बुधवार, 15 जुलाई 2020

एसी ऑफिस शहडोल की मिसिंग फाइल... (त्रिलोकीनाथ)

एसी ऑफिस  का एक और कारनामा 
निलंबित अकाउंटेंट की फाइल हुई गायब...?



(त्रिलोकीनाथ )
नकाब ओढ़कर अरमान जगाने वाला तबका कर्तव्य शीलता की धुंध में कैसे सफलता की गोते लगाता है.., इसकी चर्चा इन दिनों गर्म है।
सहायक आयुक्त कार्यालय शहडोल में भ्रष्ट कर्मचारियों का एक ताकतवर कुनबा वर्षों से टिका हुआ है इसमें कोई शक नहीं है, किंतु  जांच की फाइल ही जब गायब हो जाएगी तो अधिकारी भी क्या कर सकता है।
 सहायक आयुक्त कार्यालय शहडोल में इन दिनों चर्चा जबरदस्त की बहुचर्चित अकाउंटेंट केके सिंह (वर्तमान में निलंबित) कर्मचारी का जांच की फाइल मिसिंग करके रखी गई है। इस कारण विधिक  कार्य नहीं हो पा रहा है। स्मरणीय है की केके सिंह शहडोल आदिवासी विभाग के दबंग कर्मचारियों में से एक हैं जिन पर सामान्य रूप से हाथ डालना खतरे से खाली नहीं माना जाता। क्योंकि उनके सभी कार्य कानून सम्मत होते हैं उन्हीं के ही नक्शे कदम पर सहायक आयुक्त कार्यालय में वर्षों से टिका भ्रष्ट कुनबा कानून सम्मत भ्रष्टाचार करने का प्रयास करता है। बावजूद इसके कि वह अक्सर प्रमाणित होने के बाद भी उच्चाधिकारियों से और  भ्रष्ट नेताओं से संरक्षित होने के कारण अपना गैरकानूनी कब्जा बनाए रखता है। पिछले दिनों सहायक आयुक्त कार्यालय में अधिकारियों ने आदेश पारित कर विभागीय कर्मचारियों से विभाग परिवर्तन की प्रयास किया था किंतु प्रति हॉस्टल नियमित मासिक रूप से उगाही जाने वाली गैरकानूनी ₹10,000 के मान से अवैध वसूली की एक बड़ी राशि भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को अंगद की पैर की तरह विभाग में टिका रखा है।
  हॉस्टल के अधीक्षकों का मामला इतना लोकप्रिय हुआ की उपायुक्त कार्यालय ने इसेे मॉडल केेे रूप में स्वीकार कर लिया, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि वहां   कमोवेश इसी तरह भ्रष्ट अधीक्षकों को संरक्षित करके रखा गया है। यह अलग बात है कि वहां कोई अंसारी, कोई मरावी की जगह है कोई अन्य चेहरा अपना जाल बिछाए रखा है। उपायुक्त सरवटे भी इसमें मौनसहमति देते प्रतीत होते है ।
  बहरहाल बात सहायक आयुक्त कार्यालय की है, हाल में तीसरी संतान का बहुचर्चित मामला भी इसी प्रकार की अवैध वसूली का कारण बना था। बहुत चर्चित होने के बाद हलां कि  ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
   किंतु अब सहायक आयुक्त कार्यालय में 50% वालों का नियमितीकरण में भी जबरदस्त धांधली की शिकायतें चर्चा का विषय बनी हुई हैं। कई शिक्षकों को नियमितीकरण के मुद्दे पर रास्ते तलाश करते हुए देखा गया है किंतु मनमानी राशि की मांग किए जाने पर शिक्षक परेशान हैं..?
     ऐसी चर्चाओं को विराम तब तक नहीं मिलेगा जब तक सहायक आयुक्त कार्यालय का माफिया का काकस टूट नहीं जाता। सहायक आयुक्त राजेंद्र कुमार भी इन चर्चित विषयों को परंपरागत व्यवस्था का हिस्सा मानने से परहेज नहीं करते, एक धारणा यह भी है की पूरा विभाग शहडोल से लेकर भोपाल तक इन्हीं चर्चित कारनामों का राजदार है। इसीलिए जो जितना सफल भ्रष्टाचारी है वह उतनी ही ताकत से विभाग में अंगद की तरह पैर जमाए बैठा है।
 अब वरिष्ठ निलंबित कर्मचारी के के सिंह को उन पर लगाए गए आरोपों पर निर्दोष साबित ना हो संबंधित जांच की फाइल गायब करा दी गई है...?इसे इस नजरिए से भी देखा जा रहा है कि उसके बदले माफिया अपना काकस कैसे मजबूत करके रख पाता है देखते हैं सहायक आयुक्त भ्रष्टाचार के इस समंदर में कितनी डुबकी लगाते हैं 
    स्मरणीय है की के के सिंह कानून सम्मत लड़ाई के पक्ष में तत्कालीन शहडोल कलेक्टर ललित दायमा के खिलाफ उनकी जातिगत प्रमाण पत्र को फर्जी मानते हुए कानूनी कार्यवाही की उच्चाधिकारियों पर शिकायत कर रखे हैं... आशा यह करना चाहिए केके सिंह के लगाए गए सभी आरोप झूठे साबित हो यह अलग बात है कि कभी शहडोल कलेक्टर रहे फिर छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बने अजीत प्रमोद कुमार जोगी अपनी जाति प्रमाण पत्र के मामले का राज मौत के साथ लेकर चले गए किंतु यह अपवाद है इससे पहले सहायक आयुक्त कार्यालय में माफिया का कस के संरक्षण में गायब हुई फाइल ढूंढी  जा सकती है किंतु जब तक माफिया काकस बरकरार है तब तक फाइल मिल जाएगी इस पर संदेही बना रहेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...