शनिवार, 8 जनवरी 2022

मामला लोकायुक्त में दर्ज आरोपी कर्मचारियों का

पारदर्शी भ्रष्टाचार पर

फिलहाल, टांय-टांय फिश्श ...?

सूत्र बताते हैं पारदर्शी-भ्रष्टाचार के नोटिस के मामले में लोकायुक्त द्वारा की जा रही कार्यवाही अथवा दंडित कर्मचारियों के मामले में उन्हें पुनः गंभीर पदों पर रखे जाने पर शहडोल कमिश्नर द्वारा सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग शहडोल को भेजे गए। नोटिस पर सहायक आयुक्त रणजीत सिंह धुर्वे ने अपना जवाब कमिश्नर शहडोल को दे दिया है, जिसमें उन्होंने मामले-संज्ञान पर नहीं होने की बात कहीं है। जबकि इसी मामले में जिम्मेदार बाबू कौशल सिंह मरावी पर पृथक  से भेजे  नोटिस पर अभी तक कोई संतोषजनक जवाब कमिश्नर को नहीं भेजा गया है।

 बताया जाता है कि कार्यालय में पदस्थ तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी द्वारा संरक्षित भ्रष्टाचारियों और लोकायुक्त के दायरे में आने वाले 3 कर्मचारियों को संरक्षण देते हुए मामले को ठंडे बस्ते में रखने की कवायद शुरू की है। क्योंकि आज भी सहायक आयुक्त कार्यालय में लगभग सभी निर्णय एमएस अंसारी द्वारा ही सहायक आयुक्त अधिकारी की बगल की कुर्सी में बैठकर लेते हैं।

 एक अन्य सूत्र के अनुसार करीब 20 वर्ष से एक ही शाखा पर पदस्थ 2 कर्मचारियों भूषण सिंह अनुदान बाबू और कौशल सिंह मरावी को आपसी समझ से भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के लिए अंसारी की सलाह पर पदों को एक्सचेंज कर बदलाव किया जा सकता है। ताकि कमिश्नर शहडोल को यह जवाब दिया जा सके कि कौशल सिंह मरावी की शाखा बदल दी गई है। वास्तव में दोनों ही बाबू पर आरोप है अपनी अपनी शाखा में रहते हुए लाखों रुपए बेनामी तौर पर एकत्र किए हैं और एक छत्र राज्य करते हुए तमाम प्रकार के भ्रष्टाचार को पल्लवित करते रहे हैं। "पांडे शिक्षा समिति" का एमएस अंसारी द्वारा किया गया करोड़ों का गैरकनूनी आहरण इन्हीं बाबुओं की चाल-चरित्र और चेहरा का उदाहरण है। तो क्या पारदर्शी भ्रष्टाचार के मामले में कोई सौदा तय होने जा रहा है...? जिससे भ्रष्टाचार भी संरक्षित रहे और भ्रष्टाचारी बाबू भी..?

 इस तरह आदिवासी विभाग पारदर्शी भ्रष्टाचार का बड़ा केंद्र होता जा रहा है होना तो यह चाहिए कि तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी,कौशल सिंह मरावी और भूषण सिंह इन तीनों ही सहायक आयुक्त कार्यालय से अन्ययंत्र सेवाएं देने के लिए निर्देशित होने चाहिए... यदि इस प्रकार की संदेशात्मक कार्यवाही होगी तभी माना जाएगा कि कमिश्नर राजीव शर्मा द्वारा पारदर्शी भ्रष्टाचार को संज्ञान में लिए जाने पर आदिवासी विभाग ने गंभीरता से कार्यवाही की है अन्यथा कमिश्नर का नोटिस सिर्फ एक प्रोपेगेंडा बनकर रह जाएगा और उस जगहंसाई का उदाहरण भी । कि कमिश्नर कार्यालय भी इन बाबू के राज में क्या हैसियत रखता है...?

 ज्ञातव्य है की कमिश्नर शहडोल ने अपने पत्र क्रमांक 4437 पर दिनांक 29.12. 2021 को सहायक आयुक्त को नोटिस भेजते हुए कौशल सिंह मरावी लेखापाल के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे। क्योंकि उन्होंने एक आरटीआई कार्यकर्ता नरेंद्र सिंह गहरवार की शिकायत पर यह पाया था की आदिवासी छात्रावास रसमोहिनी में पदस्थ विनोद सिंह बरगाही द्वारा 2014-15 में दो लाख रुपये के गबन के मामले पर लोकायुक्त ने बरगाही को पर प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही की थी। जिसकी जानकारी पदस्थ लेखापाल मरावी को थी और उन्होंने जानबूझकर मामले को छुपते हुए पुनः बरगाही को पदस्थ करने पर नोटशीट चलाई थी। देखना होगा कि सहायक आयुक्त रणजीत सिंह धुर्वे अपने कार्यालय में पदस्थ 20 वर्षों से एक ही स्थान पर लेखापाल मरावी के इस षड्यंत्र पूर्ण कृत्य के लिए कार्यालय से अनयंत्र रखते हैं अथवा किसी नए पारदर्शी भ्रष्टाचार के लिए अपने अधीनस्थ पदस्थ भ्रष्टाचारी की सलाह पर कार्यालय में ही संरक्षित रखेंगे....?


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