शनिवार, 13 मार्च 2021

बिके थाने की दर्दनाक कहानी - त्रिलोकीनाथ

 "प्रत्यक्षण् किम् प्रमाणम"

दिनभर पुलिस-समीक्षा होती रही और और जब बाहर निकले समीक्षा इंतजार करती मिली....

(त्रिलोकीनाथ)

तो शनिवार 13 मार्च दिन भर पुलिस कप्तान अवधेश गोस्वामी जिले के पुलिस अमला को बुलाकर कानून व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे, यानी समीक्षा को ढूंढ भी रहे थे... और जब देर रात मीटिंग खत्म हुई तो तीन समस्याएं, साक्षात समीक्षा के रूप में मीटिंग स्थल के बाहर  उनका इंतजार कर रही थी।


और मजे की बात यह है कि तीनों समीक्षाएं, व्यवहारी थाने से संबंधित थी। तीनों समस्याएं इस बात पर शिकायत कर रही थी कि थाना प्रभारी ने उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की और वे प्रताड़ित होकर अंततः पुलिस कप्तान का देर रात पुलिस समीक्षा बैठक के बाहर इंतजार कर रहे हैं।


 स्वभाविक है पुलिस कप्तान जिस कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपने थाना प्रभारियों के और उच्च अधिकारियों के साथ समीक्षा कर रहे थे जब व्यवहारी थाना की तीन समस्याएं जिसमे अलग-अलग गांव के दो चतुर्वेदी परिवार में प्रताड़ना के मामले और एक गर्भवती महिला की भूमि पर सरकारी स्थगन होने के बाद भी कथित तौर पर अवैध निर्माण का मामला की रिपोर्ट नहीं लिखी जा रही थी, पुलिस कप्तान के लिए चिंता का विषय बन गया। उन्होंने इसके निदान के लिए उपस्थित थाना प्रभारी पटेल की तरफ देखना भी उचित नहीं समझा और तीनों समस्याएं समीक्षा करने के लिए एसडीओपी को तत्काल दे दी गई।

 एक मामले में बुजुर्ग चतुर्वेदी परिवार को तत्काल राहत देते हुए 307 धारा कायम करने का निर्देश दिया तो दूसरे मामले में चतुर्वेदी परिवार के कथित आत्महत्या मामले की जांच एसडीओपी को सौंप कर सही जांच का निर्देश दिया और तीसरे में शहडोल में कथित तौर पर अस्पताल में किन्ही गर्भवती महिला को मानसिक प्रताड़ना से मुक्ति देते हुए उनकी जमीन पर स्थगन आदेश का पालन कराने का आदेश किया।

 तो सवाल यह है कि थाना प्रभारी पटेल जी का क्या हुआ..? यह भी अलग बात है कि जब पुलिस कप्तान बंद कमरे में अति गोपनीय समीक्षा मीटिंग कर रहे थे तब ब्यौहारी थाना से प्रताड़ित इन तीनों प्रकरणों पर  किसी अन्य थाना प्रभारी के इशारे पर थाना प्रभारी व्यवहारी श्री पटेल मीटिंग छोड़कर बाहर आकर इन्हें प्रभावित करने का काम किया कि ताकि तीनों समस्याएं डीआईजी कैंपस से पुलिस कप्तान का इंतजार किए बिना वापस चले जाएं ...और उनका समस्या कल समाधान हो जाएगा।

 किंतु तीनों समस्याएं अपने अनुभव के आधार पर कर्तव्यनिष्ठ पुलिस कप्तान अवधेश गोस्वामी पर अतिविश्वास के कारण, बिना मिले वापस जाना उचित नहीं समझा। यह भी पुलिस कप्तान के लिए चिंता का विषय है कि क्या उनके द्वार में आकर कोई प्रताड़ित-प्रभावित परिवार द्वार से भगाया जा सकता है और यदि ऐसा कोई कर रहा है था तो वह कौन लोग थे...? की देर रात तक कि पुलिस कप्तान से कोई भी ना मिल सके।

 चलिए, यह सुखद रहा यदि आपको थाना व्यवहारी में न्याय नहीं मिलता दिखाई दे रहा है तो आप पुलिस कप्तान शहडोल को सीधे मिल सकते हैं अथवा जैसा कि पुलिस कप्तान श्री गोस्वामी ने थाने की बजाय एसडीओपी कार्यालय का रुख देखने के निर्देश दिए हैं। तो एसडीओपी कार्यालय पर भी भरोसा करना चाहिए यदि "थाना  बिकता है, बोलो खरीदोगे...." के तर्ज पर व्यवहारी में चल रहा है.... ।

तो संक्षेप में पहली शिकायत मैं भोलहरा  के बुजुर्ग रामधनी चतुर्वेदी जी का था जिसमें शराब माफिया गुप्ता बंधु ने उनके पुत्र को सिर पर इतना मारा कि 17 टांके लग गए किंतु पुलिस ने उसकी एमएलसी नहीं कराई थी।







दूसरा मामला ग्राम सााखी के चतुर्वेदी परिवार का था जहां कथित तौर पर हत्या की गई है किंतु पुलिस ने उसमें





आत्महत्या करने का प्रकार बनाया था।

 और तीसरा तो अति संवेदनशील एक गर्भवती

 तो देखते चलिए अब जबकि पुलिस कप्तान दिनभर समीक्षा को ढूंढते रहते हैं किंतु थाना व्यवहारी की तीन समस्याएं समीक्षा बनकर पुलिस कप्तान के सामने मीटिंग के बाहर उनका इंतजार करती हैं गोस्वामी जी का अंतिम फरमान क्या होता है.., क्या थाना प्रभारी पटेल तत्काल वहां से अपने चंगू-मंगू के साथ हटाए जाते हैं या फिर वहां ही उन्हें दंडित करने का प्रावधान बनाया जाता है...? ताकि संदेश जाए कि पुलिस कप्तान गोस्वामी के रहते थाना इस स्तर पर नहीं बिकेगा...?

 और यह भी कि उनके द्वार पर आया कोई प्रताड़ित व्यक्ति द्वार से बाहर नहीं भगाया जाएगा तो जो लोग इसमें शामिल थे क्या बे भी दंडित होते हैं...?

 तो दिखते चलिए कानून व्यवस्था क्या सच में चल रही है अथवा पुलिस कप्तान को भ्रम के धुंए में उनके थाना अधिकारी सच्चाई को छुपाने का प्रयास करते हैं...?

क्योंकि जिले के अन्य थानो ने भी कमोवेश इसी प्रकार से प्रकरणों का निपटारा करते हैं...? और पुलिस कप्तान के द्वार में आते-आते दम तोड़ देती है...। थाना व्योहारी की यह तीन घटनाएं इसका अनुपम उदाहरण है।

 बहरहाल ,यह खुशी की बात है की "आशा में आकाश टिका है, स्वांस् तंतु, कब टूटे....." अंतिम आशा के रूप में पुलिस कप्तान की कार्यवाही "देश-भक्ति जन-सेवा" के कानून को जीवित रखती है.....


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