शनिवार, 18 सितंबर 2021

झटके में क्या गटकर गए, गडकरी जी.(त्रिलोकीनाथ)

भारतीय पूंजीवाद-तालिबान

 का नया चेहरा...?


झटके में क्या गटकर गए, गडकरी जी..

(त्रिलोकीनाथ)

इसमें कोई शक नहीं की पूंजीवादी विस्तार में नागपुर में जिस प्रकार के हाईवे/ मेट्रो आदि में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के निर्माण और विकास की जो चर्चा होती है उससे उस जमात में गडकरी बुद्धिमान व्यक्ति प्रतीत होते थे किंतु जो "फेक-वीडियो" सामने आया है उससे लगता है की क्रूर पूंजी पतियों में भी बुद्धिमान गुलाम पालने की अच्छी कला आती है।

तालिबान आंदोलन जिसे तालिबान या तालेबान के नाम से भी जाना जाता है, एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आन्दोलन है जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी। तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी । ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैंतो पूंजीपति का कट्टरपंथ क्या गडकरी का वास्तविक चेहरा है जैसा कि भाजपा के कभी थिंक टैंक गोविंदाचार्य ने अटल बिहारी वाजपेेेई के लिए कहा कि वे तो मुखौटा है। उनके अनुसार क्या गडकरी भी एक  वास्तविक मुख है ...?

 जिन्हें भारत की स्वतंत्रता से नफरत लगती है उस जमात के लोगों की नजर में भारत में जो फोकट बाज है उसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार,दिव्यांग, भारत की आधी आबादी महिलाये आदि-आदि भारत में फोकट का खाते हैं, व रहते हैं ।ऐसा पूंजीपति मल्टीनेशनल की प्रवक्ता की भाषा से लगता है। धोखे से ही सही अगर यह बात उस जमात के सबसे गंभीर आदमी की मुंह से निकली है जिसे हम फैक-वीडियो समझते हैं किंतु जिस प्रकार से वीडियो वायरल हुआ है और जिस प्रकार इसका खंडन नहीं हो रहा है उससे लगता है यह सही है ।

 अगर यह सही है तो स्वतंत्र भारत का संविधान हाईजैक हो चुका है और इसे मंत्री का नकाब पहने उस जमात के लोगों ने हैक कर लिया है। ऐसा समझना चाहिए ।तो पहले भाषा को समझें क्या कहा अब तक बुद्धिमान दिखने वाले नितिन गडकरी ने...

अब बात इसकी कि क्या यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पसंद वाले गडकरी का सच है, अगर सच है तो भविष्य के गुलामी की यही हकीकत है। जो पूंजीवादी हमारेेे संसाधन में मल्टीनेशनल केे लिए विकास का रास्ता खोलती है। जिसमें आम आदमी ,स्वाभिमनी समाज, दलित पिछड़ेे वंचित लोगों तथा भारत की आधी आबाद भारतीय महिलाओं के लिए के लिए कोई जगह नहीं होगी।
 तो क्या यही है नया इंडिया। तो एक फिल्म का जिसकेेेे नायक मनोहर सिंह थे उसे भी देखें कि क्या आज के नेता का यही चेहरा है और उसके लिए तैयार भी रहे।

क्योंकि ऐसे नेता माफी मांगना नहीं जानते उन्हें मालूम है यह भाषा और सोच उनकी संस्कार का हिस्सा है उन्हें भारत के लोकतंत्र में षड्यंत्र करके सिर्फ भारतीय संसाधन को बड़ा बाजार बनाकर लूटने का रास्ता ढूंढना होता है। क्योंकि वे संस्कार रुप से गुलाम है और अपने सपनों के भारत के लिए काम कर रहे हैं।

 इसीलिए शहडोल जैसे संविधान में संरक्षित पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्र मैं भी खुलेआम कानून व्यवस्था की मंशा के खिलाफ लूट का आलम होता है। कहीं-कहीं जब कार्यपालिका का जमीर उनका संविधान जगाता है तो एक्सीडेंटल रेत माफिया जैसी कोई छोटी मोटी कार्यवाही भी हो जाती है जिससे आम आदमी अपने स्वतंत्र भारत पर गर्व करता है। कि धोखे से ही सही देश अभी स्वतंत्र है किंतु तालिबान के अंदाज में भारतीय तालिबानी सत्ता में इसी प्रकार से अपनी भाषा में होने का एहसास कराते रहते हैं ।गडकरी की भाषा भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का और भारतीय पत्रकारिता के लिए अपमान भरा इतिहास है। जो बहुत ही निंदा जनक है।उनका जमीर जरा भी जिंदा हो तो तत्काल माफी मांगना चाहिए लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे कयोंकि तालिबानी कभी ऐसा नहीं करते। उनके नजर में ना तो स्वतंत्रता की इज्जत है, ना महिलाओं की, ना पत्रकारों की... यही नया इंडिया का नया रामराज्य भी है...?


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