मंगलवार, 16 नवंबर 2021

तालाब रक्षा पर मैं ब्लैकमेलर नहीं बन पाया-4 (त्रिलोकीनाथ)

 मामला जेलभवन के बगल तालाब का (भाग 2 )

अंधा बांटे रेवड़ी,

 चीन्ह चीन्ह कर देय.....

(त्रिलोकीनाथ)

आज मेरे एक मित्र ने व्हाट्सएप मैसेज भेजा जिसमें कुछ इस प्रकार से लिखा था


और यही सत्य है, क्योंकि जब पत्रकारिता मार दी जाती है या मर जाती है तब नागरिक मरे हुए पैदा होते हैं और मरा हुआ नागरिक सिर्फ अपने स्वार्थ की भाषा बोलता है । स्वतंत्र अभिव्यक्ति ,नैतिकता ,ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा, मातृभूमि के प्रति समर्पण इन शब्दों को वह अपने "कमर्शियल ट्रेड मार्क" की तरह प्रचारित करता है। किंतु वास्तव में ना वह इमानदार होता है और न ही कर्तव्यनिष्ठ और एक शब्द "नया इंडिया" में राष्ट्रवाद का भी गढ़ा गया है और जब राष्ट्रवादी शराब के साथ धर्म का कॉकटेल यानी  मिश्रण किया जाता है तथा अपने आप को बहुत संख्यक बताता हुआ पत्रकारिता की हत्या करने में भी गुरेज नहीं करता फिर देश की आजादी को झूठा बोलनेेे या बुलवाने वाले  किसी एक्ट्रेस को चाहे पद्मश्री दे दिया जाए या भारत रत्न उससे क्या फर्क पड़ता है...?

 यही है नया इंडिया का नया स्वरूप ,जिसकी एक झलक हमे शहडोल में भी देखने को मिलती है क्योंकि यहां का मरा हुआ नागरिक, जागरूकता की बात तो करता है किंतु उसे जीवित तालाब की सामूहिक हत्या, थोड़ा घृड़ित शब्दों में कहें तो सामूहिक बलात्कार करता रहता है और उस पर गर्व करता है जैसा कि जेल भवन के बगल वाले तालाब में लगातार हो रहा है....

यह काम शहडोल जैसे आदिवासी मुख्यालय बन चुके आदिवासी क्षेत्र में अधिकारी कर्मचारी


नागरिक मिलकर करते रहते हैं फिर आपके प्रयास कोई मायने नहीं रखते क्योंकि यही नियत है ।अगर विंध्य प्रदेश होता तो राजधानी रीवा होती, तो गुस्सा उतारने आप रीवा जाकर नेताओं से लड़ आते.. यह क्या अत्याचार हो रहा है...?

 किंतु फिलहाल भोपाल है अब भोपाल के मायलार्ड को फर्क नहीं पड़ता। वह इसे गोद लेता है और खुला डाका डालने की छूट भी देता है क्योंकि यही नया इंडिया है। यह बात बार-बार इसलिए सिद्ध करनी पड़ रही है क्योंकि जब शहडोल का एक्शन प्लान नगर निवेश संचालनालय ने बनाया तब ही अपनी पूरी टीम और लाखों रुपए लगाकर महीनों मेहनत करके पढ़े लिखे लोगों की मदद से सर्वे कराया और एक प्रारूप का प्रकाशन किया जिसमें उसने जानबूझ




जेल भवन के पास वाले इस तालाब को नक्शे से गायब कर दिया ।तब  हमने आपत्ति की कि नहीं इसे तालाब बनाया जाए क्योंकि यह तालाब जिंदा है।

संयोग से 2031 के प्रारूप में यह तालाब जिंदा नक्शे में घोषित किया गया।

नजूल ,अभी तालाब को नजूल प्लाट के रूप में देखता है.....?

 यह अलग बात है शहडोल का नजूल विभाग अभी भी उसे जिंदा तालाब मानने की बजाय प्लाटिंग का प्लेस मानकर प्लाट की बिक्री करने में अमादा दिखता है... और इसीलिए उसकी चिंता नजूल के प्लाट में रास्तों को लेकर ज्यादा है।

 वनस्पति इसके की वह तालाब जिस पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री इंद्रजीत पटेल के निर्देश पर लाखों रुपए खर्च करके गहरीकरण करके संरक्षित किया गया था उसे नजूल नक्शे में तालाब दर्ज किया जाए और उसका परिणाम भी आया ।किन्तु शहडोल नगर पालिका परिषद के कतिपय भ्रष्ट लोगों ने अपने भ्रष्टाचार के प्रति समर्पण दिखाते हुए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इस तालाब के अंदर एक आवास किसी चुटकुले-नेता के इशारे पर या तो उसका वोट बैंक परमानेंट करने के लिए आवास बना दिया या फिर नया इंडिया की दूरदृष्टि लेकर तालाब पर कब्जा करने के दृष्टिकोण से बेनामी प्रधानमंत्री आवास बना दिया गया।

