिनको पुष्टि करने का काम किया गया.  उनका विकास तो समता पूर्ण तरीके से नहीं हुआ किंतु समस्याएं अवश्य खड़ी हो गई और यही समस्याएं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और उसकी विचारधारा के लिए बड़े हथियार के रूप में विकसित हो गई. यह महसूस किया जाने लगा कि बहुसंख्यक समाज जिसे हिंदू कहा जाता है उसके अंदर हिंदुत्व का जज्बा प्रकट करने के लिए तमाम प्रकार के नफरतें को भाषा के प्रचलन के रूप में स्पष्ट किया.

 

शहडोल की धरती में यह छोटा सा प्रमाण पत्र है कि बिना खनिज विभाग के अनुबंध के ,  या कलेक्टर शहडोल के अनुबंध के रिलायंस इंडस्ट्रीज सीबीएम गैस निकालने का काम धड़ल्ले से कर रही है और उसके संबंधित अधिकारियों से यदि पूछा जाता है तो कोई जवाबदेही तय नहीं करते. याने खाते सरकार का हैं और बजाते अंबानी का. आदिवासी क्षेत्र की कड़वी सच्चाई है, तो पूरे देश में भी यही हो रहा है और यदि इसके बारे में चर्चा भी की जाती है तो उन्हें डराया जाता है उन ग्रामीणों को डराया जाता है धमकाया जाता है उनके खिलाफ पुलिस प्रकरण पंजीबद्ध करा करके उन्हें भयभीत रखा जाता है ताकि वे रिलायंस के खिलाफ बोलने की कल्पना भी न करें.

 यही हाल पूरे देश में है जैसा कि राहुल गांधी आरोप  लगाते हैं पूंजीपतियों के लिए उनके इशारे पर यह सरकार काम करती है तो क्या डर और नफरत का कारोबार अवैध कार्यों के संरक्षण , आरक्षण से ज्यादा खतरनाक बनने वाला है जिसे खत्म करना धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा .जैसे कि आरक्षण को खत्म करना अब राजनीतिक दलों की औकात के बाहर की बात हो गई है, आरक्षण को सही ढंग से भी लागू करना राजनीतिज्ञों की हैसियत नहीं रह गई है. वह सिर्फ इसमें से कुछ सामंतवादी निकालकर अपना मतलब सिद्ध कर सकते हैं. तो इस दौर में नफरत और डर का धंधा 21वीं सदी में खतरनाक अनजान तक जाएगा. यह तो भविष्य बताएगा

लेकिन अगर बीसवीं सदी में महात्मा गांधी ने देश की आजादी को बनाए रखने के प्रयास में कोई पद यात्रा किए थे और तब की गुलामी नमक कानून को तोड़ा था अब क्या राहुल गांधी ऐसे किसी कानून को तोड़ने का साहस कर सकते हैं..? अथवा  बलिदान देने को तत्पर हैं यह एक गंभीर प्रश्न है ...? हालांकि कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि कि राहुल गांधी की सुरक्षा में कई बार चूक हुई है तो इसे सुरक्षा के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा खंडन भी किया गया है बजाय भारतीय जनता पार्टी के द्वारा खंडन करने के.

 और यह कोई नई बात नहीं है किंतु क्या बलिदान की दिशा में एक और गांधी 2023 में पदयात्रा कि किसी खतरनाक अंजाम को आहूत कर रहा है यह भी देखना होगा और होना भी क्यों नहीं चाहिए अगर देश को बचाना है तो बलिदानी तो बढ़ना ही पड़ेगा. तब चाहे खुद की स्वतंत्र भारत में लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी अथवा राजीव गांधी की हत्या की गई हो.... यह सब भी तो बलिदान ही थे .

