शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

मंत्रीजी.. चुप्पी, किसका समर्थन कमिटेड-डेमोक्रेसी.-2( त्रिलोकीनाथ)

माफ करना, गलती...म्हारे से हो गई... कमिटेड-डेमोक्रेसी.-2



 मंत्रीजी..की चुप्पी, किसका समर्थन

स्थानीय संसाधन में  पहला हक किसका है...?.

 प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण नागरिक, बैंक की किस्त भी नहीं पटाते.. 

अब होगी गुंडागर्दी तरीके से सूद की वसूली...

 (त्रिलोकीनाथ)


 प्रदेश की आदिम जाति मंत्री मीना सिंह के क्षेत्र में उनके रिश्तेदार  नौरोजाबाद के  केवल सिंह  को  बिहार से आकर सूदखोरी का धंधा करने वाले  उमेश सिंह  नौरोजाबाद पुलिस  की मदद से  या चुप्पी से,  जीवन भर की  लाखों रुपए तनख्वाह  लूट लेता है। सूदखोरी में लूट  उनका धंधा है। वर्तमान पुलिस अधिकारी  कोई तिवारी हैं  सूदखोर उमेश को बुलाकर  धमकाते भी हैं,  और फिर धमकी से दो धंधा बनता है  उसमें भी चुप भी हो जाती हैं। यह एक प्रकार का आदिवासियों की लूट का विकास की गाथा भी है। और सूदखोर  थाने की कृपा से छूट जाता है । क्योंकि वह  गिरफ्तार नहीं किया गया था  दिनभर बैठाकर  सिर्फ पूछताछ किया गया था ।केवल सिंह का मामला  उन कुछ मामलों में एक है  जो प्रशासन  तक पहुंच पाता है। जो मामले पुलिस और प्रशासन तक आते ही नहीं उन्हें प्रशासन समझता है शांति व्यवस्था से कानून काम कर रहा है दरअसल कानून सूदखोरों के लिए काम करता है कलेक्टर भी खुश, एसपी भी,  टीआई भी खुश और उमेश सिंह  इस व्यवस्था में बहुत खुश है। यह एक दृष्टांत मात्र है ।

चाहे उमरिया  हो  अथवा शहडोल हो या अनूपपुर हो सूदखोर, व्यवस्था के वरदान है।


इसी तरह प्राकृतिक संसाधन रेत का उत्खनन अवैध तरीके से पूरी गुंडागर्दी के साथ होता है पूरा सिस्टम को खनिज माफिया जिसमें नया अवतार के रूप में रेत माफिया हाइजैक कर लेता है। पकड़ा सिर्फ उन्हें जाता है जो माफिया के खिलाफ खुद अपने कर्ज के लिए हुए ट्रैक्टरों की किस्त पटाने के लिए रेत की थोड़ी सी चोरी करता है। और यह चोरी इसलिए चोरी मानी जाती है क्योंकि पुलिस और प्रशासन यह कहता है कि यही चोरी है जो माफिया खुलेआम डाका डाल रहा होता है वह कानून की नजर में रेत की चोरी नहीं होती बहराल और रीत की चोरी से जो आमदनी होती है उससे शहडोल का नागरिक  गैर माफिया बैंक के किस्त पटाता है। क्योंकि खड़ी गाड़ी ट्रैक्टरों में उसके खेत-नीलाम हो जाने वाले हैं। अथवा परिवहन का या किस्त पटाने का कोई अन्य रास्ता उसके समझ में नहीं आता।

 तो वह चाहे आदिवासी हो या गैर आदिवासी पुलिस का शिकार हो जाता है। खनिज विभाग के प्रशासन का भी। किंतु माफियाओं के खिलाफ जो कई जगह ठेकेदार का नकाब पहन कर के खड़ी हो जाती है कोई कार्यवाही करने में खनिज विभाग चाहे वह अनूपपुर, उमरिया, शहडोल का हो कार्यवाही करने में बचता है। या फिर कहना चाहिए वह ताकतवर रेत ठेकेदारों के छाया में खुद अवैध खनन को का करवा रहा है क्योंकि मान ले ठेकेदार ईमानदार हैं। वह अवैध काम करने के लिए ठेका नहीं लिए। तो जो भी अवैध काम हो रहा है उसमें खनिज विभाग के लोग और पुलिस के कर्मचारी मिलजुल कर के अवैध काम करवा रहे हैं...? और नाम "बिचारे-इमानदार" रेत ठेकेदारों का होता है।

