गुरुवार, 3 मार्च 2022

आत्मनिर्भर शहडोल...

 आत्मनिर्भर शहडोल...


गांधी प्रतिमा को 

साफ सुथरा रखने 

की पहल

अगर बुजुर्गों पूर्वजों के प्रति मान सम्मान है तो फिर यह हमारी आंखों की शर्म होनी चाहिए और कब तक हम उनके अपमान को यूं ही देखते रहेंगे..?नगर पालिका परिषद चौराहे तो बनवा देती है कमीशन बाजी के चक्कर में उसमें मूर्तियां भी रखवा देती है किन इन मूर्तियों का रखरखाव उनकी सुरक्षा और उसकी स्वच्छता आखिर किसकी जिम्मेवारी है यह एक बड़ा प्रश्न है..? अक्सर देखा जाता है कि हमने अपने पूर्वजों/नेताओं /शहीदों की मूर्तियां चौराहे का नामकरण कर देते हैं किंतु उस जगह को आकर्षक बनाए रखने के लिए लोगों में ऐसी आस्था बनी रहे इसके लिए जो प्रयास होने चाहिए उसका कोई नीतिगत सिद्धांत पालिका परिषद ने नहीं बनाया है..। परिणाम स्वरूप मूर्तियां धूल खाती हुई, टूटी हुई अथवा गंदगी का कूड़ा दान बन कर रह जाती हैं। शहडोल के गांधी चौक में तो महात्मा गांधी की खंडित खड़ी हुई मूर्ति अक्सर नेताओं द्वारा पहनाए गए मालो से और सड़क की धूल से अथवा पशु पक्षी की बीट से गंदी होती रहती है। जब नेता को राजनीतिक जरूरत होती है तब वह उन्हें इसी हालत में आकर माला पहना देता है और पड़ाके फड़वा देता है। यानी कुछ गंदगी और करवा देता है गांधी चौक में तो उसकी सुंदरता बुरी तरह से नष्ट कर दी गई है अगल-बगल तमाम ऐसी सामग्रियां लगा दी गई हैं कि गांधी कम वह चौराहा कबाड़ होकर रह गया है । किंतु पुरानी गांधी चौक में आज भी सिर्फ मूर्ति लगी होने के कारण गांधी जी की प्रतिमा के प्रति सम्मान बचाया जा सकता है।

 हालांकि यह वह जगह है जहां लोगों की आस्था पर चोट करते हुए कभी किसी शैतान ने गांधी प्रतिमा को तोड़ दिया था। कायर राजनीतिक संप्रदाय ने अपनी नाक बचाने के लिए  की नई मूर्ति लगवा दी जो इतनी आकर्षक नहीं है जितनी पुरानी वाली थी, बावजूद इसके जिम्मेदार दोषी तत्व आज तक नहीं पकड़े गए। 

 लोक आस्था के परिणाम स्वरूप लगाई गई मूर्ति की स्वच्छता की जिम्मेदारी किसी  ने नहीं उठाई


किंतु एक आसपास के नागरिकों में शायद यह नहीं देखा गया अतः उन्होंने इस मूर्ति को स्वच्छ और साफ सुथरा रखने के लिए पहल कर दी। चौराहे के निवासी असलम खान और सल्लू ने गांधी प्रतिमा को साफ सुथरा करके आस्थाओं को आत्मनिर्भर होने की सुरक्षा प्रदान की है ।जो सराहनीय कदम है यह होते रहना चाहिए अगर बारी बारी आसपास के लोग जिम्मेदारी लेते हैं तो हम अपने शहीदों को श्रद्धांजलि भी देते हैं और खुद गद्दार और कमजोर नागरिक नहीं रहने की घोषणा भी करते हैं। यह आत्मनिर्भरता का संदेश सराहनीय कदम है।

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