मंगलवार, 16 अगस्त 2022

मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है विद्युत कंपनियां: आरोप

विद्युत समस्या पर उपभोक्ता मंच ने किया पत्रकार वार्ता


कैसे वे ट्रेनिंग प्राप्त करके विद्युत उपभोक्ताओं पर डालते हैं, डाका; इंजी. अग्रवाल ने लगाए आरोप

 मौलिक अधिकारों का हनन किस तरह से 

मौलिक अधिकारों का हनन करने के लिए वह जब यहां जांच किसी भी उपभोक्ता की जाती है तो कभी भी उसे पंचनामा के कापी नहीं दी जाती और उसपर सुनवाई का अवसर नही दिया जाता   इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में वह पूरी रिकॉर्डिंग बनाइए और उस पर किसी भी प्रकार से उपभोक्ता के हस्ताक्षर कर आइए और यदि उपभोक्ता उसमें कुछ भी अन्य अपनी बात लिख ना चाहे तो उसे न लिखने दिया जाए और अगर उसमे। लिख देता है तो उसे मिटा दीया जाता है । इस तरह का संशोधित करने वाला इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपयोग करके अधिकारियों को दे कर के एक फर्जी  रिकवरी के केस इनके ऊपर बनाए जाते हैं। केस  बनाने के उपरांत इनको अपनी बात रखने का अवसर प्रदान नही किया जाता है  प्रिलीमिनिट्री  नोटिस नही दिया जाता  किसी उपभोक्ता को जो भी इनके उपर रिकवरी बनाई जा रही है। उसका किसी भी प्रकार से हुए उसको कोई नोटिस जारी नहीं करते और उसे अपना पक्ष रखने की अपनी बात रखने का कोई मौका प्रदान नहीं किया जाता है। फर्जी तरीके से बनाए गए केस को एक महीने तक पेंडिंग रखा जाता है और बाद में रिकवरी नोटिस जारी कर  दिया जाता है  उसके ऊपर एक रिकवरी को बनाने के बाद उसके ऊपर एक चोरी का अपमानजनक आरोप लगाते हुए और उस केस  को इस तरह से दर्शाया जाता है कि तुमने चोरी की है। तुम चोर हो और यदि तुम अपने इस पैसे को जमा नहीं करोगे तो तुम्हारे यहां पर चोरी का प्रकारण तुम्हारे खिलाफ कोर्ट में डाला जाएगा जिससे तुमको जेल हो सकती है   इससे साधारण और आम उपभोक्ता डर जाता है। भयग्रस्त हो जाता है और वह इससे बचने के लिए सोचता है कि मैं क्या करूं लेकिन उसके पास  ज्ञान की कमी और स्थितियां ऐसी होती है। डर के कारण वह भयभीत रहता हैं और इसी  का लाभ उठाते हुए हुए लोक अदालत के माध्यम से नोटिस जारी करते हैं कि तुम चाहो तो आकर समझौता कर लो नहीं तो यह तुम्हारे लिए गंभीर होगा। इसमें कुछ छूट दी जाएगी यदि वास्तवउसने चोरी की है तो उसके ऊपर चोरी का प्रकरण कायम करो और उसे प्रमाणित करो चोर उपभोक्ता नहीं, विद्युत विभाग है। कम पावर के ट्रांसफार्मर लगाकर उसमें ज्यादा लोड देता है अघोषित विद्युत कटौती करता है कम वोल्टेज का पावर देता है ट्रांसफार्मर जलने के उपरांत भी विद्युत विभाग बिजली का बिल उपभोक्ताओं पर चढ़ाता , बढ़ाता रहता है अब आप बताइए चोर कौन है उपभोक्ता या विद्युत  विभाग..?