 जो वकायदे लाइसेंस लेकर के रोजीरोटी कमाने शहडोल में अपने बच्चों का पेट पालने के लिए अजीबका चला रहे हैं।
 यह आदिवासी क्षेत्र की बड़ी विडंबना है कि समझा यह जाता है कि ठेकेदार गलत कर रहा है। किंतु वास्तव में पूरा पुलिस और प्रशासन इसमें दोनों मंत्रियों को भी शामिल कर ले यह मिलकर के आदिवासी क्षेत्र को माफियाओं का अड्डा बना रहे हैं। ऐसे में आम नागरिकों के हाथ से उसका प्राकृतिक संसाधन के उपयोग का पहला अधिकार खत्म हो रहा है। क्योंकि नाम रेत के ठेकेदार का है वह रेट बढ़ा रहा है...? और काम अधिकारियों की लूटपाट का है..? अथवा इन दोनों का ही नहीं तो अगर बैंक से जब ट्रैक्टर या वाहन कर्ज में दिए जाते हैं तो बाजार है भी या नहीं यह सुनिश्चित करना भी प्रशासन का काम है बैंक कोई लाइसेंस धारी सूदखोर नहीं है कि वह आम नागरिकों को को गुंडागर्दी तरीके से किस्त पटाने के लिए बाध्य करें और यदि बाजार उपलब्ध है जिससे किसने पटाई जा सकती हैं तो प्राथमिकता इन बैंक में कर्ज लिए है वाहनों को क्यों नहीं होना चाहिए रेत के ठेकेदार अथवा माफिया नुमा काम करने वाले अवैध कारोबारियों के पास ही काम का एकाधिकार क्यों होना चाहिए सर्वोच्च प्राथमिकता कर्ज में लिए हुए उन वाहनों को चिन्हित करके स्थानीय ग्राम समाज अथवा प्रशासन के तालमेल से बैंक किस्तों को पटाने के लिए प्राकृतिक संसाधन का उपयोग क्यों नहीं होना चाहिए क्या हमारे लोकतंत्र के दो दो आदिमजाति मंत्री कुशल और उच्च शैक्षणिक योग्यता धारी प्रशासन को इसकी चिंता नहीं है और अगर नहीं है तो क्यों नहीं है यह कैसा प्रशासन है?
 इसे एक प्रकार की नासमझी ही मानी जानी चाहिए, यह उसी प्रकार की नासमझी है जिस प्रकार से चंद्रप्रताप तिवारी ने ओरियंट पेपर मिल के मालिक बिरला को मुफ्त में बांस देने पर अपने नेता से विरोध ले लिया था। और बाद में कमिटेड-पलायन की पॉलिटिक्स में क्षेत्र को शोषण के लिए छोड़ दिया था ।

अब तो घोषित तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का यह शहडोल आदिवासी क्षेत्र "गोद लिया हुआ क्षेत्र" है, ऐसे में दो-दो मंत्री और मुख्यमंत्री किस क्षेत्र में अगर खुली लूट हो रही है अथवा प्राकृतिक संसाधन में मनमानी लूटपाट या फिर बढ़े हुए रेट की कीमत तो सोच समझकर हो रही होगी....?
 यह भी एक प्रकार की माफियाओं के प्रति कमिटेड-राजनीत का चेहरा है। कि सब कुछ ठीक-ठाक है ठेकेदारों के आड़ में माफिया खुली लूट कर सकता है । और स्थानीय संसाधन को एकाधिकार कर अन्य माफियाओं को पेटी कांट्रेक्टर के रूप में बेच सकता है।
 कहते हैं एक मंत्री के लड़के ने अनूपपुर में ऐसे ही रेत की पेटी कांट्रेक्टर का काम कर रहा है ।अन्य जगह माफिया की बनाई साख पर पेटी कॉन्ट्रैक्ट की अघोषित नीलामी हो रही है।

