मंत्री ने कमेटी बना, कहा; करो जांच..
क्या पारदर्शी-भ्रष्टाचार को
आएगी आंच...?
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल के आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय में 8 करोड़ 32लाख रुपए के पांडे शिक्षा समिति जैसीनगर को अनियमित भुगतान तृतीय वर्ग कर्मचारी द्वारा जिला कोषालय की मिलीभगत से किए जाने के बाद अब प्रभारी मंत्री ने अपने कथित पत्र के निर्देश पर कमेटी बनाकर जांच करने की बात कही है। व कायदे कमेटी में आईएएस अधिकारी अपर कलेक्टर अर्पित वर्मा व सहायक आयुक्त रणजीत सिंह अन्य एसपीएस चंदेल व दो अन्य को कमेटी सदस्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अभी यह अधिकृत तौर पर जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी नहीं किया गया है कि इस प्रकार की कोई कमेटी सहायक आयुक्त कार्यालय के पारदर्शी भ्रष्टाचार की कोई जांच करेगी ।
किंतु जिस प्रकार से मंत्री के निर्देश वाला पत्र उड़ता हुआ नजर आया है उससे
लगने लगा है की इस भ्रष्टाचार की परतें खुल सकती हैं.. अगर वास्तव में यह मंत्री जी का निर्देशित पत्र के अनुरूप कोई कार्यवाही होती है तो। किंतु कहा जाता है की आठ करोड़ से ज्यादा का पारदर्शी-भ्रष्टाचार कोई जैसीहनगर की गली कूचे से निकला हुआ टुट-पूंजिहा भ्रष्टाचार नहीं है "चट मंगनी- पट ब्याह" के तर्ज पर कोई सस्पेंड हो जाए कोई f.i.r. हो जाए बल्कि दिल्ली से चलकर जैसीहनगर इर्द-गिर्द गांव मोहल्ले में खेलने वाला स्थापित-भ्रष्टाचार है। जिसकी जड़ें आदिवासी मंत्रालय के शीर्ष तक पहुंचते हैं ।
ऐसे में इस परंपरा गत-भ्रष्टाचार और इसमें नीहित स्थापित भ्रष्टाचारी समाज के विरुद्ध क्या कोई पारदर्शी इमानदार जांच हो सकती है...? पहली नजर में कहा जा सकता है कि यह एक असंभव होने वाला कृत्य है क्योंकि शहडोल के शिक्षा महकमें में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार की अनियमितता उतना ही बड़ा सच है जितना कि निलंबित जैसीनगर बीआरसी ब्रह्मानंद श्रीवास्तव ने अपने वायरल वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी जी की छवि को नष्ट करने मैं गुरेज नहीं किया था , क्योंकि उसे मालूम था कि पांडे शिक्षा समिति में "घर वापसी कर चुके शिकायत" कि मध्यस्थता उनके ही अपने गौरवशाली नेता ने किया था। ऐसे में स्थापित-भ्रष्टाचार को एक कोई प्रभारी मंत्री इस तरह चुनौती दे दे और वह भी आदिवासी विभाग में दुकान की तरह इस्तेमाल करने वाले तृतीय वर्ग कर्मचारी, कोषालय अधिकारी और उसके भ्रष्टाचारी तमाम समाजिक व्यक्तियों /कर्मचारियों के विरुद्ध क्या कोई जांच अपने निष्कर्ष पर पहुंच पाएगी...? यह बहुत बड़ा सवाल है।
तब जबकि शहडोल के कमिश्नर के निर्देश के बावजूद भी अपने निजी दुकान की तरह विभागीय शाखाओं पर करीब 20 वर्षों से कब्जा करने वाले कौशल सिंह मरावी हो या फिर अनुदान बाबू सब के सब करोड़ों रुपए के अनेक प्रकार के भ्रष्टाचारों की दुकान चलाते आ रहे हैं। जिनका नियंत्रण तृतीय वर्ग कर्मचारी बड़ी कुशलता से करता रहा है। और आज भी कहने को चेहरे भलाई बदल गए हो किंतु वास्तव में यही 3-4 कर्मचारियों का भ्रष्ट-समाज आदिवासी विभाग को पूरे नियंत्रण के साथ चला रहा है।
जिसका एक प्रमाण शहडोल आयुक्त राजीव शर्मा के निर्देश के बावजूद भी ना तो आरोपी कौशल सिंह मरावी को कार्यालय से बेदखल किया गया है और ना ही उसके खिलाफ कोई दीर्घ या लघु शस्तियां स्थापित की गई हैं याने उन्हें कमिश्नर के निर्देश के बाद भी अब तक दंडित नहीं किया गया है।
तो जब कमिश्नर के आदेश का वजूद पर प्रश्न खड़ा हो गया है तब मंत्रालय से लेकर जैसीहनगर तक एकाकार पारदर्शी-भ्रष्टाचार का दावा करने वाला सिस्टम को चुनौती देने के लिए प्रभारी मंत्री की निर्देश कितनी देर तक टिकेगा यह देखने लायक बात होगी...?
फिलहाल एक जुमले की तरह इस पत्र पर यकीन करना चाहिए की पारदर्शी भ्रष्टाचारी वर्ग के खिलाफ एक कमेटी शायद कोई अपना निष्कर्ष निकाल सके तो मनोरंजन करने में आखिर क्या हर्ज है...?
राम की चिड़िया, राम का खेत.....; चुग रे चिड़िया, भर भर के पेट... यह पत्र भी न सिर्फ पूर्व शिकायतकर्ता की तरह वर्तमान शिकायतकर्ता के लिए बल्कि जांचकर्ताओं के लिए एक खेत साबित होगा या फिर लक्ष्य भेदेगा...? देखना होगा। लेकिन ऐसी जांच कमेटियों के लिए क्या बेहतर नहीं होता की जांच की पहली शर्त सभी आरोपी को उस कार्यालय से अन्य यत्र पदस्थ किया जाना चाहिए ताकि जांच प्रभारी मंत्री के निर्देशानुसार पारदर्शी और निष्पक्ष हो सके...?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें