मानवता के लिए अच्छी पहल
कैंसर पीड़ितों के लिए
हरियाणा ने दिया मॉडल
हंला कि वर्तमान में सत्ता का चरित्र संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार कर चुका है सत्ता चाहे किसी की भी हो इंसानियत की औकात वर्तमान राजनीतिज्ञों के लिए सिर्फ एक खेल की तरह है। यही कारण है बाणसागर शहडोल में नहर में डूबे हुए परिवारों के साथ अन्याय आज भी होता नहीं दिख रहा है। अगर हंगामा उस स्तर का होता जैसे कि औरंगाबाद में शहडोल के मजदूर जब ट्रेन एक्सीडेंट में मारे गए थे तो शहडोल के ही खनिज न्यास फंड से उनके मरने पर राहत राशि दी गई थी ताकि मामले को दबाया जा सके ।संवेदनशीलता की मापदंड बस इसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है किंतु इसी दौर में हरियाणा की भाजपा सरकार ने चाहे दुर्घटना बस ही यह बड़ा कार्य किया हो तक कि भाजपा सरकारों के रिकॉर्ड में मेरी नजर में संवेदनशीलता की लिए हाल के संवेदनहीन व्यवस्था में इससे बड़ा काम किसी सरकार ने नहीं किया है।
तो पहले जान ले कि हरियाणा सरकार ने कैंसर
पीड़ितों के तीन और चार स्तर के मरीजों के लिए नियमित ढाई हजार रुपए देने का निर्णय लिया है यह सरकार के अंदर संवेदना के ठहराव को प्रदर्शित करता है कि सरकारें अपने नागरिकों के लिए ऐसा भी कर सकते हैं ।यह पूरे भारतवर्ष के लिए मॉडल भी होना चाहिए। आखिरी जिन व्यक्तियों के मरने की और तिल तिल मरने की तिथि तय हो गई हो उन्हें हर दिन मरना ही होता है तो उसमें जीवन की संभावना 1 दिन भी ढाई हजार रुपए में एक खुशी भी आप दे पाए तो यह प्रजातंत्र के लिए पवित्र कार्य है ।
हम जीवित लोगों के लिए सिर्फ राजनीति खेल खेलते हैं यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश सरकार में करीब 20 साल मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह ने कभी जब शहडोल के केलमनिया गांव में आए थे तो एक विधवा महिला को गरीबी रेखा का लाभ नहीं मिलने पर आश्चर्य प्रकट किया था कि उसका नाम गरीबी रेखा सूची में नहीं है इसलिए उसको विधवा पेंशन नहीं मिलेगी ।
फिर इसमें क्या हुआ ना तो कोई बताने वाला है और ना ही कोई सुनने वाला। तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि जो विधवा हो गई है भला उससे बड़ा गरीब कौन होगा ।इसी मुद्दे पर ही आदिवासी विभाग के एक कर्मचारी अंसारी को सक्षम ज्ञान न होने के कारण उसे निलंबित कर दिया गया था बाद में यह तृतीय वर्ग पर का कर्मचारी इतना सक्षम हुआ कि वह सहायक आयुक्त भी बन गया और करोड़ों रुपए गैरकानूनी तरीके से निकाल भी लिया । जो हम प्रमाणित रुप से देखने को मिला।
बरहाल इसी विचारधारा के लोगों ने जिस प्रकार का भारत रचा है फिर उसमें दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के भारत में 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज देने की व्यवस्था ताकि वह जिंदा रहे, अपने आप में बड़ा विरोधाभास है। कि हम किस भारत का निर्माण कर रहे हैं। इसी तरह मोरबी गुजरात में पुल ढह जाने से मारे गए करीब डेढ़ सौ लोगों के परिवार के लिए किस प्रकार की क्षतिपूर्ति दी जा रही है ..?
अखिर आम प्रजा को यह हक क्यों नहीं होना चाहिए इसी तरह बाणसागर में सरकारी लापरवाही के कारण नहर में डूब कर मरने वाले करीब 55- 56 लोगों की हत्या के लिए किस प्रकार का न्याय आप दिए हैं..?
यह प्रजा की आशा रहती है कि हमारी सरकार क्या संवेदनशील है अब कारण चाहे कुछ भी हो आपकी लापरवाही से यदि जहरीली शराब से शराबबंदी वाले गुजरात में हो अथवा बिहार में हो लोग मरे हैं तो छतिपूर्ति के हकदार हैं क्योंकि उनका परिवार इस दुर्घटना में शामिल नहीं था ऐसा मानना चाहिए इसी तरह अनेक अनेक कारण हो सकते हैं जब दुर्घटनाएं मृत्यु को लक्ष्य लेकर सफलता से नंगा नाच करती हैं और अगर ऐसी दुर्घटनाओं के पीछे शासन और प्रशासन के लोगों की लापरवाही सुनिश्चित होती है तो उसमें न्याय के साथ क्षतिपूर्ति भी सुनिश्चित होना चाहिए ।
किंतु ऐसा होता नहीं दिखता ।शायद यही कारण है कि इस दौर में भी अगर तिल तिल मरने वाले कैंसर पीड़ितों के लिए हरियाणा की भाजपा सरकार नियमित ढाई हजार रुपए देने का काम करती है तो सरकारों के मानवीय संवेदना जिंदा है चाहे उसके राजनीतिक कारण ही क्यों ना रहे हो ऐसी राजनीति अच्छी होती है और इसका अनुसरण इस पूरे देश में मॉडल के रूप में होना चाहिए। अगर राजनीतिज्ञों में मानवता जिंदा है तो यह उसका प्रमाण पत्र मानना चाहिए।
वर्ष 2022 के अंतिम दिनों में यह हरियाणा सरकार का नीतिगत निर्णय निश्चय ही अनुकरणीय है और वह उसके लिए साधुवाद के पात्र हैं कि उन्होंने अपने को जीवित राजनेता कहने का हक नहीं छोड़ा है।
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