 तो यही है रामराज्य, जिस का हेड क्वार्टर अयोध्या में बन रहा है...? भविष्य का रामराज्य की कल्पना शहडोल में साकार हो रही है।
या यह  "ना समझी के 74 वर्ष" की एक सतत प्रक्रिया है चंद्रप्रताप जी तिवारी आप जहां भी हो स्वर्ग में अथवा अन्य जगह में आपकी विरासत "नासमझी के 40 वर्ष...." बरकरार है। शिकायत आप से ही है अर्जुन सिंह से, कृष्णपाल सिंह से या शंभूनाथ शुक्ला से कम है। श्रीनिवास तिवारी तो मनगवां से निकल कर के रीवा में ही सिमट गए थे। तो उनसे बिल्कुल नहीं है। अब आज के नेता से यह शिकायतें क्यों करना चाहिए , वह तो अभी सत्ता का आनंद भोग रहे हैं। जब यह मर जाएंगे और धोखे से कोई अनुभव लिखे जाएंगे तब उनसे शिकायत बनेगी... कोई हमारा जैसा लिखने वाला होगा तो...।
 अन्यथा लूट सके तो लूट.., अंतकाल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट..."
 कुछ इस अंदाज में माफिया के प्रति समर्पित हमारे कमिटेड मंत्री, मुख्यमंत्री और विधायक, अधिकारी, लगे हाथ बचे कुचे पत्रकारिता भी और कमिटेड-ज्यूडिशरी भी.... सब लोकतंत्र के महान चरित्र इस लूट में शामिल है... जाने अथवा अनजाने में क्योंकि यही रामराज्य है.....? क्योंकि जो हो रहा है वह कल्पनाकारों की कल्पना का साकार सत्य है... 
और इसे देश की आजादी में लाखों लोगों की बलिदानों के प्रति गद्दारी भी नहीं कहना चाहिए, क्योंकि यही विकास का घिनौना और खतरनाक चेहरा है... इसे ही आदिवासी क्षेत्र में विकास की परिभाषा के रूप में देखना चाहिए ।
अब इसे आप सौभाग्य कहे यह आपकी मर्जी है। अगर यह पाप है तो इसको भी ढोना सीख लीजिए और जिनका पुण्य है वे तो भोग ही रहे है।
 कोरोना का सुखद या दुखद दूसरा चरण शायद प्रारंभ हो, इसका अनुभव उस वक्त चालू होगा जब देश के विकास में पढ़ा-लिखा भागीदार वर्तमान लाइसेंस होल्डर सूदखोर हमारे बैंकर्स,अपना कर्ज बिना किसी संवेदना के अगले महीने से आम नागरिकों को सूद वसूलने के लिए टेलीफोन के जरिए, अपने आदमी भेज कर, सरकारी नोटिस में भेजकर अथवा आम नागरिकों की जमीन जायदाद  और इज्जत सरेआम नीलाम कर अपना बैंक किस्त वसूलने की प्रक्रिया प्रारंभ करेगा ।
यह भी विकास होगा... कोरोना का सच्चा साथी एक और माफिया, रेत या खनिज माफिया अथवा  उमेश सिंह जैसे सूदखोरों का  प्रशासन के साथ तालमेल कर  सूद वसूलने वालों  का लाइसेंस होल्डर बैंकर्स, किंतु क्या शहडोल के दो-दो  आदिम जाति मंत्रियों को इस समस्या का कोई भान भी है...? यह उनकी कार्यप्रणाली से महसूस होता है कि उन्हें अपने नागरिकों की चिंता कम है.... 
क्योंकि वह एक निष्ठावान नेता है जो सिर्फ जिन्होंने उन्हें बनाया है उनके प्रति जवाबदेह हैं... नागरिकों की समस्याओं के प्रति कितनी जवाबदेही है यह पत्रकार वार्ता में बताया जा सकता है किंतु पत्रकार वार्ता लगभग बंद हो गई है... उन्हें लोकतंत्र का यह हिस्सा सिर्फ पाखंड नजर आता है... और यह भी एक बड़ा सच है..। यह दुर्भाग्य है या सौभाग्य यह सोचते रहिए...।

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