अंततः सपना साकार हुआ....
शहीदों को मिलेगी शांति..
(त्रिलोकीनाथ)
तत्कालीन कमिश्नर से मुलाकात हुई, बातों ही बातों में सिलसिला बना.. उन्हें बताया गया की जय स्तंभ के पेट्रोल पंप तक बनने वाली इस सीमेंटेड सीसी रोड जो मॉडल रोड के रूप में भी जानी गई इसके बनने का कोई अर्थ नहीं है और तब तक अर्थ नहीं है जब तक कि जयस्तंभ चौक को "दुर्घटना-स्थल" के रूप से बदलकर सामान्य सड़क मार्ग में ना बदला जाए। क्योंकि कटनी से लेकर गुमला तक के बीच में जय स्तंभ चौक एक ऐसी जगह थी जहां पर हैवी व्हीकल के टायर ब्लास्ट होते थे। किसी बमब्लास्ट की तरह और 144 धारा वाला यह क्षेत्र दहशत में आ जाता था। यहां तक तो ठीक था ट्रक वालों को नुकसान
होता था। किंतु उनके टायर ब्लास्ट होने की चलते कलेक्ट्रेट के सामने से गुजरने वाले सड़क में टर्निंग में निपनिया का एक व्यक्ति फंस गया और अंततः उसकी मौत हो गई ।हालांकि 1998 मे मै स्वतंत्र मत में एक आलेख के जरिए इस सड़क मार्ग को ठीक करने का ध्यानाकर्षण किया था मैं मानता हूं कि यह इंजीनियरिंग ट्रैफिक के खिलाफ बनाई गई सड़क है। कल इसकी पुष्टि ठेकेदारकर्मी ने भी की कि "हां, यहां पर गोल चौक ना बन कर के तिकोना मध्य स्थल बनना चाहिए था ताकि गाड़ियों को आराम मिले।" किंतु मेरा उद्देश्य चौक के तिकोना या गोला से ज्यादा टर्निंग में ढलान होने के कारण ट्रक टायर ब्लास्ट होने पर ज्यादा केंद्रित था। और इसीलिए मैंने प्रयास किया कि पेट्रोल पंप के आगे से लेकर जनपद तक यह सड़क समतल हो जाए या इस काबिल हो जाए कि यह दुर्घटनाओं का स्थल न बना रह सके । किंतु पूरे संभाग की तरह यह रोल मॉडल सड़क बन कर रह गई। दो-तीन पंचवर्षीय योजना में परिवर्तित इस मॉडल सड़क और जय स्तंभ चौक सड़क का कार्यकाल खींचता जा रहा था।
दुर्भाग्य से जय स्तंभ सड़क निर्माण की शुरुआत कलेक्ट्रेट साइट के सड़क की बजाय से हातिमी सेंटर, कांजी हाउस तरफ की सड़क पर हो गया और फिर स्थानीय नागरिकों ने उसका अपने हितों के लिए इतना विरोध किया और इस प्रकार का विरोध किया की सड़क निर्माण कार्य-करता अलविदा हो गया। नतीजतन जयस्तंभ चौक किसी पंचवर्षीय योजना का हिस्सा हो गया, ऐसा लगा। और दुर्घटना-स्थल जस का तस रह गया ।कारण करीब 2 फिट थिकनेस की सड़क को अपने हिसाब से ठीक करना था। इसी बीच कोरोनावायरस महाशय आ गए और सब कुछ ठप हो गया। लगा, गई भैंस पानी में.., मेरा ड्रीम जय स्तंभ चौक अब नहीं बनेगा।
किंतु धन्यवाद वर्ष 21 का और जिला
प्रशासक डॉक्टर सत्येंद्र सिंह का कि उनकी नजरें यहां इनायत हुई और इसका एन केन प्रकारेण विधवा उद्धार हुआ। कम से कम कहने देखने और सुनने में अच्छा लगेगा कि यह जयस्तंभ चौक है ।
जब तक सकारात्मक सोच के अधिकारी शहडोल में नहीं आ पाते तब तक विकास कलेक्ट्रेट के दर पर पर ही आकर दम तोड़ देता है, जय स्तंभ चौक सड़क निर्माण में यही होने जा रहा था । प्रशासन धन्यवाद का पात्र है कि उसने अपनी नेक नीति से संभाग के नाक बचाई है ।और अब हमें एक खूबसूरत जय स्तंभ चौक मिल सकता है ।शहीदों को बारंबार नमन उनकी श्रद्धांजलि के लिए के लिए बनाए गए जय स्तंभ का सम्मान जो बढ़ा।
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