गुरुवार, 27 अगस्त 2020

माफ करना, कमिटेड-डेमोक्रेसी. माफियाओं के मंत्री जी..-1..(त्रिलोकीनाथ).

 माफ करना, गलती...म्हारे से हो गई... कमिटेड-डेमोक्रेसी.-1

माफियाओं के मंत्री जी..


हमको राणा जी माफ करना गलती महारे से हो गई किसी फिल्म के इस गाने ने मुझे यह हेडिंग बनाने को मजबूर किया। इसके पहले जब देश आजाद हुआ था और कुछ दिन देश सेवा के बाद मंत्री बने चुरहट के  विधायक श्री चंद्र प्रताप तिवारी जब थक गए तब उन्होंने भी यही लिखा था। 
"नासमझी के 40 वर्ष..." ।
उनको लगा कि देश की आजादी और सत्ता को समझ पाने में उन्होंने 40 वर्ष यूं ही नष्ट कर और बाद में कहते हैं सर्वोदयी नेता हो गए।
 चंद्र प्रताप जी कई बार गांधी चौराहा शहडोल स्थित हमारे पिता श्री भोलाराम जी की विराट ट्रांसपोर्ट की गद्दी पर आए थे । समाजवादी पृष्ठभूमि होने के कारण हमारे पिताजी की गद्दी पर हर प्रकार के नेताओं का जमघट बना रहता था। तब वह  सर्वोदय-पदयात्रा पर थे । इत्तेफाक से जब तिवारी जी जाए तब मैं वहां रहा, पिताजी नहीं थे हमने अपने हिसाब से उनका स्वागत किया और वह गुप्तगुं करने लगे। स्मृतियों के सहारे उन्होंने टटोला कि तब  समय प्रेस के संचालक पद्मनाभ पति त्रिपाठी   उत्तर प्रदेश से जब शहडोल आए थे तो खाली हाथ आए था। अब तो बड़ा आदमी बन गया है। वह बता रहे थे हम सुन रहे थे यह विकास की गाथा है अब श्री त्रिपाठी भी नहीं है और सर्वोदय नेता स्वर्गीय श्रीतिवारी भी नहीं है ।
चंद्रप्रताप जी तिवारी इसलिए याद किए जाते हैं क्योंकि सत्ता को उन्होंने सेवा का माध्यम माना था। प्राकृतिक संसाधन पर पहला हक आजाद भारत का होता था संविधान उसका मालिक था, ऐसी गलत  गलत फहमिहां उन्हें भी था।
 किंतु अपनी सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से हक की लड़ाई पर यह कार्टून पत्रकारिता में बहु चर्चित बना था जिसमें इंदिरा जी उन्हें पढ़ा रही थी
" बी फॉर बिरला और तिवारी जी आदिवासी क्षेत्र के निवासी थे, तो पढ़ रहे थे नहीं मैडम,
 "बी फॉर बंबू...,"
 यानी तब ओरियंट पेपर मिल जो बिरला जी की शहडोल में इकाई थी उसको फ्री में कच्चा माल बांस का जंगल देने के लिए तब जो प्रतिबद्धता श्रीमती गांधी ने बिरला के लिए दिखायीं, उसमें नैतिकता और मूल्यों के लोकतंत्र के लिए काम करने वाले चंद्रप्रताप जी तिवारी ने फ्री का बांस देने की बजाय, बांस पर रॉयल्टी की दरें... एक वन मंत्री होने के नाते लागू करवा दी।