तो नफरत के खिलाफ मोहब्बत का आंदोलन राहुल गांधी की पदयात्रा किस अंजाम पर खत्म होगी यह कहना जल्दबाजी है किंतु एक इतनी सफलता पाते हैं यह भी एक प्रयोगशाला में प्रयोग होने वाली पदयात्रा के अलावा कुछ नहीं है .अगर इसमें राहुल गांधी सफल होते हैं तो यह देश के लिए बड़ा वरदान है किंतु इसके आयाम यदि विदेश से संचालित होते हैं कोई अज्ञात शक्ति नफरत के धंधे को विस्तारित कर रही है, कोई पूंजीपति समाज इसको नियंत्रित कर रहा है तो बड़ी बात नहीं है कि पदयात्रा किसी खतरनाक अंजाम की परिणीति में खत्म हो जाए.... परिणाम चाहे कुछ भी हो इतना तय है कि 2022 में एक और गांधी ने लोकतंत्र के रास्तों को तय करने का काम किया है, जो 20 मी सदी में किसी गांधी ने देश की आजादी के पड़ाव तक उसे चलाए रखा. तो इतना है की महात्मा गांधी की सच्चे उत्तराधिकारी की वसीयत फिलहाल राहुल गांधी ने अपने पास रखने का दावा किया है... जो प्राकृतिक रूप से सही भी है.. यह अलग बात है कि इसका अंजाम राम राज्य के हे राममें खत्म होता है अथवा नहीं...? तो अंजाम चाहे जो भी हो 2022 से चलकर 2023 तक नफरत से मोहब्बत की यात्रा कहां जाएगी यह सब हमको देखने को मिलेगा ...हम तो सिर्फ शुभकामना ही प्रकट कर सकते हैं.

 

 

 

 

गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

हीरा बा का स्वर्गवास

हीरा बा  का स्वर्गवास 



माँ एक व्यक्ति के जीवन की पहली मित्र और गुरु होती है जिसे खोने का दुःख निःसंदेह संसार का सबसे बड़ा दुःख है


पूरा देश दुःख की इस घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी जी व उनके परिवार के साथ खड़ा है, करोड़ों लोगों की प्रार्थना आपके साथ हैं

 30 DEC 2022 8:54AM by PIB Delhi

केन्द्रीय मंत्री  अमित शाह ने प्रधानमंत्री  मोदी जी की माताजी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। 


ट्वीट्स में  शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी जी की पूज्य माताजी हीरा बा के स्वर्गवास की सूचना अत्यंत दुःखद है। माँ एक व्यक्ति के जीवन की पहली मित्र और गुरु होती है जिसे खोने का दुःख निःसंदेह संसार का सबसे बड़ा दुःख है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि हीरा बा ने जिन संघर्षों का सामना करते हुए परिवार का पालन पोषण किया वो सभी के लिए एक आदर्श है। उनका त्यागपूर्ण तपस्वी जीवन सदा हमारी स्मृति में रहेगा।पूरा देश दुःख की इस घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी जी व उनके परिवार के साथ खड़ा है। करोड़ों लोगों की प्रार्थना आपके साथ हैं। ॐ शांति


मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

अवैध खनन पर होगी जांच

पारदर्शी अवैध खनन से ग्रामवासी परेशान

 जिला पंचायत अध्यक्ष के क्षेत्र मे सदस्य व 

ग्राम वासियों ने लगाई गुहार

ब्योहारी क्षेत्र में माइनिंग माफिया अपने  आसमानी उड़ान पर है क्योंकि शहडोल का माइनिंग अधिकारी प्रमोद शर्मा पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। फिर भी लीक होकर कुछ समस्याएं जिला स्तर तक पहुंच जाती हैं अब व्यवहारी क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य पुष्पेंद्र पटेल और रसपुर ग्राम पंचायत की जनता उनसे इत्तेफाक नहीं रखती उन्हें भ्रम हो गया था कि उनके क्षेत्र में संचालित रेत खदान मे अवैध गतिविधियां और स्वीकृत रेत खदान क्षेत्र से कई गुना ज्यादा रेत की गैर कानूनी खुदाई होने के कारण और परिवहन होने के कारण कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं । जिस कारण वह लंबे समय से व्यवहारी एसडीएम और तहसीलदार के संज्ञान में धरना आंदोलन कर खनिज अधिकारी के संरक्षण में हो रहे पारदर्शी अवैध उत्खनन की कर्तव्यनिष्ठा पर वहां के प्रशासन को परेशान कर रहे थे ।


