सोमवार, 29 जून 2020

मामला तीसरी संतान से नौकरी जाने का/ शिक्षकों में हड़कंप .... ( त्रिलोकीनाथ की खास रिपोर्ट)

निसंतान मरे राजाजी .........
तीसरी संतान हुई तो नौकरी गई ..
भाजपा समर्थित शिक्षक संघ ने
कहा अनुचित.....?
)
                   (त्रिलोकीनाथ)
...रानी शोक समानी थी, देश में आजादी के बाद पॉपुलेशन इतना बढ़ा कि वह समस्या बन गया..। कभी "सत-पुत्र-भव:" यह आशीष वाक्य भी वक्त के साथ बदल गए, इतने बदल गए कि 2 संतान के बाद तीसरी संतान अपराध का भाव पैदा करने लगी।
     यह अलग बात है कि शासन की यह मंशा कहां तक साबित या सफल होती है। कहते हैं 2001 में ऐसा आदेश शासन की तरफ से आया था कि यदि 26 जनवरी 2001 के बाद दो के बाद एक भी संतान अधिक हुई तो समझो नौकरी गई। 2001 से 20 साल हो गये अभी तक इसे बहुत सफलता नहीं मिली है। कागजों में यह बात पत्थर की लकीर की तरह सजी हुई है।
      किंतु कोरोनावायरस भारत से क्या गुजरा कि जब नींद खुली आदिवासी कल्याण विभाग में तो याद आया कि कहीं 3 माह के अंदर किसी ने अपनी तीसरी संतान तो पैदा नहीं कर ली है...? वैसे संतान आने में कम से कम 9 महीना तो लगता ही है। किंतु शासन है, शासन का क्या... सत्ता में बैठा हुआ कोई भी रात के अंधेरे में देख लेने की शक्ति रखता हुआ यह देख लिया कि 3 महीने में शायद संतान पैदा हो गई है..... और 17 जून 20 को सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के कार्यालय से एक पत्र जारी हुआ जिसमें शिक्षकों को हिदायत दी गई है कि वे इस बात का खुलासा करें कि क्या उनके तीन संतान है....? यदि तीसरी संतान है तो उनकी नौकरी समाप्त कर दी जाए ।  इस मंशा की पत्र को पाने के बाद शिक्षकों में हड़कंप मच गया। ऐसा माना जाता है मध्यप्रदेश में करीब 65000 कर्मचारी तीसरी संतान धारक है । 
  इस मामले में शिक्षक संघ के अध्यक्ष अरुण मिश्रा ने बताया किस प्रकार का पत्र जारी करना इस कोरोना काल के बाद सिर्फ परेशान करना ही है। क्योंकि विभाग के आदेश से यदि कहीं प्रताड़ना या प्राकृतिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो न्यायपालिका में बात जाएगी-जाएगी, उसमें कोई प्रश्न नहीं है। प्रश्न यह है कि जब आप संविलियन कर रहे थे अथवा प्रमोशन कर रहे थे तब आपने क्या जांच किया ?
 आज कुछ बुद्धिमान वर्ग एसी ऑफिस में बैठकर शिक्षकों को परेशान करने में तुला हुआ है।"

इस संदर्भ में उप आयुक्त आदिवासी विकास श्री सरवटे का कहना है विभाग से मौखिक निर्देश होते रहते हैं जिनका पालन किया जाना समय-समय पर एक प्रक्रिया है
    यह कोई नई बात नहीं है सहायक आयुक्त कार्यालय आदिवासी विकास शहडोल विवादों का जड़ है... यहां भ्रष्टाचार का माफिया कानून और दिशानिर्देशों को भ्रष्टाचार से पैसा पैदा करने का मशीन मानता  है। स्वयं एक ही विभाग में वर्षों से सांप की तरह कुंडली मारकर भ्रष्टाचार की खेती की जा रही है। पिछले सहायक आयुक्त ने इसमें सुधार लाने के लिए परिवर्तन किए तो महात्मा गांधी के यह सच्चे अनुयाई लक्ष्मी-वर्षा कुछ इस अंदाज में किए कि उनका विभाग अंगद की पैर की तरह जस का तस जमा हुआ है।
     विभाग में यह नई बात नहीं रह गई है कि जो भी आदेश निर्देश निकाले जाते हैं वह सिर्फ भ्रष्टाचार का निमंत्रण भी होता है इसमें हॉस्टलों के अधीक्षकों के मामले में पिछले कई वर्षों से देखा गया है की हॉस्टल के अंदर दारू-मुर्गा खाने वाले अधीक्षक भी टस से मस नहीं हुए। इसी प्रकार कई अधीक्षक जैसे कोई नया सर्कुलर पाते हैं "गांधी-लिफाफा" की झड़ी लगा देते हैं। उनको की टेबल पर और जो बचे रह जाते हैं उसे बड़ी आशा के साथ अंसार-मरावी डोर टू डोर सर्विस देते हुए कोरम पूरा करते हैं।
    इस प्रकार सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती नए अधीक्षकों का विज्ञापन भी जारी हो जाता है और अधीक्षक भी नहीं बदलते। वास्तव में सांप की कुंडली मारकर बैठे हुए भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी का नकाब उतारने के लिए जरूरी है कि जो भी 3 साल से बैठे हुए हैं एक ही भाग में उनसे शपथ पत्र लिया जाए कि उनकी और उनकी पत्नी और बच्चों की वास्तविक आमदनी और जमीन जा
जायजात कितनी है। सच्चाई, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

 इस दूध और पानी को लिखना जरूरी है क्योंकि तब आजादी की लड़ाई लड़ने वाले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बहुत दुखी हुई थी कि उनके पति निसंतान खत्म हो गए थे। वे शोक में समानी थी  बावजूद इसके देश को आजाद करने की पहली लड़ाई का मोर्चा उठाया था। तब उन्हें नहीं मालूम था की अंतिम पंक्ति के अंतिम लोगों ने आदिवासी वर्ग के हित के लिए बने विभाग में भ्रष्टाचार का मुखिया सर्कुलर जारी करता है और फिर भ्रष्टाचार की बरसात करवाता है। तीसरी संतान के मामले का यह सर्कुलर भी कुछ इसी अंदाज में शातिर लोगों द्वारा किया गया एक मनोरंजन मात्र है।
एक अनुमान में बताया गया इसमें शहडोल के 30 से 35% कर्मचारी शिक्षक फंसते नजर आ रहे हैं। कोरोना काल में जाल फेंक कर, जितना भ्रष्टाचार हो सके क्यों न कर लिया जाए... शायद यही एकमात्र उद्देश्य से विज्ञप्ति की परंपरा अपना लक्ष्य प्राप्त करती नजर आती है। देखना होगा की फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में गैर आदिवासी समुदाय के लोगों को संरक्षण देने वाला यह विभाग कितनी माया जाल फैलाने में सफल होता है । 
   फिलहाल भाजपा समर्थित शिक्षक संघ इस सर्कुलर से इसलिए नाराज है क्योंकि यदि तीसरी संतान है तो वह अपराध क्यों हो जाएगी....? सिर्फ इसलिए कि किसी सिरफिरे ने ऐसा आदेश पारित कर दिया था....। जो व्यावहारिक कम है और पीड़ादायक ज्यादा...। और यही शिक्षकों के मनोवैज्ञानिक कार्य व्यवहार को प्रभावित करता नजर आ रहा है ,ऐसे में शिक्षक अपना भविष्य देखें या विद्यार्थियों का....?
 शायद आदिवासी विकास के माफिया को समझ में नहीं आता........





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