तो, दाग अच्छे हैं....
गर्व से कहो हम भारतीय हैं....?
(त्रिलोकीनाथ)
कोरोनावायरस-नीति में जो देश को भुगतना पड़ा वह तो सब ने देखा, जब कोरोनावायरस ब्रिटेन में नए तरीके से जन्म लेने की खबर आई है तो भारत सरकार ने तत्काल हवाई यात्रा पर रोक लगा दिया शायद भारत की मोदी सरकार बुद्धिमान हो गई रही होगी..., किंतु यही काम यदि चीन के कोरोनावायरस का दुनिया में जब साम्राज्यवाद बढ़ रहा था उस वक्त किया होता, और अपनी सीमाओं की रक्षा हवाई यात्रा में ब्रेक लगाकर की होती तो शायद भारत हर मोर्चे पर इतना पीछे न चला गया होता....?, बर्बादी, बेकारी और मौत का कारोबार, प्रताड़ना की इंतहा सब उसने देखना पड़ा..।
किंतु अगर कोरोनावायरस के साम्राज्यवाद के छाया के तले उसे मनमानी तरीके से कानूनों को अंजाम देने का अवसर नहीं मिलता...? वह तीन कृषि संशोधन पर नहीं रखवा पाता और शायद लाखों बलिदानों के रूप में प्रकट हुए अयोध्या के राम मंदिर को जैन-दंपत्ति के माध्यम से पूजन कार्यक्रम भी ना हो पाता..? क्योंकि कुछ हिंदू रामानुज संप्रदाय के शायद खड़े हो जाते.. जैसे उमा भारती.. लोग...। यह भी कोरोनावायरस की कृपा थी।
बोस ने कहा था “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा...”।
तो साम्राज्यवादी-वायरस ने अपना जलजला दिखाया.., यह इसका नकारात्मक पक्ष हैं। फिर चुनाव मे हुआ राजनीतिक-जन्म। बिहार में कहा गया कि अगर हमें वोट देंगे तो हम तुम्हें मुफ्त में वैक्सीन देंगे। यहीं आजादी की लड़ाई की स्मृतियां ताजी हो गई, सुभाषचंद्र बोस ने कहा था “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा...”। तो मोदी सरकार ने कहा तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें वैक्सीन दूंगा।बहरहाल इस पर भी खूब राजनीति हुई। यह सब मुखौटा था, क्योंकि काम ईवीएम को करना था.. वही वास्तविक निर्णायक था।यह सब “प्रि-इलेक्शन” था। अब “पोस्ट-इलेक्शन” की बात हो रही है। तीन करोड़ लोगों को फ्री वैक्सीन मिलेगी.... बाकी का निर्णय बाद में।
अखिलेशप्रताप सिंह ने कहा “हम बीजेपी का वैक्सीन नहीं लगाएंगे..,
तो अपने युवा नेता अखिलेशप्रताप सिंह ने कहा “हम बीजेपी का वैक्सीन नहीं लगाएंगे.., जब उनकी सरकार आ जाएगी तब अपना टीका लगाएंगे।” उपमुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश ने इसे वैज्ञानिकों का अपमान बताया।
कोरोना के साम्राज्यवाद में सिर्फ इतना ही नहीं होना है, बहुत कुछ होना है। इस बार हमारे असली-मालिक गणतंत्र दिवस में हमारे अतिथि होंगे यानी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ।और एक तरफ दिल्ली में जहां मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत सरकार की परेड का कार्यक्रम होगा वही कोरोना के साम्राज्यवाद में पैदा हुआ कृषि-बिल के खिलाफ किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन अपनी आजादी के लिए जंगी युद्ध में अपना “ट्रैक्टर-परेड” करेगा। तो फिर भारत की नासमझ जनता किस परेड को पसंद करेगी...?, यह भी देखने लायक बात होगी।
हो सकता है यह दबाव बनाने की युद्ध नीति हो...? क्योंकि गणित प्रश्नों के हल की तरह हम मान ले कि हम गुलाम भारत में है, तो हमारे मालिक के लाड-गवर्नर( ब्रिटिश प्रधानमंत्री) इस बार हमारे परेड के मुख्य अतिथि होंगे और उनकी सल्तनत में मोदी-सरकार अपना परेड का कार्यक्रम रखेगी। तो जो बागी, भारतीय किसान युद्ध लड़ रहे हैं, गांधीवादी तरीके से, वह भी अपना परेड करेंगे...। तो लाड-गवर्नर साहब बैठे तो कहीं रहेंगे... लेकिन उनका ध्यान दुनिया के लोगों की तरह किसानों की परेड की तरफ बना रहेगा...., भय से, आकर्षण से और गांधीवादी सत्याग्रह आंदोलन की झलक देश की आजादी के बाद 7 दशक बाद भी कैसी होगी...? लाड-गवर्नर साहब देखेंगे....।
यह उपलब्धि मोदी सरकार के लिए कितना गौरवशाली होगी, कहा नहीं जा सकता..। किंतु यह जरूर है कि यह 21वीं सदी का ऐतिहासिक दिन होगा, जब आजाद-भारत के अंदर-गुलाम भारत की तस्वीर की झलक हम सब देखेंगे...? हो सकता है भारत के जिंदा-खबर-मीडिया अपनी झांकियों की झलकियों में इसे खबर बनाएं?
