मामला रोगी कल्याण शुल्क का वृद्धि का
तो क्या कोविड-मुक्त हो गया शहडोल आदिवासी क्षेत्र...?
भाजपा नेता ने कहा, अनुचित है यह वृद्धि..
शहडोल ।करीब डेढ़ महीना पहले जिला अस्पताल में आवश्यक काम से मुझे पर्ची कटाना पड़ा। मैंने ₹10 शुल्क दिया तो वापस कर दिया गया ,कहा गया कोविड-19 के अवधि में शासन के निर्देश हैं कि किसी भी प्रकार का शुल्क जिला चिकित्सालय में ना लिया जाए। शासन की सद्भावना से मन प्रसन्न भी हुआ ।
रोगी कल्याण समिति शहडोल के बैठक हुई जिसमें कई अहम निर्णय लिए गए और रोगियों के तमाम झांकियों की फीस के शुल्क भी बड़ी तेजी से बढ़ाएं गए तो क्या मान की चलें की कोविड-19 का प्रभाव शहडोल में खत्म हो गया है यह एक प्रश्न है यह प्रश्न इसलिए भी ज्यादा है की मेडिकल कॉलेज में जो लोग भर्ती होते थे वहां पर कथित तौर पर दवाइयों के पैसे उन्हें अपनी जेब से देने पड़ते थे क्योंकि दवाइयां वहां उपलब्ध नहीं होती थी ऐसा बताया जाता है तो फिर क्या आपको रोना इलाज मात्र के लिए खुले गए शहडोल मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 से संबंधित शासन के निशुल्क चिकित्सा के आदेश लागू नहीं होते थे यह भी एक प्रश्न बरकरार है किंतु इन सभी प्रश्नों का समाधान रोगी कल्याण समिति शहडोल की फीस बढ़ोतरी की घोषणा से स्पष्ट सा कर दिया गया की शासन का तथाकथित निर्देश सभी प्रकार की निशुल्क सुविधाएं आदिवासी क्षेत्र के नागरिकों के लिए विशेष तौर से दिखाने के दांत मात्र थे इन दिनों शहडोल में दोबारा कई नवजात शिशुओं के मर जाने की खबरें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई है पहले भी यह खबरें सुर्खियां बनी थी किंतु उसका समाधान नवजात शिशु के नए ढंग से मरने की समाचारों मैं ढूंढने का प्रयास किया गया ऐसा लगता है कलेक्टर अशोक भार्गव के कार्यकाल में जिला चिकित्सालय में कलेक्टर शहडोल के मोबाइल से जिला चिकित्सालय की सीसीटीवी के जरिए भी निगरानी एक अहम नवाचार था जिससे काफी कुछ सुधार की गुंजाइश दिख रही थी अनुशासन के प्रति जागरूकता थी समय के साथ सब खत्म हो गया अब फिर से नई बच्चों की किस्तों में मौत हुई है फिर नए नवाचार कुछ दिन के मेहमान होंगे इन सब पर फोकस होने की वजह रोगी कल्याण समिति का फोकस शुल्क बढ़ोतरी को लेकर जिस संवेदनहीनता के साथ किया गया है वह शोषण और दमन के जिला मैं चिकित्सालय शहडोल कि रोगी कल्याण समिति के निर्णयों में स्पष्ट झलकता है रोगी कल्याण समिति को महिलाओं के मेडिकल वार्ड अथवा पुरुष वार्ड की गुणवत्ता और सुलभ सहज चिकित्सा उपलब्धता पर कोई ध्यान नहीं गया जो गंदगी का अड्डा जैसा है इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी फोकस नहीं किया गया इस बैठक में सिर्फ एक अच्छा निर्णय हुआ और वह यह कि रोगी कल्याण समिति के फंड को निर्माण कार्यों में खर्च नहीं किया जाएगा वैसे भी जिला चिकित्सालय परिसर में अब जगह नहीं बची है तो शायद रोगियों का कल्याण कुछ हो किंतु अत्यावश्यक रोगी कल्याण उपयोगी वस्तुओं की उपलब्धता सुरक्षा और स्वास्थ्य गुणवत्ता पर उतना फोकस नहीं हुआ जितना चाहिए था इस तरह यह बैठक आदिवासी क्षेत्र में संवेदनहीन निष्कर्षों का सार मात्र रहा जिस पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि जिला चिकित्सालय में वही व्यक्ति इलाज कराने आता है वास्तव में जो आर्थिक रूप से कमजोर होता है अन्यथा कोई भी रोगी असुरक्षित माहौल में इलाज के लिए स्वयं को बचाना चाहेगा ऐसे में उन्हें बड़े हुए शुल्क ओं का और पीड़ा देना उचित नहीं होगा खास तौर से यदि कोविड-19 का दौर खत्म नहीं हुआ है और शासन भी यदि कोई निर्देश कर रखी है तो उसका सम्मान करना चाहिए ।
चिकित्सालय की व्यवस्था भगवान भरोसे है: कैलाश तिवारी
हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है किंतु इस बात को लेकर शहर के वरिष्ठ नागरिक वह भाजपा नेता कैलाश तिवारी ने निर्णयों पर नाखुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा विगत दिवस जिला चिकित्सालय शहडोल रोगी कल्याण समिति के द्वारा सोनोग्राफी ,डायलिसिस, पैथोलॉजी तथा प्राइवेट वार्ड के किराए में इस प्रकार की वृद्धि किया जाना उचित नहीं है ।मध्यप्रदेश मे शिवराज सिंह कि भाजपा सरकार द्वारा चिकित्सा मद में जिला चिकित्सालय को करोड़ों रुपए दिए जाते हैं ।ऐसे में रोगी कल्याण समिति द्वारा इस प्रकार दरों में वृद्धि किया जाना आम जनता के हित में नहीं है। चिकित्सालय कोई आय का स्रोत नहीं है ।यह समाज सेवा का कार्य है ऐसे में अन्य मदों से इसकी भरपाई की जाना चाहिए ।
श्री तिवारी के अनुसार देखा जाता है कि जिला चिकित्सालय शहडोल में लाखों रुपए का अनावश्यक व्यय किया जाता है। इस प्रकार के अनावश्यक व्यय को रोककर की गई दरों में वृद्धि को जनहित में रोका जाए। इससे प्रदेश भाजपा सरकार की छवि प्रभावित हो रही है। ऐसे में इस प्रकार के कार्य और भी छवि को प्रभावित करते हैं।
भारतीय जनता पार्टी नेता कैलाश तिवारी ने कहा है कि विगत सप्ताह के दौरान हुई नवजात बच्चों की मौत का भले ही कारण कुछ बता दिया गया हो लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि चिकित्सालय की व्यवस्था भगवान भरोसे है। कोई भी जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता। चिकित्सालय ना होकर मानो रेलवे स्टेशन हो। जब कोई घटना घटित होती है तो आनन-फानन में अधिकारियों को दिखाने के लिए व्यवस्था दुरुस्त कर दी जाती है। वार्ड के अंदर एवं बाहर गंदगी का ढेर एवं मल मूत्र पड़ा रहता है कोई रोकने वाला तथा व्यवस्थित करने वाला नहीं है। देखना होगा किस संवेदना के मामले में आदिवासी क्षेत्र में जिम्मेदार वर्क कितनी चिंता प्रकट करता है।
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