तालाब हत्यारों को, किसका वरदान..?
जस का तस....
क्यों नहीं बदलती व्यवस्था......?
(त्रिलोकीनाथ)
आज मैंने 18 साल पहले एक पत्र को पाया जिसने मैंने तत्कालीन कलेक्टर से अपेक्षा की थी कि वह तालाबों के जीर्णोद्धार पर गंभीर हो और वे गंभीर रहे भी। उनका यह पत्र नगर पालिका
शहडोल और शहरी विकास अभिकरण को गया किंतु उनके अधिकारियों ने कितनी गंभीरता से लिया, आज 18 साल बाद हम जब यह देखते हैं तो पाते हैं कि सब "सुन्य बटे सन्नाटा है"।
नगर पालिका परिषद कि चाहे नेता हो, चाहे अफसर हों; सब मिलकर शहडोल नगर पालिका क्षेत्र के सभी तालाबों को नष्ट करने में ज्यादा भूमिका अपनाएं हैं ।उसमें भ्रष्टाचार के कितने अवसर हैं इसके आधार पर उन्होंने कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया है। इसका परिणाम भी यह रहा कि कुछ अधिकारी को कमिश्नर ने सस्पेंड कर दिया, भ्रष्टाचार के लिए। किंतु उन अधिकारियों उस शिकायत है कि जब तत्कालीन कलेक्टर ने इस भ्रष्टाचार को संरक्षित किया था और बढ़ावा दिया था तो हमारा दोष कहां है..?
अब जैसा कि पूर्व सीजेआई सांसद रंजन गोगोई ने कहा है कि भ्रष्टाचार अब स्वीकार कर लिया गया है इस आधार पर कह सकते हैं उनकी बेईमानी पूर्ण तर्क पूरी तरह से पारदर्शी हैं। और यह पारदर्शिता वर्तमान में तालाबों के प्रति जो संवेदनहीनता प्रशासनिक नजरिए से दिख रही है वह अपने आप में स्पष्ट है। कि मुख्य मार्गों के तालाब भी दम तोड़ रहे हैं ।क्योंकि भू-माफिया नेताओं और अधिकारियों को जूते के तले दबा रखा दिखता है। उसे मालूम है किस नेता की और किस अधिकारियों की कितनी औकात है और औकात के हिसाब से वह उन्हें टुकड़े भेजता रहता है ।
यही कारण है कि 2002 में अपरकलेक्टर शहडोल की ओर से जारी पत्र नगर पालिका परिषद और शहरी विकास अभिकरण की रद्दी की टोकरी में पड़ा हुआ है।
बहरहाल बाद में भी 2009 में कमिश्नर शहडोल ने इस पर गंभीरता दिखाई थी और तालाबों के प्रति इस जागरूकता आई किंतु जल्द ही वह खानापूर्ति करके चली गई। अब शहडोल के संवेदनशील कमिश्नर राजीव शर्मा ने तालाबों के प्रति 1 जनवरी से जीर्णोद्धार का सपना देखा है क्या वह उस पर अमल कर पाएंगे...? यह इस बात से प्रमाणित होगा कि उन्होंने जो लक्ष्य रखे हैं उसके प्रति अधीनस्थ आमला उनकी बातों को कितना तवज्जो देता है...? क्या उनकी बातों में भ्रष्टाचार की संभावना जिंदा है, अगर जिंदा नहीं होगी तो तालाब भी जिंदा नहीं होंगे...। अब तक के अनुभव से फिलहाल तो हमने यही देखा है। क्योंकि शहडोल के मुख्य सड़क मार्गों और बाजारों के नित्य प्रतिदिन दिखने वाले तालाब नियमित रूप से नष्ट हो रहे हैं... और नगर पालिका परिषद उनका फीता काट रही है याने उसे नष्ट होता देख भी रही है ....
तो देखना होगा कि हालात जस के तस होंगे या फिर कहीं कोई पुरुषार्थ तालाबों को उसकी लाज को बचा सकता है अथवा हमारा सिस्टम ही नपुंसक-पुरुषार्थ का प्रतीक बनता जा रहा है.....?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें