रविवार, 27 मार्च 2022

रेत-माफिया की "वीरभूमि" कब बनेगा आदिवासी क्षेत्र....? (त्रिलोकीनाथ)

 

मंजा कोल तो कोल-माफिया में मरा था...;

 


रेत-माफिया की "वीरभूमि" कब बनेगा

 शहडोल का आदिवासी क्षेत्र....?

(त्रिलोकीनाथ)

तो हमारी प्रतियोगिता वीरभूमि से क्या ऐसे होने चाहिए कि मध्य प्रदेश में कोई वीरभूमि नहीं है सब कायरों की भूमि है...? क्योंकि यहां पर रेत माफिया गिरी में कोई जिंदा नहीं जलाया जाता । सब कुछ पूर्ण शांति के साथ बावजूद इसके कि रविंद्र नाथ टैगोर का कोई शांतिनिकेतन हमारे यहां नहीं है इसके बावजूद आम नागरिक संपूर्ण शांति और अपने संपूर्ण कायरता के साथ विशेषकर आदिवासी क्षेत्र शहडोल में रेत माफिया गिरी को सम्मान देता है। अगर सरकार की नीतियों से पनपा हुआ रेत माफिया, ऑफ द रिकॉर्ड याने अघोषित तौर पर बनाई गई आचार संहिता के खिलाफ गैर कानूनी काम करता है तो उसे एक ही दिन में रिकॉर्ड तोड़ अवैध कार्रवाई हो के कारण कई ट्रक और कई डंपर हेवी मशीनरी आदि की जब्ती का सामना भी करना पड़ता है ।यह सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से होता भी है इसलिए गैर कानूनी काम नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह एक खेल है। भाषा के हवाले से जनसत्ता ने आज की खबर  की


 राजनीतिक माफियाओं का रेत माफिया गिरी के साथ अवैध रिश्तो का शतरंजी बिसात भी है इसलिए जो रेत माफिया है कानूनी तौर पर वही ठेकेदार है। तो जब कार्यवाही होती है तब रेत माफियानुमा ठेकेदार जिसके संरक्षण में चले अवैध करोड़ों अरबों रुपए के अवैध कारोबार मैं लगी तमाम ट्रकों और डंपर जो बैंक के लोन पर अजीबका के लिए खरीदे जाते हैं इन माफियाओं के लिए काम करते हैं, यह अलग बात है कि जब राजनीति खेल में गाड़ियां चेक तो होती हैं तो यह कीड़े मकोड़े टाइप के आम नागरिक न सिर्फ बैंकों के कर्ज की भुगतान में डिफाल्टर होते हैं। बल्कि गाड़ियों पर बैंक कर्ज के रूप में जमा सभी गारंटी पेपर्स उनके खेत गांव घर की जमीन सब नीलाम होने की कगार पर आ जाती है।

 फर्क सिर्फ उसे नहीं पड़ता जो राजनीतिक संरक्षण में रेत माफिया गिरी की वीरभूमि के खिलाड़ी होते हैं; वे ठेकेदार भी होते हैं उनके तथाकथित मैनेजर या ठुल्ले, गुलाम टाइप के गुंडे पुलिस रिकॉर्ड में अपराधी बनाए जाते हैं ।


और जो जीत ठेकेदारी कंपनी के डायरेक्टर होते हैं ठेकेदारी कंपनी बनाकर करोड़ों रुपए का रेत माफिया गिरी करते हैं उनका बाल भी बांका नहीं होता क्योंकि वह राजनीति के संरक्षण में रेत माफिया गिरी करते हैं।

