शनिवार, 12 जून 2021

फिर नये फंडा में फंसा, एसएमसी का फंड

गंदा है तो क्या हुआ, धंधा तो है...

फिर नये फंडा में फंसा,


एसएमसी का फंड 





विकेंद्रीकरण से केंद्रीकरण के बीच में

क्यों हो रहा है भ्रष्टाचार का नवाचार

भारत में शिक्षा जगत पर लगातार नए नए प्रयोग होते रहते हैं। कभी शैक्षणिक सामग्री पर तो कभी निर्माण सामग्री पर और फिर कभी शक्तियों के विकेंद्रीकरण पर। लोक कहावत है । "ठाढ़े बनिया का करें  या कोठरी का धान व कोठरी मा करें "।

शहडोल। वैसे तो शिक्षा का अमला अपने भ्रष्टाचार की करतूतों से मील का पत्थर गाड़ता रहता है और यह कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार उसकी नजर स्कूल में कभी पालक शिक्षक समिति के रूप में आत्मनिर्भर बनाने के दृष्टिकोण से गठित की गई समितियों को जो अब "एसएमसी" के रूप में बदल गई हैं, जिसमें छात्रों के अभिभावक अध्यक्ष, और स्कूल टीचर सचिव होता है। तथा स्कूल की विकास के योजनाओं का क्रियान्वयन इसी के द्वारा खोले गए बैंक खातों के द्वारा नियोजित होता रहा है। अब स्कूल की इन s.m.c. के खातों पर ब्यूरोक्रेट्स की नजर पड़ी है। वह इसमें नवाचार करने की दृष्टिकोण से नई व्यवस्था लागू करने के लिए जून माह का अंतिम सप्ताह मुकर्रर किया है।


ताकि पूरे स्कूल अपनी तमाम प्रकार की जमा पूंजी राशि को इनके द्वारा नियुक्त एक खाते में सिंगल नोडल एजेंसी "एस एन ए" मे ट्रांसफर कर दे। हालांकि अन्य प्रकार के भी खातों को इसी पर ट्रांसफर करने की बात कही गई ।तो यह एक प्रकार का स्कूल का अपना ट्रेजरी-सिस्टम होगा किंतु विशेष रूप से विकेंद्रीकृत दूरस्थ अंचल के स्कूलोंं हॉस्टल्स को नियंत्रित किया गया है। ताकि उस खाते से स्कूल की अर्ध शासकीय खाते के लिए आने वाली समस्त राशियों का प्रबंधन किया जा सके। और राज्य में बैठी हुई इकाइयों को मानिटरिग की सुविधा मिल सके, जो कभी होती नहीं। हालांकि इस प्रकार की व्यवस्था में यह तो सुनिश्चित किया गया है कि अब स्कूल की तमाम खाते जीरो अमाउंट पर नाम मात्र के खुले रहेंगे और उनका नियंत्रण एकल खाते से होता रहेगा इस नवाचार में अपने कई फायदे हैं तो समिति प्रबंधन के लोगों को शिकायत है कि कई प्रकार के स्वतंत्रता का हनन भी है। और उसके परिणाम भी सामने देखने को मिलेंगे ।
 बहरहाल अब तक एसएमसी के खातों के जरिए उच्चाधिकारियों का भ्रष्टाचार जो विकेंद्रीकृत होकर स्कूल स्तर के खातों के भंवर जाल में खत्म हो जाता था उसे जब तक कोई राज्य स्तरीय यह जिला स्तरीय बड़ा भंवर जाल नहीं पैदा होगा तब तक उसका पता भी नहीं लगेगा । बल्कि नए नए प्रयोग भी हो सकेंगे। जैसे व्यापम का घोटाला एक स्थापित मील का पत्थर है। जिसमें कितने का भ्रष्टाचार हुआ, कितने मर गए, कितने थक गए सरकार के पास ऐसे कोई स्पष्ट आंकड़े नहीं है । अब तो इसको भी कोविड काल में शासन द्वारा मरने वालों की आंकड़े छुपानेे का खुला खेल भी चल रहा है ।

हां, व्यापम घोटाला का ब्रांड एंबेसडर के रूप में भारतीय जनता पार्टी का प्रभावशाली नेता लक्ष्मीकांत शर्मा काफी दिनों जेल में रहने के बाद छूटे अंततः मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं। हो सकता है व्यापम घोटाला की महत्वपूर्ण कड़ी की भी मृत्यु इसके साथ हो जाए। यह इसलिए हुआ क्योंकि भ्रष्टाचार का सिस्टम शक्तियों के केंद्रीकरण के कारण हमेशा होता रहा है । 

शहडोल क्षेत्र में भी इस प्रकार की शैक्षणिक गतिविधियों में तमाम भ्रष्टाचार अपने आप में मील के पत्थर हैं यदा-कदा किसी दबाव में अथवा सिस्टम के खिलाफ काम करने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही भी हो जाती है हाल में जैसिंहनगर के खंड शिक्षा अधिकारी अशोक शर्मा काफी चर्चित हुए हैं जबकि इनके अन्य साथी सहयोगी, जैसे खंड शिक्षा अधिकारी सोहागपुर चंदेल समकक्ष भ्रष्टाचार के बाद भी सुरक्षा जोन मे बने हुए हैं। इसी प्रकार से कई नामी-गिरामी लोगों का वर्चस्व शैक्षणिक भ्रष्टाचार में इसलिए कायम है क्योंकि वे भ्रष्टाचार की सिस्टम का अनुपालन करते हैं।अब देखना होगा भ्रष्टाचार की इस नवाचार में बंद पोटली पर कितने भ्रष्टाचार दफन हैं। यह तभी पता चलता है जब पोटली की चैन खोली जाए। किंतु इस समय लॉकडाउन के बाद स्कूल के शिक्षकों को सिस्टम  की ट्रेनिंग देने के लिए तमाम बैठकर हो रही हैं। उन रास्तों का भी अनुसंधान हो रहा है जिनके जरिए जिला स्तर पर भ्रष्टाचारियों का अपना वर्चस्व कायम रह सके। देखना यह होगा कि राज्य स्तर और जिला स्तर पर कौन भ्रष्टाचारी कितनी सफलता अर्जित करता है ।

क्योंकि जो भी नवाचार होते दिखाई दे रहे हैं वह सिर्फ शक्तियों के विकेंद्रीकरण को खत्म करते दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि पिछले भ्रष्टाचारो पर किसी भी नवाचार का कोई लाभ नहीं हुआ है। तो लॉकडाउन में मुफ्त की तनख्वाह खाने वाले शिक्षा जगत के ब्यूरोक्रेट्स कुछ इस अंदाज में काम कर रहे हैं।" ठाड़े बनिया का करें.... यह कोठरी का धान व कोठरी मा करें।"

  और यह  होगा भी क्यों नहीं, अगर शिक्षा जगत में आदिवासी विभाग में कोई तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी जैसा बाबू, सहायक आयुक्त जैसे पद को  भ्रष्टाचार के अपनी योग्यता से हाईजैक कर लेता है और यही फिर सिस्टम बन जाता है।



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