शनिवार, 18 जुलाई 2020

माफिया के हवाले वतन साथियों.... त्रिलोकीनाथ




माफिया के हवाले वतन साथियों....

                   
                ( त्रिलोकीनाथ)
 जी हां.., मशहूर गीतकार ने जब इसके बोल में शब्दों  की रचना की होगी और इसके बाद यह जब लोकप्रिय हुआ होगा तो उसे अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि बाद में पढ़ा-लिखा भ्रष्ट समाज इसके शब्द 3 ईडियट्स के कारण अर्थ बदल देंगे...
 कम से कम शहडोल संभाग में इसके अर्थ बदल चुके हैं, क्योंकि आदिवासी विशेष क्षेत्र संविधान के कानून में संरक्षित के  शहडोल संभाग  खनिज क्षेत्र में नीति के दोषों के कारण 16- 17 वर्षों से खनिज माफिया का स्वर्ग बन गया है। ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ संभाग के 16- 17 वर्षों के खनिज विभाग के  अधिकारियों की संपत्ति का आकलन यदि कोई विशेष टीम करें तो पाएगी कि सब के सब इंस्पेक्टर और अधिकारी कम से कम करोड़पति और उसके ऊपर अरबपति तो बन ही चुके हैं। यह अलग बात है कि उनकी संपत्ति कहां, किस प्रकार से औ कितने  बेनामी लोगों के नाम से निवेश है ।
क्योंकि 16- 17 वर्षों में जिस प्रकार से शहडोल क्षेत्र में खनिज माफिया का खासतौर से रेत माफिया का चोरी से लेकर माफिया-गिरी तक उत्थान हुआ है और वे अपराध जगत में विश्वास करने लगे हैं उससे यह तो साबित हो रहा है कि जिसकी जितनी औकात थी उसने उतना खनिज लूटा है....
स्वाभाविक है इसका बड़ा हिस्सा खनिज इंस्पेक्टर और अधिकारियों के सेवा में गया है। कतिपय जहां कहीं ईमानदार अधिकारी जैसे लोकेश कुमार जांगिड़ आदि ने कार्यवाही की है वहां पर उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है। और  असमय ही किसी भी बहाने से स्थानांतरण कर दिया गया। सिर्फ 16-17 सालों के खनिज संबंधित अपराधों का समीक्षा हो तो पाया जाएगा कि सभी खनिज माफिया रेडक्रॉस सोसाइटी के महान दानवीर हैं।
   ऐसा भी नहीं है किस शासन और प्रशासन इस पर नियंत्रण करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, कुछ समय के लिए खनिज वाहनों का पंजीकरण विशेष रूप से किया जाने लगा ताकि माफिया गिरी का नियंत्रण और हिसाब हो सके। जीपीएस सिस्टम से कौन सी गाड़ी कहां जा रही है। किंतु जिस प्रकार से खनिज माफिया शासन और प्रशासन के कानूनों को जूतों की तले रौंदकर अपनी मनमानी गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता है उससे यह स्पष्ट है । यानी खनिज का तब का या फिर पुलिस, प्रशासन  खनिज माफिया के साथ मिलकर उसे संरक्षण देने का काम करता है।



     हाल में शहडोल जैसीनगर क्षेत्र में एक नदी ने ही जेसीबी मशीन को ही पकड़ लिया और छोड़ने का नाम नहीं ले रही है। ताकि प्रशासन और पुलिस और शासन के लोग भी यह देख सकें कि यही वह बलात्कारी मशीन है जो नदी के समाज की मर्यादा का उल्लंघन कर रही है । उसमें जैव विविधता को नष्ट करने का काम किया था। जितनी भी समझ है प्रशासनिक उच्च अधिकारियों की उन्होंने ही तय किया था की बरसात के समय में खनन सामग्री का दोहन विशेष रुप से रेत का दोहन न किया जाए। किंतु इसे शासन की नीति का दोष कहें या फिर खनिज ठेकेदारों की मजबूरी कि अपने घाटों को पूर्ण करने के लिए वह भरी नदी में भी जोखिम उठाने का काम करते हैं। इससे नदी समाज को जो क्षति पहुंचती है वह नेशनल हरित ट्रिब्यूनल भी शायद आकलन कर लेता होगा, इसीलिए उसने निर्देश भी जारी किए थे।
    किंतु गैर कानूनी तरीके से प्रकृति का शोषण करने वाले लोग एक माफिया की तरह जिसमें अवैध रूप से या वैध रूप से काम करने वाला अमला हो वह प्रकृति के साथ लगातार बलात्कार करता रहता है ।
    शायद तीनो जिलों के खनिज अधिकारी इस प्रकार के बलात्कारों को रोक सकते हैं किंतु उनकी निष्ठा अगर माफिया-गिरी में है और यदि उनकी निष्ठा भ्रष्ट नेताओं के प्रति समर्पित है तो आदिवासी क्षेत्र में खनन माफिया शांतिप्रिय ग्रामीण अंचलों की व्यवस्था में गोलीबारी करते ही रहेंगे। और कुछ जगह लाशें भी मिलती रहेंगी, जैसे उमरिया में मिली थी।
    यह इसलिए भी होता है  प्रदेश का मुखिया किसी बैगा सम्मेलन में बैगा के साथ नकली डांस करता है और खुश होकर मुंगाम्वो की तरह जब 2लाख देने की घोषणा करता है वह भी नगदी तो यह भी सोचना चाहिए कि ₹200000 नगद कोई माइनिंग अधिकारी कहां से पाएगी... आखिर कोई माफिया ही यह रकम दे सकता है..।
     तो उम्मीद करना चाहिए कि जैव विविधता संरक्षण के लिए, रीजेनरेशन के संरक्षण  के लिए भी ठेकेदारों को यदि महंगी खदानें मिल गई हैं तो भी शासन के साथ बैठकर विभिन्न नदियों के साथ अच्छा व्यवहार करते हुए विशेष तौर से बरसात में प्राकृतिक संरचना को बचाए रखने का काम करेंगे। और शासन भी ठेकेदार को हुए घाटों को समझने का काम करेगी।
    अन्यथा ठेकेदार भी परेशान, ग्रामीण अंचल में माफिया गिरी से लोग भी परेशान, पुलिस और प्रशासन भी परेशान, तो क्या लोकतंत्र इन्हीं परेशानियों की लिए बनाया गया था। यह विचार जरूर करना चाहिए और लगे हाथ यह भी की प्रकृति ने यदि अपने बच्चों को प्राकृतिक उपहार भरपूर दिया है तो सस्ती रेत, सस्ता पानी या सस्ती हवा और माफिया गिरी से होने वाली प्रदूषण मुक्त समाज बनाने में मदद करें।

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