 दोपहर 12:00 बजे विद्युत विभाग को ज्ञापन देंगे 5 सितंबर तक सुधार ना होने पर आंदोलन सड़कों पर करेंगे धरना प्रदर्शन सड़क जाम और जेल जाओ जैसे कार्यक्रम भी चलाएंगे इससे  होने वाली किसी घटना की जवाबदारी विद्युत विभाग की होगी आपके अवलोकन के लिए समस्त ग्राम पंचायतों के सरपंचों द्वारा दिए गए दस्तावेजों को देख सकते हैं। आइये उपभोक्ताओ हम सब मिलकर संघर्ष करे। इस अवसर पर जिला पंचायत सदस्य अंजू ने भी पत्रकारों को संबोधित किया तथा  मोबाइल दूरभाष नंबर7999754630, 6265588464 जारी कर समस्याओं का आवाहन किया ताकि आम आदमी अपनी बात कह सकें।




शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

तिरंगा तेरे कितने रंग...? ( त्रिलोकीनाथ )

साहिल ना सही, तिनका ही ढूंढ ले...


भारत मतलब...

अपना रद्दी गोदाम..?


फिल्म झुंड में सदी के महानायक के सामने यह प्रश्न, झोपड़पट्टी वालों के एक बाल चरित्र-नायक ने किया। तो सदी का महानायक मुस्कुरा कर चुप रह गया.. हलां कि फिल्म मे फुटबॉल खेल के जरिए झोपड़पट्टी की जिंदगी बदलने का एक सपना है।
                                                              ( त्रिलोकीनाथ )    
किंतु भारत फुटबॉल नहीं,बावजूद इसके यह प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है कि भारत का क्या मतलब है...? आज फरीदाबाद में लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास एक बाजार में मैंने इस टेलर नुमा लोक ज्ञानी से मिला, जो अपनी कुर्सी के पीछे बेशर्म की लकड़ी से झंडे को फहराता दिख रहा था ।मैं उससे पूछा, आपको भी झंडा बनाने का कितने का आर्डर मिला..? ; उसने कहा झंडा बनाने का मुझे कोई आर्डर नहीं मिला...। तो उसका दिल निश्चित तौर पर दुखी हुआ होगा कि, करोड़ों झंडों में, मेरे झुंड को भारत का एक भी झंडा, रोजगार नहीं दे पाया ..? ऐसे तिरंगे के निर्माण से अथवा गर्व करने से
कुछ फाइव स्टार, सेवन स्टार, विदेशी नागरिक शराब के जाम के साथ कुछ पल के लिए गर्व जरूर महसूस करते होंगे। इस फुटपाथ पर झंडा सिलने वाले व्यक्ति को क्यों गर्व होना चाहिए... ? अथवा भारत का क्या मतलब है यह कुशल कारीगर ही जिंदगी की शाम में क्या अर्थ है निकालें...? कुछ इसी तरह

क्या अमृत महोत्सव उसका मतलब है..?
क्या  हर घर तिरंगा उसका मतलब है....?
अथवा विभीषिका स्मृति दिवस यानी 14 अगस्त को झंडा फहराना

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा उसका मतलब है....?


