रविवार, 2 अगस्त 2020

शासकीय खजाने में लूट.....? बी ई ओ सोहागपुर की दास्तान... (त्रिलोकीनाथ)

शासकीय खजाने में लूट.....?
बी ई ओ सोहागपुर की दास्तान...

ट्रेजरी-आपत्ति भी नहीं आई काम...
राम के नाम पर सब कुर्बान.....
अनियमितताओं की प्रतियोगिता का प्रशासन
(त्रिलोकीनाथ)
हालांकि पूर्व कमिश्नर आरबी प्रजापति के द्वारा जांच में पाए गए सभी आरोपों पर निलंबित खंड शिक्षा अधिकारी अशोक शर्मा को तत्कालीन  भाजपा सरकार के लालपुर के बैगा सम्मेलन भ्रष्टाचार को मंत्री जी की कृपा से दे दिया गया है या अस्थाई तौर पर फाइल नस्ती कर दी गई है और क्योंकि सुहागपुर खंड शिक्षा अधिकारी चंदेल ने भी  इसी स्तर के  वित्तीय अनियमितता की थी तो उसने भी उन्हें राहत मिलती हुई दिखाई थी हालांकि यह राहत उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश से मिली थी और अशोक शर्मा को नहीं मिल पाई थी इतने में सरकार बदल गई इंडियन-कोरोनावायरस भी आ गया बावजूद इसकेअभी बैगा सम्मेलन  में की गई अनियमितता की चर्चा खत्म ही हुई क्योंकि भ्रष्टाचार में दम था उसी तरह जैसे बंदे में था दम, वंदे मातरम ।
यह दमदार बी ई ओ की नासमझी के अनियमितताओं की ताकत है कि कर्मचारियों को 7वे वेतनमान का एरियर समय से पहिले देकर शासन के नियमो की अवहेलना कर अपनी वितीय नियमो की जानकारी पर प्रश्न चिन्ह लगवाया ।

किंतु  अयोग्यता  भी  योग्यता की एक पहचान है  इसलिए अब एक नया मामला सामने आया है जिसमें चंदेल एंड कंपनी ने वार्ड नम्बर 4 की श्रीमती सुनीता तिवारी प्राथमिक शिक्षक को 6 माह की वेतन के स्थान पर 9 माह के वेतन का भुगतान कर दिया गया है,अब मैडम तिवारी धोखे से इमानदार निकली सो उन्होंने 3 माह का जो वेतन अधिक दिया गया है उसे वापस करने के लिए कार्यालय का चक्कर लगा रही है।




अब सवाल यह है सोहागपुर बी ई ओ और उनके लेखापाल को जब वित्तीय नियमो का ज्ञान नहीं है तो इनको इस तरह के पदों पर बिठाया क्यों गया है।
ये तो अच्छी बात यह रही कि तिवारी मैडम ने ईमानदारी का परिचय देते हुए स्वयं आगे आकर अधिक भुगतान की जानकारी अपने अधिकारियों को दी नहीं तो किसे क्या पता चलता।
किंतु  उच्चाधिकारियों  को ऐसी  धोखे से आई  इमानदारीयों को  सैंपल फाइल की तरह संज्ञान क्यों नहीं लेना चाहिए...? न जाने इसी तरह के कितने भुगतान विगत पांच वर्षों में इनके द्वारा किए गए होगे...? यह जांच का विषय है।

स्मरणीय है कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा अपने अध्यापकों को छठवें वेतनमान का लाभ दिए जाने को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए गए थे। जिसमें अध्यापकों का बढ़ा हुआ वेतन मान एक साथ ना दिया जा कर तीन किस्तों में दिया जाने के आदेश शासन द्वारा जारी किए गए थे। जिसको लेकर ब्लॉकस्तर के खंड शिक्षा अधिकारी शासन की गाइड लाइन के अनुसार अपने यहां कार्यरत सहायक अध्यापकों को बड़े हुए एरियर्स का भुगतान तीन चरणों में किया जाना सुनिश्चित था । लेकिन सोहागपुर खंड शिक्षा अधिकारी जो अंगद के पांव की तरह खुद को जमा कर बैठे हुए हैं के द्वारा सभी नियमों को ताक में रखकर 31 सहायक अध्यापकों तीसरा एरियर्स का  भुक्तान जो मई 2020 में होना था उसे अक्टूबर 2019 में ही भुगतान कर दिया गया ।जब इस बात की जानकारी विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को हुई तो उनके द्वारा इस पर कोई बड़ी कार्रवाई ना करते हुए उन 31 सहायक अध्यापकों को आवंटित किए गए एरियर्स की तीसरी किस्त की वसूली फरवरी 2020 में की गई।
 लेकिन इसके बावजूद इस पूरे मामले मैं एक बड़ा भ्रष्टाचार स्वयं सिद्ध नजर आता है क्योंकि तीसरी किस्त की मूल राशि की ही रिकवरी की गई जबकि उस पर प्राप्त होने वाला ब्याज आज भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा हुआ है।

