खनिज माफिया पर बड़ी कार्यवाही
गंदी राजनीति का परिणाम
अथवा
कर्तव्यनिष्ठा ने दिखाया असर ....
(त्रिलोकीनाथ)
करीब 2 वर्षों बाद पुलिस और प्रशासन ने संयुक्त कार्यवाही का प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, जिसमें खनिज माफिया का पर्याय बन चुका आदिवासी क्षेत्र को लूटने का सिस्टम को लूटने के प्रतिबंध के संदेश दिए गए ।अगर यह आदिवासी क्षेत्र से संचालित हो रही भाजपा की आंतरिक राजनीति का हिस्सा है तो राजनीति कैसे कैसे खेल खेलती है उसका प्रमाण पत्र भी है।
हालांकि इसकी शुरुआत का दावा कर ब्यौहारी के विधायक शरद कोल ने अपनी पहल का परिणाम बताया है
किंतु जैसा दिखने में आ रहा है की कार्यपालिका में इमानदार कर्तव्यनिष्ठ और निर्भय अधिकारियों की नियुक्ति के बाद यह परिणाम आया है इसलिए पहली नजर में राजनीतिक संरक्षण में चलने वाली माफिया गिरी पर कार्यपालिका का यह कड़ा प्रहार भी है कि हम तनख्वाह राष्ट्र की खाएं और गुलामी भ्रष्टसत्ता के संरक्षण की करें यह नहीं चलेगा..., यह भी एक संदेश है।
बहराल जो भी हुआ हो पुलिस की इस प्रेस विज्ञप्ति को समझने का प्रयास करें तो भारत की संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र को राष्ट्रपति जी का संरक्षण हासिल भी है, सिर्फ कानूनी औपचारिकता नहीं है यह कार्यवाही उस संविधान के शपथ की घोषणा भी है। तो देखिए पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति रविवार को अपने आप में यूनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ इस प्रकार की रही....
जो आईएएस अफसर एस डी एम रहे लोकेश जांगिड़ की कार्यवाही के अंदाज को पुनः याद दिलाता है जिसमें इस प्रकार की माफिया गिरी पर अंकुश लगाते हुए सुहागपुर थाने में पोकलेन, जेसीबी ,हाईवा, ट्रैक्टर आदि जब्त करके खड़े किए थे।
यह अलग बात है कि सोहागपुर थाने मे इस पर माफियाओं के खिलाफ कैसी कार्यवाही किया...? और उसे इन 2 वर्षों में कितना दंडित करा पाया ...?हालांकि यह सार्वजनिक प्रकाशन का हिस्सा नहीं रहा किंतु शहडोल के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डीसी सागर का पत्रकार वार्ता में दबंगई के साथ किया गया दावा की "पुलिस ऐसी कार्यवाही करें ताकि कोई भी बचने ना पाए" यह अपने आप में किसी एडीजीपी की एक बड़ी शपथ भी है जो पत्रकारों के समक्ष ली गई है। इसका परिणाम भी यह बताएगा कि यह कार्यवाही वास्तव में संविधान के सच्चे सिपाहीयों की कर्तव्य-निष्ठा का परिणाम था या फिर गंदी और भ्रष्ट राजनीति मैं पतित राजनेताओं की आदिवासी क्षेत्र में उल्लू बना कर अपने राजनीतिक हित साधने का जरिया मात्र था....?
दरअसल जबसे विन्ध्य की राजनीत में राजनीतिक इच्छाशक्ति मर गई है, जो शहडोल संभाग में तो लगभग मरी हुई ही है.... ? तब से बाहरी राजनेताओं का स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों में लूट की प्रतियोगिता इस क्षेत्र के दमन का कारण है और उसे कोई बचा सकता था तो वह लोकतंत्र की संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा का भाव ही बचा सकता है। और वैसा पत्रकार वार्ता मे देखने को भी मिला। और अगर यह सच है तो राजनीतिक माफिया गिरी का बाहरी हस्तक्षेप रोकने का कदम शहडोल के लिए एक वरदान साबित होगा ।
किंतु इतनी जल्दी में यह सब तय होने वाला नहीं है क्योंकि आखिरकार वह प्रश्न प्रेस विज्ञप्ति में छुपे हुए हैं जो चीख-चीख कर कहते हैं कि बीते 2 सालों में क्या होता था...?
इसी प्रकार की कार्यवाही हमें सड़क माफिया गिरी में, जंगल माफिया गिरी में, भू-माफिया गिरी में तालाब और नदी विनाश में खुलेआम दिखती है। जिसमें सबका जिम्मेदार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अधिकारी सात पर्दे के अंदर बैठकर एनओसी बाटता रहता है। आज की कार्यवाही पर्यावरण अधिनियम में लोकतंत्र की सुरक्षा का संदेश भी है किंतु पर्दे में रहने वाला प्रदूषण का वृत्त अधिकारी शहडोल की भ्रष्ट हो चुकी सत्ता में कानून को आंख दिखाता प्रतीत होता है जो प्रेस से इसलिए बचता है ताकि जवाबदेही सुनिश्चित न होने पाए। आज भी मेडिकल सहित अन्य क्षेत्र के भ्रष्टाचार में इस विभाग की भूमिका कई मौतों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है और वह उसी तरह विराट और भव्य है जैसे कि सोन नदी को छलनी करने वाली खनिज माफिया की कार्यप्रणाली किसने पहली बार बताया की पनडुब्बी रेत और पानी को अलग करने वाली कार्यप्रणाली का सिस्टम भी काम करता है कैसे तमाम प्राकृतिक संसाधन विश्वव्यापी नर्मदा को संरक्षित करने वाली किरण की घाटी टूट कर सड़क मार्ग को प्रभावित करती है जिस पर अभी कोई प्रदूषण विभाग का स्पष्टीकरण नहीं आया है।
बहरहाल आदिवासी विशेष क्षेत्र के उस नागरिक की दिलदारी को सलाम करना चाहिए जो सूत्र बनकर पुलिस और प्रशासन ही नहीं लोकतंत्र के लिए भी राजनीतिक माफिया गिरी पर गहरी चोट पहुंचाई, जिससे यह प्रमाणित हुआ है कि लोकतंत्र के सच्चे सिपाही अगर एक राय होकर काम करें तो परिणाम बेहतर से बेहतर हो सकते हैं।
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