सोमवार, 15 नवंबर 2021

अजीबोगरीब है नया इंडिया का पीपीपी मॉडल

 अजीबोगरीब है नया इंडिया का पीपीपी मॉडल

मालवा भूमि में

 रानी कमलापति को स्वाभिमान


 रक्षा हेतु मिला था मरने के लिए पानी....

विंध्य में केवल, स्वाभिमान के लिए जिंदा है केवल सिंह....

(त्रिलोकीनाथ)

कहते हैं करीब 400 साल पहले मालवा क्षेत्र की खूबसूरत रानी कमलापति अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए शत्रुओं से लड़ते हुए जल समाधि ले ली थी और नया इंडिया में उनके सम्मान की और जनजाति समाज के स्वाभिमान वाले वीर बिरसा मुंडा भगवान के स्मृति दिवस पर भारत के पहले पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल का बंसल ग्रुप के 45 साल को प्लीज में प्राप्त करीब 450 सौ करोड़ रुपए के प्राइवेट रेलवे स्टेशन ,हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर "रानी कमलापति रेलवे स्टेशन" कर रेलवे को गौरवान्वित किया गया है। ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र


मोदी ने 15 नवंबर को भोपाल पर लोकार्पण समारोह समारोह में उद्बोधन दिए ।माना जाता है इससे जनजाति समाज को आजादी के बाद पहली बार सम्मान मिल रहा है

लेकिन कभी विंध्यप्रदेश की पहली आत्मनिर्भर कोयला कालरी खदान उमरिया जिले की नौरोजाबाद में अपनी जमीन गवा कर काम करने वाले जनजाति समाज के केवल सिंह को केवल अपने स्वाभिमान की रक्षा की लड़ाई के लिए अघोषित पीपीपी मॉडल के सामने मरने के लिए पानी भी नसीब नहीं होता दिख रहा .....? क्योंकि वह जिंदा रहना चाहता है।

 यहां पर स्थानीय नौरोजाबाद थाना क्षेत्र में सूदखोर उमेश सिंह के साथ नौरोजाबाद थाना के साथ सूदखोरी उद्योग का जो पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल वर्षों से विकसित होकर क्षेत्र के दलित समाज के लोगों को शूद खोरी का शिकार बना अपना सफलता से शुद्ध खोरी उद्योग चला रहा है उसे तोड़ने की ताकत मालवा क्षेत्र में भोपाल स्थापित जनजाति आयोग में भी नहीं दिखाई देता।

 इस कारण हताशा और निराशा में केवल सिंह अपने स्वाभिमान का संघर्ष मृत्यु की लक्ष्य तक लड़ता दिखाई दे रहा है। है ना एक बड़ा संयोग की  करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले


झारखंड के युवा बिरसा मुंडा गुलामी से संघर्ष करते हुए कम उम्र में ही समाज सेवा के चेहरा बन गए और अपने समाज में बिरसा भगवान कहलाने लगे थे तब देश गुलाम था। उन्हीं की विरासत संभाले आजादी के 75 साल के अमृत महोत्सव में उमरिया जिले के नौरोजाबाद रहने वाले 70 साल के केवल सिंह गोड़ अब स्वाभिमान पूर्ण जिंदगी के लिए संघर्षरत मृत्यु की लक्ष्य लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि उनके क्षेत्र के सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह आदिवासी हैं, उनके क्षेत्र के विधायक राम सिंह आदिवासी हैं, और विधायक के पिता ज्ञान सिंह उनके बगल के गांव के पूर्व मंत्री व सांसद रहे उनके रिश्तेदार हैं प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार की वरिष्ठ कैबिनेट याने टॉप 5 मिनिस्टर्स में सुश्री मीना सिंह, केवल सिंह की रिश्तेदार हैं और उनके क्षेत्र की मतदाता भी।

 इसके बावजूद भी उन्हें गुलामी की जिंदगी में थाने के सहयोग से सूदखोरी उद्योग  पीपीपी मॉडल के तहत अघोषित रूप से सफलता से चला रहे उमेश सिंह, केवल सिंह के लिए किसी अंग्रेज सल्तनत से कमजोर नहीं है।

 यह बात इसलिए कह नहीं पड़ रही है क्योंकि करीब 10 वर्ष पहले कालरी कर्मचारी के रूप में पीपीपी मॉडल सूदखोरी से शिकार केवल सिंह गोंड लंबे समय तक बिहार से आए उमेश सिंह के सूदखोरी जाल में संघर्षरत रहे और बाद में रिटायरमेंट पर अपनी जीवन भर की कमाई अपना 17 लाख रुपए एटीएम के जरिए सूदखोर द्वारा निकाल लिए जाने का शिकार हो गए। बात जब थाना नौरोजाबाद में पहुंची तू नौरोजाबाद पुलिस ने अघोषित तौर पर पीपीपी मॉडल का पालन करते हुए एक कथित समझौता-नामा ढाई लाख रुपए का बनवाया और मामले को रफा-दफा करने का काम किया। अब उसी समझोता नामा को दिखाकर केवल सिंह को अपमान पूर्ण जीवन के लिए छोड़ा दिया गया है। जब पूरी तरह से आदिवासी केवल सिंह को लूट लिए जाने का भान हुआ उसने एसपी, कलेक्टर उमरिया कमिश्नर शहडोल, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल और मध्य प्रदेश के अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष के दरवाजे पर भी वीरों की तरह लड़ते हुए अपने आवेदन देते रहे... इसी दौर पर पैसे के अभाव में उनकी धर्मपत्नी पैरालिसिस से शिकार हो गई।

 इसके बाद भी सूदखोरी शोषण के थाना क्षेत्र में स्थापित पी पी पी मॉडल के विरुद्ध उसने अपना अभियान जारी रखा आज भी पूरे आदिवासी समाज का शोषणकारी व्यवस्था में वह उतना ही संघर्षरत है जितना डेढ़ सौ साल पहले भगवान बिरसा मुंडा अंग्रेजो के खिलाफ संघर्षरत रहे। उतना ही उसका संघर्ष है जितना खूबसूरत रानी कमलापति का अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अंततः जल समाधि से वीरता पूर्ण मृत्यु के लिए वह संघर्षरत रही।

 किंतु वह मालवा की भूमि है और मालवा के नेता थे जिन्होंने सदियों बाद रानी कमलापति की वीरता को याद करते हुए देश का पहला खूबसूरत पीपीपी मॉडल रेलवे स्टेशन उनके नाम पर चढ़ाने का काम किया है किंतु विंध्य क्षेत्र की भूमि नौरोजाबाद मे अब कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो केवल सिंह को केवल स्वाभिमान पूर्ण मृत्यु दिला सके...? इसके बावजूद भी वीर केवल सिंह का संघर्ष नौरोजाबाद थाना और सूदखोर उमेश सिंह की सूदखोरी उद्योग के पीपीपी मॉडल मे उन्हें सम्मान पूर्वक जीने का राह बता सके। क्या यही नया इंडिया है...?

 फिर भी देखना होगा कि सक्षम व योग्य नौकरशाह, पुलिस अधिकारी अपनी योग्यता और क्षमता के बलबूते शीर्षस्थ सत्ता पर विराजमान रिश्तेदार नेताओं के होने के बावजूद भी शोषित दलित केवल सिंह को थाना नौरोजाबाद पुलिस-सूदखोर के पीपीपी मॉडल से क्या मुक्ति दिला सकते हैं...?

 क्या विंध्य भूमि के केवल सिंह को मालवा भूमि की कमलापति की तरह न्याय मिल सकता है देखना होगा....?



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