 चंद्र प्रताप जी उच्च आदर्श की राजनीति करने वाले एक बड़े नेता थे और भारतीय नागरिक भी। जिन्होंने अर्जुन सिंह के चुरहट विधानसभा से उनको चुनाव से हरा दिया था। क्योंकि तब चुरहट का नागरिक-जागरूकता अर्जुन सिंह के लिए यह करारी हार थी। हालांकि कहते हैं तब उद्योगपति ओरियंट पेपर मिल्स के उद्योगपति बिड़ला ने पूरा संसाधन चुरहट विधानसभा में अर्जुन सिंह के पक्ष में लगा दिया था। ताकि तिवारी जी चुनाव हार जाएं। बहरहाल इसे यही छोड़ें.., कि फिर क्या हुआ...?
 किंतु राजनीति के पतन के दौर में चंद्र प्रताप तिवारी जी का राजनीति से मोहभंग  हो गया..। यह सही है कि उन्होंने निजी जीवन में आदर्श स्थापित किया किंतु उनकी लड़ाई या आत्मसमर्पण ने उन्हें सर्वोदय का पदयात्री बना दिया। और एक पुस्तक भी उन्होंने लिखी..
" नासमझी के 40 वर्ष..."
 जिसमें उन्होंने अपने अनुभव को साझा करने का काम किया की राजनीति की प्राथमिक प्रक्रिया क्या है। क्योंकि तब पारदर्शिता नहीं थी इसलिए सत्ता से बातें छनकर नहीं आ पाती थी। आदिवासी क्षेत्रों में आवासीय और गैर आदिवासियों में सिर्फ जात का अंतर था।
 बाकी ज्ञान दोनों का बरोबर रहा। अगर चंद्रप्रताप जी तिवारी पलायन न कि होते और संघर्ष की लड़ाई में उनकी बलिदान हो गया होता तो आदिवासी क्षेत्र का स्वरूप कुछ और होता...। 
 आज 74 साल बाद हमें भी लगता है ,
"हमको राणा जी माफ करना.... गलती म्हारे से हो गई...
 तिवारी जी से लड़ने वाले चुरहट गांव से निकले राजनीति के चाणक्य अर्जुन सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं है।
 तो फिर दुनिया में क्या है....?  तिवारी जी का "समर्पित-पलायन" और अर्जुन सिंह जी की "समर्पित-निष्ठा" ने आदिवासी क्षेत्र को क्या दिया है...? 
यह प्रश्न आज आदिवासी क्षेत्र के नागरिकों के लिए जीने मरने का प्रश्न इसलिए भी है क्योंकि जो रिक्तता नेतृत्व की उन्होंने पैदा की उससे प्राकृतिक संसाधनों के लुटेरों, डकैतों और षड्यंत्र कारियों का आदिवासी क्षेत्र अड्डा बन गया है।
 शहडोल मुख्यालय मैं कभी सोहागपुर विधानसभा रहा जहां शंभूनाथ शुक्ला पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश जैसे नागरिक रहे अथवा मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री पद पर यदा-कदा दावा करने वाले पूर्व राज्यपाल कृष्णपाल सिंह भी नेतृत्व करते थे। अंततः दुनिया का पहला किन्नर शबनम मौसी यहां के विधायक का ताज पहनकर मध्यप्रदेश की विधानसभा का गौरव बढ़ाया।
 एक कमिटेड-ब्यूरोक्रेट्स ने अपनी निजी निष्ठा के लिए कोयला माफिया को हटाने हेतु सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र की हत्या कर दी.... यह लोकतंत्र का विकास हुआ।अब माननीय विधायक रही सुश्री शबनम मौसी पूर्व विधायक बनकर अनूपपुर में शेष जीवन गुजार रहे हैं।
 किंतु शहडोल संसदीय क्षेत्र का या फिर विंध्यप्रदेश के तमाम संसदीय क्षेत्रों के विधायक अथवा सांसद में सत्ता की लोकहित विरोधी नीतियों का विरोध करने की ताकत खत्म हो गई है।
 हाल में कानून संगत होने के बाद भी कथित तौर पर निबंध मैं 10 साल तक सड़क मरम्मत का वादा करने वाले ठेकेदार रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग पर दुर्घटनाओं और हत्याओं के लिए जिम्मेदार सड़क ठेकेदार के खिलाफ कोई बड़ी कार्यवाही की मांग करने की बजाय व्योहारी विधायक शरद कोल, लाचार कमजोर और डरा हुआ विधायक के रुप में स्वयं सड़क के गड्ढों में गिट्टी भरकर लीपापोती करने का काम मीडिया में दिखाने का प्रयास किया। यह उनकी व्यवस्था के प्रति नाराजगी का प्रतीक है, जो प्रतीकात्मक भी है। और किसी आदिवासी नेता के अंदर गुस्सा को जीवित रखने का एक माध्यम भी।

 पूरे विंध्य प्रदेश में गुस्सा इस बात का भी है कि शिवराज की वर्तमान सरकार ने बिंध्य को नेतृत्व नहीं दिया, याने मंत्री नहीं बनाया.. तो दो ताकतवर मंत्री शहडोल क्षेत्र के बन गए। दोनों कैबिनेट मंत्री हैं। सुश्री मीना सिंह और श्री बिसाहूलाल सिंह।
 मीना सिंह तो इतनी ताकतवर है कि जब कोरोनावायरस के दौर में मध्य प्रदेश का बच्चा-मंत्रिमंडल याने पांच मंत्री बने थे तब मीना सिंह को शिवराज ने महत्त्व दिया था। इस तरह दो कैबिनेट मंत्री जिसमें एक पूर्व आदिम जाति मंत्री बिसाहूलाल हैं और एक वर्तमान आदिमजाति मंत्री मीना सिंह इसके बावजूद सरकार के साथ हुए अनुबंध हो का पालन सड़क मार्ग में नहीं होता। लोग मर रहे हैं दुर्घटनाओं से ।

क्या फर्क पड़ता है व्यवस्था को लोग को रोना मैं लाइन लगाकर मर गए करोड़ों लोग बर्बादी के हालात में पहुंच गए तो कुछ एक्सीडेंट में मर जाते हैं उससे क्या फर्क पड़ने वाला है.....
 कुछ इस अंदाज में हमारे मंत्री, मुख्यमंत्री और विधायक, अधिकारी, लगे हाथ पत्रकार भी और कमिटेड-ज्यूडिशरी भी.... सब लोकतंत्र के महान चरित्र इस लूट में शामिल है... जाने अथवा अनजाने में क्योंकि यही रामराज है.....?

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