मामला आदिवासी क्षेत्र के राजघराने का
संवेदनहीनता का विकास निगम
शहीदों के तेरहवीं का
भी इंतजार नहीं किया
(त्रिलोकीनाथ)
मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम क्या एक संवेदनहीन संस्था है...? यह प्रश्न इसलिए खड़ा हो गया क्योंकि अगर कहीं कोई अन्याय होता दिख रहा था और उस पर भारत के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत से संबंधित कोई व्यक्ति प्रभावित हो रहा है, तो विकास निगम की तानाशाही उस पर भी न्याय देना नहीं चाहती। यह बात साबित करने के लिए कल वायरल हुए शहीद जनरल बिपिन रावत के प्रिय साले यशवर्धन सिंह के वायरल संदेश से प्रमाणित होता दिखता है। तो पहले संक्षेप में समझ लें कि क्या हुआ..
देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत का जिस समय अंतिम संस्कार हो रहा था, उसी समय शहडोल में उनकी ससुराल की जमीन पर सरकार बुलडोजर चलवा रही थी। जनरल रावत के साले और उनकी पत्नी के भाई
यशवर्धन सिंह ने सोशल मीडिया पर जब यह खुलासा किया तो शहडोल से लेकर भोपाल तक हड़कंप मच गया। एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट कर उन्हें आश्वस्त किया है कि उनके परिवार के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। हालांकि मामले की संवेदनशील स्थितियों को देखते हुए शहडोल के कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य और एसपी अवधेश गोस्वामी ने भी कहा है कि फिलहाल काम को रोक दिया गया है।
किंतु भ्रष्टाचार-तानाशाही से ओतप्रोत सड़क विकास निगम कि यह छोटी सी घटना पहली नहीं है। मध्यप्रदेश में संभवत प्रथम बी ओ टी सड़क मार्ग "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" इसी निगम ने बनाए थे। और जैसे ठेका खत्म हुआ वर्षों मजबूत रहने की गारंटी वाला सड़क अपनी औकात में आ गया। जैसे पूरी अधिकारियों की परत उस वक्त खुल गई जब आदिवासी क्षेत्र शहडोल में गुणवत्ता के नाम पर खुली लूट का जरिया बना सड़क विकास निगम का हजारों करोड़ का कारोबार बाणसागर के पास 54 क्षेत्र के नागरिकों में क्या बच्चे, क्या बड़े-क्या बूढ़े, क्या जवान सब सड़क विकास निगम के घिनौनी कारगुजारी के चलते शॉर्टकट के कारण बाणसागर के नहर में डूब कर मर गए।
मुख्यमंत्री शिवराज जी ने तब तो बड़ा आश्वासन दिया था किंतु एक अफसर का बाल बांका भी नहीं हुआ। क्योंकि अधिकारियों को मालूम है कि भ्रष्टाचार की ताकत के सामने क्या मंत्री क्या अफसर सब तलवे चाटते नजर आते हैं। और इस यकीन पर वह यह नवोदित भ्रष्टाचारी-समाज विकास के नाम पर अपने लक्ष्य की पूर्ति करता रहता है । सड़क विकास के नाम पर "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" जैसा घटिया सड़क का स्मारक खड़ा करता है। जिस कारण अमरकंटक का मुख्य सड़क मार्ग भी ढह जाता है और महीनों सड़क बंद हो जाती।
तो क्या फर्क पड़ता है चाहे बाणसागर में शहडोल के नागरिक डूब मरे या अमरकंटक सड़क मार्ग महीनों बंद रहे अथवा देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत की तेरहवीं भी ना हो पाए और जो उनकी संवेदना में सेवारत चाहे वे शहीद बिपिन रावत की पत्नी मधुलिका रावत के सगे भाई ही क्यों ना हो, सड़क विकास निगम के अधिकारियों को बस मौका चाहिए वह अपने भ्रष्टाचार की लक्ष्य पूर्ति के लिए कोई अवसर नहीं गमाना चाहते।
आप कह सकते हैं कि क्या राजघराने के साथ भी अन्याय होता है ..? हां, आदिवासी क्षेत्र में सबसे बड़ा राजघराना मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम का "भ्रष्टाचारियों का राजघराना" है जिसने रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग की पीड़ादायक यात्रा का भ्रष्टाचार की लक्ष्य पूर्ति के लिए एक संस्था के रूप में निर्माण किया।
यह तो उदाहरण था अन्यथा विकास के नाम पर भ्रष्टाचार की गुणवत्ता-हीन लूटपाट को भारत के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मधुलिका रावत और अन्य शहीदों के शहीद हो जाने के बाद भारत की सनातन हिंदू पद्धति के अनुरूप तेरहवीं हो जाने तक भ्रष्टाचार और लूटपाट की संस्कृति को रोक देना चाहिए था। किंतु हजारों-हजार करोड़ रुपए के नाम पर सड़क विकास का जो तमाशा पूरे देश में हो रहा है उसकी एक झलक किसी शहीद की तेरहवीं का इंतजार क्यों करें......?
अगर कलेक्टर और एसपी के हाथ में न्याय का भरोसा बचाने की क्षमता ना हो तो "तथाकथित" विकास सभी संवेदनाओं को पैरों तले कुचलता ही रहता है ।यह सिद्ध हुआ।
जैसे इसी शहडोल बाईपास सड़क विकास के नाम पर गोरतरा स्थित गुरुदीन शर्मा के
आश्रम की जमीन को भू माफियाओं ने सड़क विकास के आधार पर हथिया लिया और आश्रम में बनी समाधि समाधि ऊपर कोई दिया जलाने वाला भी नहीं है, क्योंकि समाधि भू माफिया के कब्जे में चली गई है और गुरुदीन दीवार कूदकर दिया जलाने नहीं जा सकता। क्योंकि यह चर्चा भी गर्म हुई कि कुछ समाधियां यशवर्धन सिंह के भूक्षेत्र में प्रभावित हुई थी। जिनके साथ वही हुआ जो सड़क विकास निगम के पैरों तले कुचल दी गई।
क्या यही हिंदू संस्कृति है...?
क्या यही हिंदुत्व है...?
अथवा हिंदू सनातन परंपरा....?
यह एक बड़ा प्रश्न है।
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