अथवा तथाकथित 5 अगस्त को राम जन्मभूमि दिवस में कांग्रेस पार्टी का काला कपड़ा पहन कर सरकार की तानाशाही के खिलाफ, महंगाई के खिलाफ जन जागरण उसका मतलब है....; क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी ने राम जन्मभूमि का पूजन का दिन, 5 अगस्त को कमतर के लिए करने का तरीका उसका मतलब है  ..?
इस तरह अनेक मतलब निकाले जा सकते हैं यानी इवेंट के बाजार में अपनी डफली-अपना राग ,को राष्ट्रभक्ति बताकर जनता को ठगा जा रहा है ; क्या यही इसका मतलब है...?
मैं इस समय हरियाणा की धरती मैं हूं। कहते हैं कुरुक्षेत्र या इससे लगे मथुरा ,वृंदावन, गोकुल आदि स्थान भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और कर्म भूमि होने से यह धरती विश्व संदेश का माध्यम बन गई। कि किस प्रकार कर्मों के प्रति समर्पण और संपूर्ण कर्म-फलों का त्याग, समाज के स्वस्थ परिवेश का कारण बनता है। लौकिक जीवन में राधा ने कृष्ण से अटूट प्रेम किया, विवाह किसी का भी कृष्ण से हुआ हो; किंतु कृष्ण के आगे राधा ही अपना स्थान पाती है। क्योंकि वह निश्चल, वासनाहीन व समाज मर्यादा के अनुरूप व्यवहार का कारक है। वैसे तो महाभारत का एक-एक चरित्र वंदनीय संदेश देता है, किन्तु कर्ण का जीवन हो या भीष्म पितामह का चरित्र, लोक-समाज लोक-व्यवहार और मर्यादित जीवन को पार करके परालोक विज्ञान में आज भी स्थापित व अनुकरणीय चरित्रनायकों का निर्माण करते हैं ।कि कर्मों का संपूर्ण समर्पण, कर्तव्य पूर्ति के लिए सुनिश्चित होना चाहिए। किंतु उसका प्रतिफल याने निष्कर्ष भगवान के लिए समर्पित होना चाहिए।
ना कि स्वयं के स्वार्थ पूर्ति का जरिया बनाना चाहिए। स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में स्पष्ट को विस्तार से कुरुक्षेत्र के महाभारत का मार्गदर्शन किया है कि जहां धर्म समाज पक्ष का झुका हुआ प्रदर्शित करता है वही कर्म फल के त्याग का निष्कर्ष है ।
ऐसे में लाखों लोगों के बलिदान से प्रतिफल स्वतंत्रता आंदोलन के बाद प्रतीकात्मक दुनिया के लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रतीक हमारा तिरंगा झंडा हो अथवा हमारी मिली-जुली संस्कृति से निर्मित भारत का संविधान हो, दोनों से ही हमें सिर्फ निर्देश अथवा संदेश लेने चाहिए । संसद में संशोधन , मंथन का बेहतरीन जरिया है।
 बावजूद इसके इवेंट मैनेजमेंट के लिए अथवा भ्रम फैलाने के उद्देश्य से संविधान को या फिर तिरंगे को ही अथवा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तमाम प्रतीकों को चाहे वह अशोक के स्तंभ हो अथवा अन्य कुछ भी उनसे छेड़छाड़ करने का मतलब सीधे-सीधे संविधान पर हमला करना जैसा है। ऐसे में पारंपरिक समाज व्यवस्था या फिर लोक ज्ञान का पतन होना ही होना सुनिश्चित है। इसकी कोई भी व्यक्ति गारंटी ले सकता है। फिर चाहे वह  फिल्म झुंड का बाल चरित्र नायक का यह प्रश्न कि

भारत का क्या मतलब है और उसका उत्तर भी उतना ही सटीक है कि अगर संविधान या फिर संविधान के प्रतीक चिन्ह तिरंगा या फिर अशोक स्तंभ उसका मतलब नहीं है उसे भी खिलवाड़ बनाकर अपने स्वार्थ सिद्धि सत्ता में बने रहने का सिर्फ घटिया माध्यम बना देना यह पार्टी के इवेंट प्रचार का जरिया बना देना उस उत्तर का समावेश है कि भारत का मतलब रद्दी का गोदाम ही है, इसमें कोई शक नहीं। और अलग-अलग "झुंड" में बॅटी हमारी राजनीतिक पार्टियों के लोग कभी भी ना एक होने वाले भारतीय गर्व की गाथा को, उसकी विरासत और संस्कृति को एकत्र नहीं कर पाएंगे । सतत संघर्ष से ही आजादी स्थापित होगा। क्या यह एक सपना बनकर रह जाएगा ...? क्योंकि सत्ता का चरित्र चील, कौवे और बाज के भरोसे तब तक फलित होता है जब तक मांस और रक्त की अंतिम बूंद भी उसमें टिकी रहती है। 


 तो फिर क्या हमारे समाज के ताना-बना बनाने का जिम्मेदारी वरिष्ठ व युवा नागरिकों के सिर्फ निहित स्वार्थ का हथियार बन कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजाक बनाने में अपना योगदान कर रहा है...? यह बड़ा प्रश्न इस तथाकथित अमृत महोत्सव के इवेंट मैनेजमेंट से उजागर होता है । 
फिर चाहे वह सर्वोच्च संवैधानिक पद, राष्ट्रपति पद पर किन्ही महिला आदिवासी चरित्र को महामहिम के रूप में प्रतिष्ठित कर संसद में किसी सांसद किसी मंत्री द्वारा अपमानित करने का मामला हो या फिर प्रधानमंत्री अथवा लोकसभा स्पीकर का चुप रह कर उसको मौन सहमति देते दिखना एक भयानक श़ाक की तरह है। इसका पतन का प्रायश्चित कैसे होगा यह भी बड़ा प्रश्न खड़ा  है।

