शनिवार, 15 अगस्त 2020

नया गांधी चौक में कबाड़ में गांधी (त्रिलोकीनाथ)


शहडोल नया गांधी चौक पर
 "कबाड़ में गांधी "
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल का मुख्य केंद्र कभी नया गांधी चौक हुआ करता था। विशेषता थी कि गांधीजी की प्रतिमा पुराने गांधी चौक में जो "बैठी" हुई थी यहां पर खड़ी प्रतिमा के रूप में उन्हें दर्शाया गया। शहडोल के प्रतिष्ठित व्यक्ति गिरीशचंद्र जी घई फिलिप्स रेडियो के संचालक नए गांधी चौक को खूबसूरत बनाने में अपनी भूमिका अदा किए थे। 
शहडोल नगरपालिका में परिवर्तन हुआ, भारतीय जनता पार्टी की परिषद आई। अब जानबूझकर या अनजाने में या फिर लापरवाही में अथवा सुनियोजित षड्यंत्र के साथ नया गांधी चौक में महात्मा गांधी इस चबूतरे को तहस-नहस करने का काम हुआ।
 तो पहले बात करते हैं पुराने गांधी चौक में गांधी प्रतिमा की
 पुराना गांधीचौक का गांधी प्रतिमा आजादी के पांचवें दशक में स्थापित किया गया था। तब विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शंभूनाथ शुक्ला  के निवास स्थल के पास  पुरानागांधी चौक  शहडोल का महत्वपूर्ण केंद्र होता था। पूरी अस्मिता के साथ और श्रद्धा के महात्मा गांधी की बेहद खूबसूरत प्रतिमा स्थापित की गई थी। शहडोल के विकास की रफ्तार ने नया गांधी चौक को नए रूप में स्थापित किया। तब भी महात्मा शहडोल के नेताओं में श्रद्धा के कारण थे। 
किंतु महात्मा गांधी को सुनियोजित तरीके से अपमानित करने वाले विचारधारा से जुड़े लोग जब सत्ता पर आए तो नया गांधीचौक स्थित प्रतिमा की मूर्ति स्थल के कबाड़ का जमाव चालू कर दिया।
विकास के नाम पर,  विकास की रफ्तार के नाम पर  बिजली के खंभे खड़े किए गए और अंत में शहर की सुरक्षाा के नाम पर लगाए गए पुलिस की सीसीटीवी का सेटअप बॉक्स भी महात्मा गांधी के प्रतिमा के बगल मेंं खड़ा कर दिया क्या इसके पहले एक बड़ेेे खंभे में चौराहे की लाइट के लिए खड़ा कर दिया गया इन सबके बीच में फिलिप्स रेडियो  के शहडोल के संचालक  गिरीश चंद भाई  जी के सहयोग से जो महात्मा की मूर्ति फव्वारे के साथ आंखों के लिए सुदर्शन हो रही थी भाई आप कबाड़ का हिस्सा दिखने लगी महात्मा गांधी को विकास की रफ्ताार के कबाड़ के बीच में ढक दििया गया यह तस्वीर कर्तव्य हीन कांग्रेस नेताओं के लिए एक प्रमाण पत्र है।
क्योंकि दूसरी अन्य मूर्तियां लगी हैं उनके लिए जितनी सुरक्षा और सुंदरता की जा सकती है वह सब प्रयास किए गए । यह इसलिए भी कहना गलत नहीं होगा क्योंकि गांधी से नफरत करने वाले या उनकी विचारधारा से भयभीत समाज की मजबूरी है कि उन्हें गांधी की स्मृतियों को जिंदा रखना है। अन्यथा नए गांधी चौक की प्रतिमा भी उसी तरह तोड़ दी गई होती जिस तरह है कभी पुरानी गांधी चौक की एक शानदार आकर्षक  प्रतिमा को तोड़कर  सुंदरहीन  प्रतिमा को  स्थापित कर दिया गया। यह सब सुनियोजित था, अन्यथा अपराधी पकड़ा जाना चाहिए था। जिसने उस प्रतिमा को तोड़ा था या फिर पुलिस और प्रशासन इतना असफल और डरा हुआ है कि वह महात्मा गांधी के अपराधियों को देखना भी नहीं चाहता। 
बहरहाल वह बीते समय की बात है दर्द को दबाकर आगे चलना चाहिए जब से भाजपा की परिषद शहडोल में आई है नया गांधी चौक मै महात्मा गांधी प्रतिमा स्थल के आसपास शहर केेेेे विकास का कबाड़ इकट्ठा कर दिया गया इसके लिए  शर्म  और हया  दोनों ही  दोषी नहीं है अगर होते तो यह आलेख लिखनेे की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि गांधी की स्मृतियों को लोग अपने अपने तरीके से नष्ट और भ्रष्ट कर रहे हैं गांधी जिनके लिए उपयोग करो और फेंक दो की विषय सामग्री है उनकी सफलता  को हो सकता हैैै तुष्टि मिलती हो।

या फिर उन्हेंं अपने विचारधारा के लोगों के बीच में उसी प्रकार से सम्मान मिलता हो जैसे हाल मे कथित तौर पर किसी गैर मुस्लिम परिवार की लड़की को अपने जमात में भगाकर लाने में या विवाह में शामिल करने पर युवक और परिवार को वह समाज सम्मानित करता है। ऐसा हाल में एक घटना से प्रमाणित हुआ। यह एक अलग विषय वस्तु है की इस  दुर्भाग्य जनक घटना मे कट्टर हिंदुत्व की सरकारों का या तो मौन समर्थन था या फिर ऐसी घटनाओंं को "उपयोग करो और फेंक दो" के अंदाज़ पर सत्ता चलाने के काम के रूप में तथाकथित हिंदूू विचारधारा अपना विकास कर रही है।
 आज नया गांधी चौक सिर्फ एक अबला की तरह बलात्कारियोंकी विचारधारा से शोषित और अपमानित हो रहा है। दुखद यह है कांग्रेस के नेता जितने भी बचे-कुचे हैं वे भी नया गांधी मे महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थल को कबाड़ बनाने में मौन सहमति देते हैं। और यदा-कदा जाकर उन्हें माला भी पहना देते हैं। 
निश्चित तौर पर  जब जब उन्हें माला पहनाया जाता होगा किसी नेता के द्वारा तो वह भी देखता होगा कि गांधी की प्रतिमा का उनकी लाठी  तोड़ दी गई है...  जहां उन्होंने लाठी पकड़ रखी है।  ऊपर की लाठी का हिस्सा टूट गया है। मूर्ति कब टूटे.... कहा नहींं जा सकता। विकास की रफ्तार में कबाड़ के बीच खड़े हुए इस गांधी प्रतिमा का  यह दोष है  कि वह वहां से कहीं चले क्यों नहीं जाते... विकास मेंं एक्सीडेंट होता ही है...  तो इंतजार करना चाहिए गांधी की प्रतिमा के टूटने का....?  बहरहाल बचे-कुचे  कांग्रेसी भी जब माला पहनाते होंगे  तो यह आभास करते होंगे  कि "बापू अभी हम जिंदा है..."


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