ग्राम वासियों का कहना है की खनिज क्षेत्र में अवैध कार्य प्रणाली के चलते पूरी सड़कें प्रभावित हो गई हैं और जानवरों की भी क्षति हुई है और तो और ग्राम वासियों का दुस्साहस इस स्तर पर आ गया कि उन्होंने अपनी परेशानी को लेकर जिला प्रशासन स्तर पर भी शिकायत की है की अवैध खनन माफिया की कार्यप्रणाली की जांच की जाए और किसानों तथा ग्राम वासियों को राहत दी जाए।

 जिला पंचायत सदस्य पुष्पेंद्र पटेल के अनुसार कलेक्टर शहडोल ने उन्हें आश्वासन दिया है कि मौका स्थल पर जाकर खनिज विभाग का अमला स्थिति की जानकारी देगा किंतु जिला पंचायत सदस्य को इस बात की भी शिकायत है की अपने शांतिपूर्ण धरना आंदोलन पर पुलिस ने उनके विरोध में कार्यवाही की है ।गौरतलब है की जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती मिश्रा इसी क्षेत्र पपौंध की निवासी हैं और खनिज का मामला उनके विकासखंड से संबंधित है। क्षेत्र के विधायक शरद कोल नियमित रूप से संचालित अवैध खनन पर हमेशा मुखर रहे हैं। देखना होगा कि ग्राम वासियों के समक्ष पारदर्शी रूप से हो रहे गैरकानूनी रेत खनन और परिवहन को प्रमाणित करा पाने में खनिज विभाग और ग्रामवासी जांच के दौरान अपना कितना रंग बदलते हैं। क्योंकि अन्य क्षेत्रों में तो पेसा एक्ट लग जाने के कारण ग्राम वासियों के अधिकार अपने ग्राम क्षेत्र के संरक्षण के लिए प्रभावशाली तो हो गए हैं और बाकी जगह अवैध खनन में प्रबंधन भी ग्राम स्तर पर किया जाने लगा है किंतु व्यवहारी विकासखंड में पेसा एक्ट प्रभावित नहीं होने के कारण ग्राम वासियों को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।


विश्वविद्यालय की पारदर्शी भ्रष्टाचार पर नए निर्देश

मामला शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय में भर्ती भ्रष्टाचार का..

तो, कुलगुरू 

चोर है...? 


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18 दिसम्बर को क्योंकि मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई और शिक्षा विभाग के मंत्री  और कई मंत्री, संत्री भी आने थे इसलिए तैयारी उच्च स्तर की थी किंतु अचानक कुछ घंटे पहले उनका कार्यक्रम निरस्त हो गया इसलिए पंडित शंभूनाथ शुक्ला के जयंती के अवसर पर शायद दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय में हो रहा था। किंतु जब वहां गए तो जो बेरुखी व नीरस्ता अपेक्षित सी उससे ज्यादा मरी हुई नीरसता देखी गई ।क्योंकि विश्वविद्यालय प्रबंधन पर आरोप यह भी देखे गए की इन्होंने जिला प्रशासन को भी नहीं पूछा था। इसलिए प्रशासनिक अमला भी सून्य बटा सन्नाटा की तरह वहां उपस्थित दिखा। 

फिर भी दंभ इस कदर हावी था अपने पूरे कार्यक्रम में पंडित शंभूनाथ शुक्ला की जयंती पर एक शब्द भी किसी भी अतिथि ने व्यक्त नहीं किए। उन्हें मालूम था की कोई फर्क नहीं पड़ता तो अपन को निराशा भी ज्यादा मलीन होती दिखी। उनकी जयंती पर कुछ तो सिखाया जा ही सकता था, उन्होंने कुछ तो किया रहा होगा जिसके कारण यह विश्वविद्यालय उनके नाम पर पड़ा और उससे भी ज्यादा बदतर शर्मनाक समापन हुआ क्योंकि राष्ट्रगान के लिए विश्वविद्यालय में एक भी सांस्कृतिक तौर पर किसी छात्र को तैयार नहीं किया गया था इसलिए डीजे के जरिए राष्ट्रगान का बाजा बजाया गया ।हां, जब समाप्त हुआ तब दौड़ कर किसी नारी शक्ति को याद आया कि भारत माता की जय बोलना है तो वह तेजी से आ माइक में आकर उसकी औपचारिकता पूरी की। यही विश्वविद्यालय की पारदर्शिता छलक कर सामने आई।