यह अलग बात है कि हम दर्शक दीर्घा में होंगे... क्योंकि उनके शब्दों में, “भ्रमित किसान,” विपक्षी दलों द्वारा भ्रमजाल में फंसे किसान, अथवा पहले जैसे उनके चेले-चौपाटी कह गए खालिस्तानी.., राष्ट्र-द्रोही..., आतंकवादी..,?
किसान अपनी अस्मिता की लड़ाई को आजाद भारत में ट्रैक्टर-परेड के माध्यम से अपने लाड-गवर्नर के सामने प्रस्तुत करेंगे... तब शायद उन्हें अपने ना होने का एहसास हो..? ,उनका जमीर..?, अपने पूर्व मालिक को देख कर जागे..? कि हम राजतंत्र के बारिश नहीं है, लोकतंत्र के नेता है और इस देश के संविधान हमारी विरासत है। क्योंकि मालिक के सामने यदि नौकर का अपमान होता है, चौकीदार का अपमान होता है तो चौकीदार का जमीर ज्यादा जागता है। देखना होगा की आजादी की लड़ाई में कितना दम बाकी है...?
भागवत ने कहा,उनकी नजर में “गांधी, हिंदू देशभक्त .."
गांधी के सत्याग्रह आंदोलन पर अमल कर रहे किसानों की लड़ाई को कमजोर करने के दृष्टिकोण से ही शायद भाजपा के पितर-पुरुष आर एस एस संचालक मोहन भागवत ने कहा है कि उनकी नजर में “गांधी, हिंदू देशभक्त थे..| जहां एक और लाखों किसानों के कई महीनों से चल रहे तथा दिल्ली को इस कड़क ठंड में घेराबंदी कर रहे सत्याग्रही किसान आंदोलन को वे मूक-बधिर होकर नजरअंदाज कर रहे थे, वही इस सत्याग्रह आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी को भी एक विचारधारा का अपना गुलाम बता रहे थे| याने “हिंदुत्व” का गुलाम घोषित कर रहे थे| यह भी कंफ्यूजन है या कन्फ्यूजन डाला जा रहा, लाड गवर्नर के सामने पाने की यह प्लानिंग थी, कि हम कंप्लीट है..?
हम गैर आंदोलनकारी दर्शक दीर्घा के लोग निर्णय के इंतजार में ताली बजाएंगे....
हम सब आदिवासी क्षेत्र के निवासी, इस आंदोलन के गैर-आंदोलनकारी भारतीय नागरिक है.., दर्शक-दीर्घा में बैठकर या तो मोदी-सरकार के लिए अथवा किसानों के लिए उनकी जीत में ताली बजाने के लिए बैठे हैं... कि हमारे आसपास जितनी भी गैरकानूनी अथवा अथवा कानून का नकाब पहनकर पर्यावरण विनाश का खुला खेल हो रहा है, माफिया-तस्कर अपने सबसे ज्यादा स्वर्णिम-कार्यकाल में जी रहे हैं.. तो हम तो सिर्फ ताली-बजाने-वाले भारतीय नागरिक ही कहलाएंगे।
तब भी.. जब किसान जीत जाएंगे.., तो भी मोदी-सरकार की जीत जाएगी तो भी.. अथवा लाड गवर्नर साहब जीत जाएंगे| और संदेश लेकर जाएंगे महारानी विक्टोरिया के पास..., एलिजाबेथ के पास कि आपका छोड़ा हुआ भारत अभी बरकरार है.. मैं अभी अभी देख कर आ रहा हूं....।
तो क्या हमें शर्म है, क्या हम शर्मसार होना चाहेंगे...? यह भी हमारे लिए गौरव का विषय है... 56 इंच का सीना हमारा, महीनों के किसान-सत्याग्रह-आंदोलन का निवारण करने में नपुंसक सिद्ध हुआ है.. और हम उसे गणतंत्र दिवस की देहरी में लाकर खड़ा कर दिए...। ट्रैक्टर परेड के रूप में शामिल करने के लिए....
इसीलिए मैं भारत के चुनाव आयुक्त की तरह बधाई देता हूं... सोहागपुर की जनता ने कभी शबनममौसी को विधायिका में भेज कर अपना संदेश दिया था... कि “गर्व से कहो हम भारतीय हैं....?”
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