 वहीं दूसरी ओर ऐसी अनियमितता करने वाले खंड शिक्षा अधिकारी के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सुनिश्चित क्यों नहीं की गई। ऐसे कई मामले  खंड शिक्षा अधिकारी शिव प्रताप सिंह चंदेल लगे हुए हैं बावजूद इसके कि उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए पता नहीं कौन सी जादू की छड़ी है जिसे घुमाने के बाद मामले पर बेदाग साबित हो जाते हैं सहायक आयुक्त कार्यालय में क्षेत्र संयोजक अंसारी इसे जादू की छड़ी नहीं मानते बल्कि चांदी की जूती के रूप में देखते हैं। क्योंकि उनका अनुभव है चांदी की जूती की चमक में गलत और सही का फैसला उच्च अधिकारी नहीं कर पाते और फिर से इस तरह खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं जारी रखते हैं ।
भ्रष्टाचार में चर्चित बी ई ओ की नादिर शाही का अथवा यही नहीं रुकता उनके रिकॉर्ड में अब तक यह उपलब्धि भी जमा पूंजी की तरह सुरक्षित है कि उन्होंने कमिश्नर प्रजापति के द्वारा  नियुक्त किए गए  खंड शिक्षा अधिकारी  श्रीमती सावित्री शुक्ला  से  गैर कानूनी तरीके से  जवाब देकर  आहरण का अधिकार  भी साइन करा लिया था  और  हाईकोर्ट के स्थगन के झुनझुना को दिखाकर  या कहना चाहिए डरवा कर गैर कानूनी पदभार ले लिया था जिसे पकड़ते हुए कोषालय अधिकारी ने पदभार को खारिज कर दिया था यह भी चर्चा का विषय बना रहा।
किंतु अब जिला कोषालय अधिकारी भी यह मान बैठे हैं की वित्तीय अनियमितता जैसी कोई चिड़िया होती नहीं है और वह किसी तकनीकी भूल या हस्ताक्षर के लिए जिम्मेदार भी नहीं है किसी कारण इसी शिक्षा विभाग कोर्ट ट्रेनिंग देने वाले डाइट के प्राचार्य आरके मंगलानी के मामले में एक पत्र पर चिड़िया बेड क्या गई यह पत्र तबलीगी जमात का मोहम्मद शाद बन गया जो भारतीय संविधान और कानून की सुरक्षा से भी बड़ा हो गया नतीजतन जो आरके मंगलानी की तमाम आरोपों की फाइल कलेक्टर के आदेश पर जप्त है जिसकी जांच लंबित है वह स्वयं अब अपने आरोपों को सही और गलत ठहराए जाने का एक तरीका बन जाएगा मंगलानी भी हाई कोर्ट का तब स्थगन का एक झुनझुना ले आए थे
और ठीक उसी अंदाज में जिस अंदाज में बिना विहित प्रक्रिया के बीईओ चंदेल ने पदभार का डंका पीट लिया था उसी तरह मंगलानी भी बिना विहित प्रक्रिया के अपनी खूब मनमानी की है अब तो खुलेआम डाइट में चर्चा भी हैं कि संघ और संगठन ने अगर रामनगर में साम्राज्यवाद का विस्तार नहीं किया होता तो वह कभी डाइट के तानाशाह नहीं बन पाते। पर यदि जन चर्चाओं की माने तो अपने अच्छे मैनेजमेंट के गुण के कारण बड़े से बड़े सिद्ध मामले में भी फाइलों को लालफीताशाही की भेंट चढ़ाकर नए समीकरणों की खोज जारी रहती है। हम भी खोजने का प्रयास करेंगे की तकनीकी अनियमितताओं और वित्तीय अनियमितताओं को जब जिला कोषालय अधिकारी अनदेखा कर रहे होते हैं तब प्रतियोगिता में डाइट का दबदबा बढ़ता है या फिर खंड शिक्षा अधिकारियों का देखना होगा किस बंदे में कितना है दम....



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