अब बात दृष्टांत की जिसमें इसी तरह गवर्नर के आगमन के संबंध में जो फैसले पहले कर लिए गए थे उसी पर प्रबंधन कायम दिखा ।तो एक फैसला यह भी था कि पत्रकारों को राज्यपाल और मंत्री तथा संत्री से दूर रखा जाए ।वैसे भी जिस प्रकार का प्रबंधन यहां पर सत्ता में काबिज है वह पत्रकारों को अपना मित्र नहीं मानता है और जब खतरा यह हो की तमाम भ्रष्टाचार पर कहीं कोई चर्चा ना हो जाए तो हिटलर शाही कडाई  से लागू थी। सो बाद प्रोग्राम , पत्रकारों को 1 किलोमीटर दूर खाने में जगह दे दी गई थी। पत्रकारों ने उसका विरोध किया और नाराजगी व्यक्त की किंतु इतना डर कुलपति को इसलिए कि कार्यक्रम ना खराब हो जाए बाकी भोपाल से शहडोल तक सब प्रबंधन ठीक कर लिए जाने की संभावना थी। इसीलिए वे डंके की चोट में कह रहे थे कि जिन्हें आपत्ति है वह हाईकोर्ट जाएं विश्वविद्यालय के भर्ती के भ्रष्टाचार के संबंध में।

 लेकिन शायद बात बनी नहीं, प्रबंधन में कहीं कोई कमी रह गई शो अब अपर सचिव ने एक नया पत्र जारी कर दिया जिसमें स्पष्ट कह दिया है कि

पंडित शंभू नाथ  विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार / अनियमितता संबंधी शिकायत विभाग में दिनांक 01.12.2022 को प्राप्त हुई है। म०प्र० विधानसभा से विश्वविद्यालय की भर्ती प्रक्रिया संबंधी शिकायत पर प्रश्न क्रमांक 374, 998, ध्यानाकर्षण सूचना एवं अविश्वास प्रस्ताव में एक बिन्दु प्राप्त हुआ है। शिकायत में विज्ञापन के बिन्दु- 28 (interview in the ratio of 1:12 maximum from each category in the order of merit)


अनुसार कार्यवाही न करते हुए समस्त आवेदकों का साक्षात्कार लेकर चयन किया गया है। उक्ताशय का निर्णय कार्य परिषद बैठक दिनांक 06.10.2022 के बिन्दु क्रमांक-08 में लिया गया है किन्तु विज्ञापन की संशोधित सूचना जारी नहीं की गई है।

 शिकायत में अपात्र आवेदकों को साक्षात्कार में बुलाते हुए चयन करना, merit आधार पर चयन न करना, चयनित आवेदकों की सूची प्रकाशित नही करना एवं अपने चहेतों को नियुक्ति देना सम्मिलित है।

-2/ विश्वविद्यालय की कार्य परिषद बैठक दिनांक 06.10.2022 एवं 08.11.2022 की कार्यवाही विवरण के संबंध में अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा, संभाग रीवा का पत्र संलग्न है। निर्देशानुसार प्रकरण पर नियमानुसार निर्णय हेतु कार्य परिषद के समक्ष समस्त शिकायती बिन्दुओं को रखते हुए निर्णय हेतु बैठक आयोजित की जाए तथा निर्णय से शीघ्र अवगत कराना सुनिश्चित करें ।

दिनांक 26.12-22 को लिखे गए इस कथित पत्र में यह बात तो साफ हो गई है कि भ्रष्टाचार पारदर्शी तरीके से किया गया था। अब सवाल यह है पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय मे जो लोग पूरी बेशर्मी के साथ पत्रकारों को संदेश दे रहे थे कि जिन्हें हाई कोर्ट जाना है वे स्वतंत्र हैं हमारा काम ठीक हुआ है ।क्या वे उसी बेशर्मी के साथ अपर सचिव को जवाब देंगे अथवा उनका प्रबंधन क्या इतना सक्षम है कि वह पत्रकारों को 1 किलोमीटर दूर अपने गिरोह से तटस्थ करके सपने को उच्च शिक्षा मंत्रालय के स्तर पर भी निपटाने का प्रबंधन करेंगे  ...? फिलहाल तो शासन के पत्र से इतना उनका दुस्साहस नहीं होगा ,ऐसा समझना चाहिए। किंतु तमाम प्रकार के सांस्कृतिक, संस्कार, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर प्रवचन करने वाले हरिश्चंद्र लोग अब किस तरह है प्रबंधन करेंगे यह भी देखना होगा।