 बहराल अब उस प्रधानमंत्री आवास के खुले मार्ग की में झाड़ियां लगाकर तालाब को छुपाया जा रहा है ताकि नया अतिक्रमण करने की नए तरीके का षड्यंत्र रचा जा सके.... क्योंकि अगर तालाब आम आदमी को नहीं दिखेगा, उधर से गुजरने वाले कमिश्नर, जिला न्यायधीश और पुलिस अधिकारियों आदि को नहीं दिखेगा तो आसानी से इस तालाब को नष्ट करने का काम होगा ....क्योंकि अगर पत्रकारिता मर जाएगी तो नागरिक तो मरा हुआ ही पैदा होता है।

 तो वह तो देखेगा ही नहीं क्योंकि यह नौकरसाह इसी बात की खाते हैं। किन्तु वे इसे देखें तो कहीं उनकी कर्तव्यनिष्ठा से "आत्मा की आवाज" प्रधानमंत्री बनने वाली श्रीमती सोनिया गांधी की तरह जाग ना जाए...? इसलिए भी तालाब में झाड़ियों से छुपाने की खुली अनुमति संबंधित प्रशासन द्वारा दे दी जाती है...।

 तो क्या फर्क पड़ता है कि दूसरे रास्ते पर कोई नया निर्माण करके इस तालाब को नष्ट करता रहे... जब झाड़ियां लगाकर प्रधानमंत्री आवास बनाकर गरीबों का उद्धार हो रहा है तो कुछ अमीरों को ऐसा ही अपराध करने के लिए गरीब का नकाब पहनाकर नजरअंदाज क्यों नहीं करना चाहिए.....?

 क्या यह सिर्फ पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वह इसे बार-बार देखें अब पूरा जीवन इस "मूर्खतापूर्ण-संघर्ष "में नष्ट करने के बारे में सोचें ...?

क्यों नहीं जागरूक नागरिक समाज का हक है कि वह भी प्रशासन को तालाब की रक्षा में एक ब्लैकमेल करने का प्रयास करें और बेहतर ब्लैकमेलर बन सके ... एक नेता या एक अधिकारी भी उसमें न्यायपालिका का भी कोई अधिकारी हो सकता है। नागरिक किसी एक तालाब को नष्ट होने से बचा सकता है तो वे अपने मां-बाप के प्रति अपने पुरखों के प्रति कर्तव्य कर रहा होता है। ऐसा श्रुतियों ने हमें समझाया है ।

हालांकि कानून और नगर निवेश संचनालय के निर्देश भी यह कहते हैं कि तालाब यह जलाशय कि 20 मीटर परिधि में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए ताकि तालाब, उसके साथ वृक्ष ,उसके साथ स्वस्थ पर्यावरण ,चिड़िया पशु पक्षी आदि उस पर जो परिस्थितिकी पैदा करें वह मानव समाज के स्वस्थ चिंतन को अथवा स्वस्थ मानव समाज का निर्माण करेगी।

 किंतु शायद लोकतंत्र में यह बेगारी आम नागरिक समाज, पत्रकारिता पर छोड़ दिया है कि वे स्वीपर की तरह इस पर काम करता रहे.... बिना किसी संसाधन के.... बिना किसी अधिकार के और बिना किसी परिश्रम के प्रतिफल के ....ऐसे में पत्रकार को किसी एक तालाब की रक्षा करने के लिए ब्लैकमेल करने का संकल्प ही तालाब को बचा सकता है।

 क्योंकि शुरुआत में ही कम से कम उसे उन अतिक्रमणकारियों का अघोषित दुश्मन हो जाना पड़ेगा ,जो तालाब को नष्ट करने के लिए अपने तन-मन -धन, यदि वह गरीब है तो अपनी गरीबी से ...और अगर अमीर है तो अपनी अमीरी से आपका दुश्मन हो जाएगा। फिर भी यह पुरखों की विरासत है लोकतंत्र में पत्रकारिता की जिम्मेदारी भी ।तो उसे यह करते रहना चाहिए ताकि आप गर्व से कह सकें उन पुरखों से कि हमने आपकी विरासत को संभाला... क्योंकि हमारा लोकतंत्र एक मरा हुआ समाज पैदा कर रहा है... और वह समाज प्रश्न सिर्फ पत्रकारिता पर खड़ा करने का प्रयास करता है ......?

