दिल्ली की कलम
कमजोर है :टिकैत
21वीं सदी के लोकज्ञानी समाज का दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन कमोवेश किसान नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में पिछले 1 साल से दिल्ली में दिखा।
अंततः तानाशाह सत्ता को "बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम..." के अंदाज में तीन काले कानून के नाम से कुख्यात "3 कृषि कानून के विधेयक" को वापस करना पड़ा।
बावजूद इस लोकतांत्रिक गांधीवादी आंदोलन से जो निष्कर्ष निकला वह जाते-जाते लोक ज्ञान समाज के नेता राकेश टिकैत में अपने ट्वीट में कह दिया। "किसान खेती भी ठीक करता है, उसके द्वारा पैदा की जाने वाली फसल भी अच्छी होती है लेकिन किसान कर्जदार है इसका मतलब दिल्ली की कलम कमजोर है जो किसान के साथ न्याय नहीं करती" उन्होंने पूरे सम्मान के साथ दिल्ली की पत्रकारिता को उसका आईना दिखा दिया। उन्हें लगा होगा अगर पत्रकारिता में काम सही ढंग से होता तो इस आंदोलन को 700 से ज्यादा किसानों को बलिदान का दंश न देखना पड़ता। इसलिए बिना शिकवा शिकायत के वे अपनी बात कह कर चले गए ।किंतु पत्रकारिता क्या इससे कुछ सीख पाएगी यह बड़ा प्रश्न है....? बहरहाल यह भी एक संयोग है कि जब चीफ जस्टिस आफ इंडिया जस्टिस रामन्ना भारतीय पत्रकारिता में खोजी पत्रकारिता न होने की शिकायत करते हैं तभी किसान नेता का यह ट्वीट आता है
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