 फिलहाल यह अर्ध सत्य ही विश्वविद्यालय का उसके जन्म काल से उसका पूर्ण सत्य रहा है जिसमें कुछ अध्यापक अध्ययन भी नहीं कराने आए और विश्वविद्यालय ने उनका पूर्ण भुगतान भी कर दिया .. सब नामी-गिरामी चर्चित चेहरे हैं और पूरी तरह से पारदर्शी भी रहे हैं इसलिए आश्चर्य नहीं होता कि  कोई पत्र आना चाहिए था बल्कि इसका पालन कैसा होगा यह भी देखना होगा बहरहाल देखना होगा की दंभी विश्वविद्यालय प्रबंधन किस स्तर पर इस पारदर्शी भ्रष्टाचार पर अपनी पकड़ कायम रखता है। किंतु दुख इस बात का है कि अगर भ्रष्टाचार सिद्ध होता है तो कुलपति शब्द ही ठीक रहता विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार के लिए अब कहा जाएगा कि कुलगुरु चोर हैं..? बेहतर होता कुल पतियों को कुलगुरू संबोधन ना किया गया होता।


सोमवार, 26 दिसंबर 2022

कैलेंडर पर आया शहडोल का पुरातत्व

 


2023 मे जिले के पर्यटन 

पर आधारित कैलेंडर 

शहडोल ।  कलेक्टर श्रीमती वैद्य के मार्गदर्शन पर जिले के  दर्शनीय स्थल पुरातात्विक, स्थलों, प्रागैतिहासिक, स्थानीय कला आदि से ओत-प्रोत  कैलेंडर 2023 के लिए विशेष रूप से बनाया गया है। इस कैलेंडर में जिले की महत्वपूर्ण सामग्री का सजीव चित्रण किया गया है। कैलेंडर में उपयोग की गई सामग्री एवं आकंल्पन तथा चित्रांकन का संग्रहण पत्रकार  रवि शुक्ला का सहयोग उल्लेखनीय है। कमिश्नर राजीव शर्मा और कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य ने इसका विमोचन किया। विशेष रूप से आकर्षक चित्र इस प्रकार से रहे।

































रविवार, 25 दिसंबर 2022

भाजपा सरकार की संवेदनशीलता अनुकरणीय

 मानवता के लिए अच्छी पहल

कैंसर पीड़ितों के लिए

हरियाणा ने दिया मॉडल 

हंला कि वर्तमान में सत्ता का चरित्र संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार कर चुका है सत्ता चाहे किसी की भी हो इंसानियत की औकात वर्तमान राजनीतिज्ञों के लिए सिर्फ एक खेल की तरह है। यही कारण है बाणसागर शहडोल में नहर में डूबे हुए परिवारों के साथ अन्याय आज भी होता नहीं दिख रहा है। अगर हंगामा उस स्तर का होता जैसे कि औरंगाबाद में शहडोल के मजदूर जब ट्रेन एक्सीडेंट में मारे गए थे तो शहडोल के ही खनिज न्यास फंड से उनके मरने पर राहत राशि दी गई थी ताकि मामले को दबाया जा सके ।संवेदनशीलता की मापदंड बस इसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है किंतु इसी दौर में हरियाणा की भाजपा सरकार ने चाहे दुर्घटना बस ही यह बड़ा कार्य किया हो  तक कि भाजपा सरकारों के रिकॉर्ड में मेरी नजर में संवेदनशीलता की लिए हाल के संवेदनहीन व्यवस्था में इससे बड़ा काम किसी सरकार ने नहीं किया है।

 तो पहले जान ले कि हरियाणा सरकार ने कैंसर


पीड़ितों के तीन और चार स्तर के मरीजों के लिए नियमित ढाई हजार रुपए देने का निर्णय लिया है यह सरकार के अंदर संवेदना के ठहराव को प्रदर्शित करता है कि सरकारें अपने नागरिकों के लिए ऐसा भी कर सकते हैं ।यह पूरे भारतवर्ष के लिए मॉडल भी होना चाहिए। आखिरी जिन व्यक्तियों के मरने की और तिल तिल मरने की तिथि तय हो गई हो उन्हें हर दिन मरना ही होता है तो उसमें जीवन की संभावना 1 दिन भी ढाई हजार रुपए में एक खुशी भी आप दे पाए तो यह प्रजातंत्र के लिए पवित्र कार्य है ।

