इति आदिवासी क्षेत्र
नया इंडिया कोरोनावायरस से हमने क्या सीखा कुछ भी नहीं कम से कम जिला अस्पताल तो यही बताता है
शहडोल नगर की ही नहीं जिले की 90% जनता जिला चिकित्सालय पर निर्भर करती है। और यह इसका अधिकार है। किसी अमीर आदमी का खैरात-खाना नहीं...?
करीब सुबह के 9:45 बज चुके हैं सब कुछ है जिला चिकित्सालय के ओपीडी में, नर्स भी है, वार्ड बॉय भी, मरीजों की तो लंबी लाइन है...... जिसमें से कुछ लोग थक भी गए हैं।
इसलिए धूप में ही लाइन में बैठ गए हैं। यह कोरोना काल में हमारा लोकतंत्र जो सीखा उस से निकल कर आया। लाइन बढ़ा दीजिए, सोशल डिस्टेंसिंग नाम का अजूबा भी, इससे जो लाइन छोटी होती थी वह लंबी हो गई...। स्वाभाविक है जहां तक अस्पताल कैंपस की छाया थी वहीं तक छाया का सुख मिलेगा, फिर धूप का दुख मरीजों को सहना ही पड़ेगा। इसलिए कुछ मरीज थक भी गए हैं। अपनी गंभीर होती तबीयत से, किंतु लाइन नहीं तोड़ना चाहते। आखिर यह लाइन किसने बढ़ाई....?
यह लाइन छोटी हो सकती थी या खत्म हो सकती थी। अगर जिला अस्पताल का प्रबंधन सही होता । डॉक्टर नहीं है इसलिए लाइन बढ़ती ही जा रही है। तो डॉक्टर कहां गए, कहा गया वे राउंड पर हैं... तो प्रबंधन कैसा है कि जो राउंड पर हैं वही ओपीडी को संभाल रहे हैं....
जिला अस्पताल को अपनी जिम्मेदारी इस आदिवासी संभाग मुख्यालय शहडोल में समझना चाहिए और उससे ज्यादा यह है कि जनता को समझना चाहिए कि जिला अस्पताल उसकी अपनी सेवा संस्थान है उसमें कोई भी लापरवाही है तो वह उसे ठीक करने के लिए या तो अस्पताल प्रबंधन को या कलेक्टर शहडोल को या कमिश्नर शहडोल को जानकारी दें। क्योंकि यह किसी अमीर-जादे का खैरात खाना नहीं है। अमीर-जादे के लिए प्राइवेट अस्पताल हैं वह वहां जा सकते हैं ।यह मिडिल क्लास, लोअर क्लास, अप्पर लोअर क्लास और अपर मिडिल क्लास के लिए बनाई गई एक लोकतांत्रिक सुविधा है। और इस सुविधा में उसका संवैधानिक हक है। उसे उसी प्रकार से लेना चाहिए जैसे कि बेटा अपने बाप से अधिकार लेता है।
प्रशासन को भी कम से कम एक अधिकारी को नियुक्त करना चाहिए कि वह सुबह प्रतिदिन आकर चाहे तो अपना ब्लड प्रेशर ही चेक करावे, इस बहाने रिपोर्ट अपडेट करें की व्यवस्थाएं सही चल रही है.....
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