 क्या लोक-तंत्र, लूट-तंत्र का जरिया बन रहा है अन्यथा खड़े तमाम प्रश्नों पर उत्तर जनता को चाहिए ही चाहिए ,इस मूकबधिर व्यवस्था से। 
यह अलग बात है कि समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सत्ता को रोटी की तरह आग में पकाना चाहिए और उसे पलटते रहना चाहिए किंतु क्या तब तक रोटी इंतजार में जलकर खाक हो जाने का डर भी नहीं खड़ा हो रहा है...? 
 यही बड़ा प्रश्न है और उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि 15 अगस्त के बाद भारत के करोड़ों तिरंगे झंडे क्या संविधान की मर्यादा के अनुरूप सुरक्षित रखे जाएंगे या उसको पतित करने वाले दंडित होंगे अथवा स्वतंत्रता का प्रतीक हमारा विश्व विजय तिरंगा प्यारा किसी गंदी नाली में, प्लास्टिक पन्नी की तरह या फिर किसी मैकेनिक के गंदगी पोछने के रूप में देखेंगे । 
जिससे हमारा वह सोच जो झंडे के प्रति सम्मान भाव, गर्व का कारण बनता था घृणा और पतन का कारण भी बनेगा... यह हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा कि संविधान के हम भारतवासी लोग, भारत का क्या मतलब निकालते हैं... बहरहाल आज का दिन सरकार के निर्देश को मानने का दिन है।

स्वतंत्रता दिवस की 2 दिन पूर्व से बहुत-बहुत शुभकामनाएं.. मां भारती सबको ज्ञान और विवेक दें ताकि लोकतंत्र बचाया जाए भारत के बच्चों को उनका सुरक्षित भविष्य मिले...




सोमवार, 8 अगस्त 2022

पंचायती पंचायत में पंचायत ही पंचायत

जिला पंचायत सदस्य ने शपथ समारोह का का बहिष्कार

  भाजपा करण  से

हटकर लिया शपथ


शहडोल संभाग में भाजपा पंचायती राज व्यवस्था को अपना रंग देने में लगी है जिसके परिणाम स्वरूप किसी भी परिस्थिति में उसका भाजपाई करण करना लक्ष्य बन गया लगता है जिसकी एक झलक उमरिया जिले के कलेक्टर के ऊपर चुनाव में किए गए पक्षपात को लेकर गर्म हो गई थी जिसमें अंततः उमरिया कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज की गई थी ।अब वैसा तो नहीं किंतु  चुनाव जीतकर आई अंजू रैदास ने शहडोल जिला पंचायत का भाजपा करण किए जाने पर नाराजगी जताई है। जिला पंचायत अध्यक्ष उपाध्यक्ष के भाजपा मयी शपथ समारोह का किया बहिष्कार । और जिला पंचायत सीईओ ने दिलाई जिला पंचायत कार्यालय में अलग से शपथ ली।

 शहडोल जिला पंचायत सदस्य अंजू गौतम रैदास के अनुसार उन्हे यह बताया गया था कि जिला पंचायत कार्यालय में दोपहर 12:00 बजे से शपथ समारोह होगा। किंतु यहां आने पर पता चला कि माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा यह कार्यक्रम मानस भवन में दोपहर 3:00 बजे संपन्न होगा वहां पर भी लगभग 2 घंटे विलंब से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ कार्यक्रम को भाजपा पदाधिकारियों से रंगा चंगा देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि यह कार्यक्रम पंचायत का नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी का कार्यक्रम है।