 यही अभी तक अनुभव में होता आया है और बाद में जब फिर सब कुछ ठीक हो जाता है तब चुपचाप शांतिपूर्ण तरीके से वही रेत माफिया ठेकेदार के मैनेजर, ठुल्ले या गुलाम फिर से बिना ब्लैक लिस्टेड हुए प्रशासन के लिए काम करते नजर आते हैं। उन्हें बकायदा प्रशासन द्वारा अपना बेरियल वैध और अवैध वसूली का नियंत्रण करने के लिए टोल ब्रिज  लगाकर तथाकथित अवैध रेत निकासी पर नियंत्रण करने का अधिकार सौंप दिया जाता है।उदाहरणार्थ बावजूद इसके लिए सरकारी थाने और पुलिस में अवैध माफिया गिरी के लिए अपराध दर्ज होते शहडोल मैं कोई जादौन नाम का अवैध रेत वसूली का अपराध का पंजीबद्ध व्यक्ति इसी प्रकार की वैध और अवैध रेत माफिया गिरी के लिए अक्सर खनिज विभाग के इर्द-गिर्द माफिया गिरी करते देखा जाता है।  शासन चाहता तो पुलिस और प्रशासन अथवा वंशिका ट्रेडर्स नाम का फर्म इस माफिया को हटा सकता था क्योंकि वंशिका ट्रेडर्स के किसी भी डायरेक्टर का नाम रेत माफिया गिरी में किसी प्रकरण में शहडोल में दर्ज नहीं है यही हाल उमरिया जिले में भी है अथवा अनूपपुर जिले और डिंडोरी जिले में भी देखा जाता इसलिए वह राजनीतिक संरक्षण में खुलेआम शहडोल जिले के तमाम आदिवासी क्षेत्रों की नदियों को और अरबों रुपए की बनी सड़कों को नष्ट कर रहा है अपने अवैध रेत परिवहन से क्योंकि उसे कुछ करोड़ रुपए के टुकड़े तथाकथित रेत राजस्व के नाम पर देने होते हैं। जिससे रॉयल्टी भी कहते हैं। तब माफिया के लिए समर्पित सिस्टम यह जानते हुए भी अवैध रेत परिवहन के कारण अरबों रुपए से निर्मित सड़क हैं लगातार नष्ट हो रही है वह मात्र कुछ करोड़ के राजेश के लिए अपनी वीरता दिखाता है।

 जैसी शहडोल की सोन नदी, केवई, कुनुक नदी, महानदी आदि तमाम नदी नालों में रेत माफिया गिरी पिछले तीन-चार सालों से सत्ता के संरक्षण में पल्लवित है वैसे ही पश्चिम बंगाल में वीरभूमि पर इसी प्रकार से ब्राह्मणी नदी पर रेत माफिया गिरी का भव्य शुभारंभ हुआ था । ऐसा नहीं  कि पिछले 50 साल से खनिज रेत राजस्व नहीं मिलती थी लेकिन तब स्थानीय नागरिकों को बहुत सस्ते में रेता मिल जाता था क्योंकि रेता का बहुतायत उत्पादन प्रकृति के संसाधन में शहडोल में उपलब्ध था। अब प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण की माफिया के नजर में रेत की एकाधिकार का ठेका हो गया है। इसलिए राजनीतिक संरक्षण व प्रशासनिक संरक्षण में रेत माफिया शहडोल संभाग में खुला डाका डाल रहा है।  क्योंकि उसे भी मालूम है कि यह आदिवासी क्षेत्र है, "कायरों की भूमि" है अगर पश्चिम बंगाल में ब्राह्मणी नदी में इतने साल बाद रेत माफिया गिरी में मात्र कुछ लोग जिंदा जलाए गए हैं तो शहडोल में अभी नदियां फिर भी रेत माफिया गिरी के लिए इस स्तर पर नहीं पहुंची।

 हलांकि जगह जगह कुछ ग्राम सभाएं और कुछ ग्राम पंचायतें इन माफियाओं के खिलाफ धरना प्रदर्शन शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं जिनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान है किंतु वह इस स्तर के नहीं हुए हैं कि वह वीरभूमि बना सकें। फिलहाल इस मामले में शहडोल क्षेत्र कायरों की भूमि है इसे वीरभूमि बनने में रेत माफियाओं को अभी और तीव्र विकास करना होगा।

 मुझे याद है बहुत पहले जब शुरू में कोयला चोरी के कारोबार से पहली बार मरजाद-कांड हुआ था तत्कालीन चर्चित राजनीतिक मंत्री कृष्ण पाल सिंह के गांव के पास स्थित मरजाद गांव में तब एक कोयला माफिया ने एक आदिवासी मंजा कोल के नाम की मजदूर को ट्रक से कुचल कर मार डाला था बाद में इस पर सब निरपराध घोषित कर दिए गए थे। मंत्री भी खुश  संत्री भी खुश और माफिया भी खुश.... क्योंकि कोयला माफिया से फिर कई वीर शहडोल की भूमि से कई सफल माफिया निकले थे... अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ नेता विधायक हो गए तो कुछ भारत ही नहीं दुनिया के उद्योगपति भी बन गए ...कोयला माफिया गिरी से यह विकास की सफलता का प्रमाण भी है।

 अभी रेत माफिया गिरी में शुरुआत है क्योंकि लोक सिर्फ कायरता दिखा रहे हैं शहडोल क्षेत्र में वीर भूमि तब पैदा होगी जब कुछ लोग जिदा जलाए जाएंगे तब तक हमें इंतजार करना चाहिए और तब यही मध्य प्रदेश के इस आदिवासी अंचल की सटीक बैठने वाली वीरभूमि होगी क्योंकि राजनीति और माफियाओं का वही सफल कॉकटेल का नशा होगा।



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