तो दुनिया देखेगी 26 जनवरी
को
किसान-सत्याग्रह परेड
करीब 90 साल पहले 24 दिनों की नमक सत्याग्रह यात्रा करके गांधी ने अंग्रेजों के एकाधिकार के कानून को चुनौती दी थी नमक सत्याग्रह का नाम पड़ा दांडी यात्रानमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये प्रमुख आंदोलनों में से एक था. 12 मार्च, 1930 में बापू ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था. उन्होंने यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था.
... तब देश विदेशियों का गुलाम था और हमारे पूर्वज स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे. करीब 9 दशक बाद कथित तौर पर देश स्वतंत्र हो चुका है बावजूद इसके लाखों किसान 3 उच्चतम न्यायालय से स्थगित कृषि कानूनों और न्यूनतम समर्थन मूल्य पाने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली के चारों ओर घेराबंदी कर धरना दिए हुए हैं संपूर्ण अहिंसात्मक सत्याग्रह आंदोलन देश की लोकतांत्रिक सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है कि वह 58 दिन बाद 11 दौर की बैठकों में यह निष्कर्ष लाती है "मैं चाहे ये करू मैं चाहे वो करुं, मेरी मर्जी...।" के अंदाज पर शासन ने अपना प्रस्ताव देते हुए कहा अब आपकी मर्जी.....
यानी मेरे मुर्गे की डेढ़ टांग के अंदाज में सरकार ने अपनी असफलता का प्रमाण पत्र जारी कर दिया कि वह लाखों किसानों और से को एक सैकड़ा से ज्यादा सिर्फ इस आंदोलन में शहीद किसानों के प्रति कोई सद्भावना नहीं रखती।
क्यों आई यह हालात
तो क्या 26 जनवरी की गणतंत्र दिवस परेड पर जहां एक और चुनी हुई सरकार की और देश की आजादी का गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन करेगा वही स्वतंत्र देश में स्वयं को गुलाम मानकर मोदी सरकार के कोरोना मैं चोरी-छिपे किंतु डंके की चोट में लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में देश का अन्नदाता समाज
ट्रैक्टर परेड करेगा क्या है गांधीवादी तरीके का सत्याग्रह किसान ट्रैक्टर परेड होगा तो आजाद भारत में यह भी एक रिकॉर्ड होगा कि एक तरफ स्वतंत्र सरकार की सरकारी परेड तो दूसरी तरफ स्वयं को परतंत्र महसूस करने वाले अन्नदाता समाज का सत्याग्रह किसान ट्रैक्टर परेड आगामी 26 जनवरी को हमें देखने को मिलेगा
समाचार सूत्रों के अनुसार आज क्या हुआ दिल्ली में
बहरहाल कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच 11वें राउंड की बात भी आज बेनतीजा रही, अगली बैठक की तारीख भी तय नहीं है. 11वें दौर की बातचीत में आज सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांग पर एक समिति गठित करने का प्रस्ताव भी रखा जिसे किसानों ने नामंजूर कर दिया. जानकारी के अनुसार, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमने अपनी ओर से भरपूर कोशिश की, अब गेंद आपके पाले में है. किसान नेताओं का कहना है कि सरकार की ओर से कोई प्रगति सामने नहीं आई है. सरकार कह रही है कि वह अपनी ओर से 'अधिकतम प्रयास' कर चुकी है.कीर्ति किसान यूनियन के नेता राजेंद्र सिंह ने NDTV से नेकहा कि इससे पहले स्वामीनाथन कमीशन का गठन किया गया था और उसकी सिफारिशें वर्षों तक अटकी पड़ी रहीं.
गौरतलब है कि जहां किसान इन तीनों कानूनों को 'विनाशकारी' बताते हुए इन्हें रद्द करने की अपनी मांग पर अडिग हैं, वहीं सरकार इसमें संशोधन की बात कर रही हैं. केंद्र सरकार की ओर से रखे गए प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया है. शुक्रवार को 11वीं दौर की बैठक की शुरुआत में किसान संगठनों ने सरकार से कहा कि वह कानून को डेढ़ साल तक स्थगित करके समिति के गठन के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं. सूत्रों के मुताबिक, बैठक में सरकार की ओर से कहा गया कि किसान संगठनों ने क्यों अपने फैसले की जानकारी मीडिया के साथ बैठक से पहले ही साझा कर दी? सरकार ने किसान संगठनों से कहा कि वह सरकार के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करे.
(तथ्य संकलन एनडीटीवी समाचार से साभार)
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