 इसे देखकर मुझे अत्यंत दुख हुआ कि  जो संस्था राजनीतिक दलों से मुक्त रखी गई है वहां पर भी भाजपा का हस्तक्षेप है मेरे द्वारा निर्वाचित होते समय स्पष्ट कहा गया था  कि मैं किसी राजनीतिक दल की नहीं हूं और इसलिए किसी राजनीतिक मंच से शपथ लेना जनता के साथ धोखा कहलाता मेरे द्वारा जिला पंचायत में जिला पंचायत सीईओ से शपथ ली गई ताकि  जनता की अपेक्षाओं को पूर्ण करने और अपने संकलपो पर कायम रह सकू । अभी तो यह आगाज है अंदाज लगाना सहज होगा की पंचायती व्यवस्था में पंचायत जमकर होगी।



मंगलवार, 2 अगस्त 2022

महामहिम का माफीनामा

 मामला जनता जनार्दन के अपमान का


हमसे भूल

 हो गई ...

हमका 

माफी 

दयी देओ..


अंतत:  "विश्रामपुर के संत" ने माफी मांग ली। हालांकि क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता किंतु ऐसी परिस्थितियां बनती ही क्यों हैं जबकि आप गंभीर पद में बैठे हो...? यह हालात महामहिम राज्यपाल पद की गरिमा को पतित करता है 

                                   ( त्रिलोकीनाथ )    


उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल ने एक पुस्तक लिखी "विश्रामपुर का संत जिसमें राज्यपाल बनाए जाने की परिस्थितियों का और उसके दुरुपयोग का उलाहना है

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ‘गुजराती और राजस्थानी’ वाले अपने बयान पर माफी मांग ली है। राज्यपाल ने कहा था कि अगर मुंबई से गुजरातियों और राजस्थानियों को हटा दिया जाए तो शहर के पास न तो पैसे रहेंगे और न ही वित्तीय राजधानी का तमगा रहेगा। उनके इस बयान पर चौतरफा विरोध हुआ था। खुद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने इस पर आपत्ति जताई थी।

गुस्सा इस कदर फूट पड़ा था की पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल कोश्यारी को कोल्हापुरी चप्पल देखने की सलाह दी थी तमाम राजनीतिक हलकों से विरोध को देखते हुए राज्यपाल कोश्यारी ने सोमवार को एक लंबा बयान जारी करते हुए माफी मांग ली।


कोश्यारी ने यह बयान शुक्रवार शाम को एक कार्यक्रम में दिया था, जिसपर कई राजनीतिक पार्टियों द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद विवाद पैदा हो गया। हर पद की अपनी एक गरिमा होती है उसकी एक मर्यादा होती है लोकतंत्र की यही एक खूबसूरती है किंतु जब इन मर्यादाओं को पार करके कोई राजनीतिक दल का कार्यकर्ता प्रायोजित तरीके से अथवा किसी षड्यंत्र का हिस्सा होकर कार्य करने की आदत बना लेता है तब वह लोकतंत्र को भी प्रेरित करता है और स्वयं को भी पतंग की राह में ला खड़ा करता है। जिसका परिणाम यह होता है कि सर्वत्र उसकी निंदा होने लगती है। और उसे बैकफुट में आना पड़ता है। वहीं निष्ठावान कार्यकर्ता रहे भरत कोशियारी के साथ घटित हुआ तो सवाल यह भी है कि इसके बाद उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल भवन में रहने का कितना नैतिक अधिकार सुरक्षित रह गया है।

यह अलग बात है कि उनकी इस कलाकारी को उनकी योग्यता के रूप में देखा जाएगा और वह महाराष्ट्र से नहीं हटाए जाएंगे। किसी बड़े नए घटनाक्रम में उनकी योग्यता का उपयोग किया जाएगा। जैसे कि हाल में सत्ता परिवर्तन में उनकी योग्यता फायदे का सौदा रही एक पार्टी के लिए। किंतु महाराष्ट्र की जनमानस में भारी उथल-पुथल कर गई खासतौर भारत की एकमात्र हिंदू हृदय सम्राट से परिभाषित शिवसेना और शिवसैनिकों के जीवन में खलल डाल करके । यही सत्ता का चरित्र है किंतु सत्ता का पतित चरित्र महामहिम पद पर पदस्थ संवैधानिक व्यक्तियों को जब पतित करता है तो संकेत अच्छे नहीं माने जाते।

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...