क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर लोकतंत्र का यह स्तंभ "गरीब की लुगाई है ,कोई भी राह चलते उसे "अपनी भौजाई बना लेता है..." और अपने अपने घर के "भाभियों से भयभीत रहता है.." कि उसे कहीं धक्के देकर बाहर ना निकाल दे।

 अन्यथा जब आर एस एस के वर्तमान हेड क्वार्टर में तालाब को नष्ट करने का काम हो रहा था उसके प्रशासन द्वारा, तब कर्तव्यनिष्ठ-राष्ट्रवाद जिंदा क्यों नहीं हुआ...? यह बड़ा प्रश्न है, और इसका प्रायश्चित वे करना नहीं चाहेंगे क्योंकि गुलाम मानसिकता, गुलाम नागरिक ही पैदा करती है.... शायद हम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं ...

क्या इन  वार्ड के तमाम पार्षदों की नैतिक जिम्मेदारी नहीं थी कि वह पटवारी राजस्व अमला प्रशासन को समय रहते ताकीद करते और एक लड़ाई लड़ते ताकि तालाब बचे रहते ।लेकिन जब "सैंया भए कोतवाल तो डर काहे..." का


प्रकाश जगवानी नगर पालिका अध्यक्ष हुए तो आर एस एस कार्यालय के बगल वाले तालाब की रकबाा आधा कर हत्या केे प्रयास का संकल्प उन्होंने शायद उस वक्त लिया ,जब पहले पहल शहडोल के सबसे बड़े घरौला तालाब के जल क्षेत्र को आधा से भी कम कर दिया और उस पर

वृक्षारोपण करा दिया, ताकि अतिक्रमण कारी वोट बैंक... गुलाम नागरिक पैदा किए जा सके।

 तो, यह तो कहानियां है जो भविष्य में भी नई पीढ़ी को मनोरंजन के लिए बताया जाता रहेगा कि कैसे शहडोल के "वीर-वीरांगनाओं" ने तालाबों की हत्या कर अपना साम्राज्य स्थापित किया है...

 बात जेल भवन के बगल वाले तालाब की थी, क्या उसे इसलिए भी संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई कभी शहडोल आकर जेल भवन के बगल वाले तालाब के भूखंड पर न्याय की गुहार किए थे ...?यह अलग बात थी कि उन्हें नहीं बताया गया था कि वह तालाब है ।

अब तो नगर निवेश ने नक्शे में 2031 के प्रारूप में उसे तालाब भी घोषित कर दिया है  तो क्या तालाब संरक्षण की दिशा में हमारा लोकतंत्र अपने जीवित होने की घोषणा करेगा और तालाब को संरक्षित करेगा ...?यह एक बड़ा प्रश्न है ।अन्यथा जिस प्रकार से 2011 के नगर निवेश संचनालय के प्लान में गणेश मंदिर के सामने का बड़ा तालाब नक्शे में चिन्हित था और 2031 में जब प्लान बनाया गया तो उसे गायब कर दिया गया... इस पर भी चर्चा करेंगे ।,किंतु जेल भवन के बगल वाले तालाब की चर्चा और चिंता इसलिए जरूरी है कि अगर भारत के प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री बाजपेई


इस तालाब को नहीं बचा पाए और न्याय उसके साथ नहीं दे पाए, तो पत्रकार कितना भी ब्लैकमेल करें वह तालाब को लोकतंत्र के चंगुल से नहीं छुड़ा पाएगा.. फिर यह शिकायत बनी रहेगी की मरी हुई पत्रकारिता मरा हुआ नागरिक पैदा करती है...।

 इसलिए पत्रकारिता के प्रति जब भी चिंतन मनन की जिज्ञासा पैदा हो तो उसकी आर्थिक सुरक्षा, चिंतन-मनन का पहली सर्त  होनी चाहिए... फिर वह चाहे शहडोल में लागू हो या फिर दिल्ली में एक जैसी बात है।

 क्योंकि तालाब जिंदा हैं तो हम जिंदा हैं, मानव समाज जिंदा है क्योंकि अगर पत्रकारिता जिंदा है तो लोकतंत्र जिंदा है.... ऐसा अंधविश्वास दिमाग में जितनी जल्दी बैठ जाएगा उतना लोकतंत्र के प्रति हम निष्ठावान कहलायेंगे.... अन्यथा भ्रष्टाचार और गद्दारी तो कर ही रहे हैं सामूहिक रूप से हत्या कर रहे और इस से मर रहे विरासत में प्राप्त तालाब इसका प्रमाण पत्र है .(....अनवरत)




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