हम जीवित लोगों के लिए सिर्फ राजनीति खेल खेलते हैं यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश सरकार में करीब 20 साल मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह ने कभी जब शहडोल के केलमनिया गांव में आए थे तो एक विधवा महिला को गरीबी रेखा का लाभ नहीं मिलने पर आश्चर्य प्रकट किया था कि उसका नाम गरीबी रेखा सूची में नहीं है इसलिए उसको विधवा पेंशन नहीं मिलेगी ।

फिर इसमें क्या हुआ ना तो कोई बताने वाला है और ना ही कोई सुनने वाला। तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि जो विधवा हो गई है भला उससे बड़ा गरीब कौन होगा ।इसी मुद्दे पर ही आदिवासी विभाग के एक कर्मचारी अंसारी को सक्षम ज्ञान न होने के कारण उसे निलंबित कर दिया गया था बाद में यह तृतीय वर्ग पर का कर्मचारी इतना सक्षम हुआ कि वह सहायक आयुक्त भी बन गया और करोड़ों रुपए गैरकानूनी तरीके से निकाल भी लिया । जो हम प्रमाणित रुप से देखने को मिला।

 बरहाल इसी विचारधारा के लोगों ने जिस प्रकार का भारत रचा है फिर उसमें दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के भारत में 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज देने की व्यवस्था ताकि वह जिंदा रहे, अपने आप में बड़ा विरोधाभास है। कि हम किस भारत का निर्माण कर रहे हैं। इसी तरह मोरबी गुजरात में पुल ढह जाने से मारे गए करीब डेढ़ सौ लोगों के परिवार के लिए किस प्रकार की क्षतिपूर्ति दी जा रही है ..?

अखिर आम प्रजा को यह हक  क्यों नहीं होना चाहिए इसी तरह बाणसागर में सरकारी लापरवाही के कारण नहर में डूब कर मरने वाले करीब 55- 56 लोगों की हत्या के लिए किस प्रकार का    न्याय आप दिए हैं..?

 यह प्रजा की आशा रहती है कि हमारी सरकार क्या संवेदनशील है अब कारण चाहे कुछ भी हो आपकी लापरवाही से यदि जहरीली शराब से शराबबंदी वाले गुजरात में हो अथवा बिहार में हो लोग मरे हैं तो छतिपूर्ति के हकदार हैं क्योंकि उनका परिवार इस दुर्घटना में शामिल नहीं था ऐसा मानना चाहिए इसी तरह अनेक अनेक कारण हो सकते हैं जब दुर्घटनाएं मृत्यु को लक्ष्य लेकर सफलता से नंगा नाच करती हैं और अगर ऐसी दुर्घटनाओं के पीछे शासन और प्रशासन के लोगों की लापरवाही सुनिश्चित होती है तो उसमें न्याय के साथ क्षतिपूर्ति भी सुनिश्चित होना चाहिए ।

 किंतु ऐसा होता नहीं दिखता ।शायद यही कारण है कि इस दौर में भी अगर तिल तिल मरने वाले कैंसर पीड़ितों के लिए हरियाणा की भाजपा सरकार नियमित ढाई हजार रुपए देने का काम करती है तो सरकारों के मानवीय संवेदना जिंदा है चाहे उसके राजनीतिक कारण ही क्यों ना रहे हो ऐसी राजनीति अच्छी होती है और इसका अनुसरण इस पूरे देश में मॉडल के रूप में होना चाहिए। अगर राजनीतिज्ञों में मानवता जिंदा है तो यह उसका प्रमाण पत्र मानना चाहिए।

 वर्ष 2022 के अंतिम दिनों में यह हरियाणा सरकार का नीतिगत निर्णय निश्चय ही अनुकरणीय है और वह उसके लिए साधुवाद के पात्र हैं कि उन्होंने अपने को जीवित राजनेता कहने का हक नहीं छोड़ा है।


"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...