रविवार, 28 जून 2020

रेत से निकल रहा है तेल-1 भरपूर प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कीमतें आसमान पर (त्रिलोकीनाथ)

रेत से निकल रहा है तेल
भरपूर प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कीमतें आसमान पर किस माइंडसेट से...
लूट के आलम में विकास का माइंड सेट...
स्थानीय लोगों को सस्ती रेत कब होगी उपलब्ध....

(त्रिलोकीनाथ )
ब्लैक एंड वाइट जमाने की एक फिल्म की  तस्वीरें याद आती हैं जिसमें कुल निष्कर्ष यह था की कोई ट्रेन जा रही थी और बीच में बिगड़ गई वह दो-तीन दिन एक स्थान पर खड़ी रही फिर बनीऔर ट्रेन चली गई
   
    इस दौरान लव स्टोरी, रोमांच सब रहा। एक कुएं का जिक्र आता है जिसमें एक यात्री कुआं खरीद लेता हैं और फिर कुएं से मिलने वाले पानी को कीमती मूल्य पर बेचता है बाकी यात्रियों को कुछ इसी अंदाज पर हमारी वर्तमान व्यवस्था का माइंड सेट हो गया है । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को गरीबों के हक न छीने के लिए माइंडसेट करने का निर्देश देते हैं। जैसे पिछले 15 साल उनका माइंडसेट रहा और वह बिगड़ गया था इसलिए माइंड सेट करने का निर्देश देते हैं। तो शहडोल आदिवासी संभाग मुख्यालय मैं इस माइंडसेट को देखने का प्रयास करते हैं.......
      राजनीति की गंदगी ने जिले को तीन टुकड़ा किया राजनीत की तुष्टि ने इसे संभाग मुख्यालय बनाया .....   यही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं जिन्होंने डंका पीट कर कहा था कि उन्होंने शहडोल को गोद ले लिया है। यानी मुख्यमंत्री के गोद में बैठे इस आदिवासी संभाग मुख्यालय शहडोल में पीने के पानी की
कीमत क्यों आसमान में छूने लगी इसलिए कि जब यहां नगर पालिका द्वारा पानी देने की व्यवस्था नहीं थी तो करीब 300 तालाब हुआ करते थे जो नगर में वाटर सेड का विरासत में मिली प्रॉपर्टी थी। मेरे घर में भी एक कुआं था जिसमें मीठा पानी आता था। नगर में जगह-जगह कुएं थे सब का वाटर लेवल हम लोग देखा करते थे कहां कितने हाथ रस्सी लगना है... यानी कितने फिट रस्सी की लंबाई कुए के वाटर लेवल से नापी जाती थी....
 

  फिर लोकतंत्र का विकास पुरुष सफल दौड़ चलने लगा तालाबों पर नगर पालिका और प्रशासनिक अमला ने भ्रष्ट राजनेताओं के संरक्षण में कब्जा करना चालू कर दिया। तालाब के अंदर अतिक्रमण को कानूनी बनाना चालू कर दिया यहां तक की उस अतिक्रमण गैरकानूनी निर्माण से उसका संपत्ति-कर भी व फायदे नगर पालिका ने वसूला और सभी प्रकार की अनुमति देना चालू कर दिया।
        इसी में एक अनुमति शायद पुलिस विभाग को भी दिया गया... जहां पुलिस कंट्रोल रूम, पुलिस यातायात बाईपास रोड शहडोल में स्थापित है... वह दरअसल तालाब है अत्याधुनिक पुलिस कंट्रोल रूम, अत्याधुनिक पुलिस को बनाने के लिए ताकि अत्याधुनिक संसाधन से कोई अपराध ना हो किंतु पुलिस जैसे एक गिरोह बनकर शहडोल की प्राकृतिक व्यवस्था और विरासत के तालाब के साथ खुला बलात्कार किया...., तो क्या तत्कालीन पुलिस उच्च अधिकारी शहडोल की व्यवस्था को समझ नहीं पाए....? और तालाब पर अतिक्रमण कर लिया ।
     उस पर सरकारी धन लगाकर के भवन बना दिया ..?
जी नहीं, तत्कालीन अधिकारियों ने बस जो भ्रष्ट व्यवस्था शहडोल में स्थापित हो गई थी उसका परंपरागत तरीके से पालन किया.... सरकारी धन की होली जलाकर तालाब के पानी से आग लगाकर तालाब को नष्ट कर दिया.... इस पर चर्चा फिर करेंगे, इस तालाब में पुलिस को छोड़कर बाकी नागरिकों को किस तरह प्रशासनिक राजस्व की व्यवस्था प्रताड़ित कर रही है...?

      अभी मूल मुद्दे पर जाएं, तो जब पूरे तालाब या कहना चाहिए 70% तालाब में अतिक्रमण कराने और मकान निर्माण की अनुमति देकर उससे संपत्ति कर वसूलने का काम किया जा रहा था स्वाभाविक है "शहर का पानी मर रहा था...." अब शर्म से मर रहा था, या बेशर्मी से ... यह बात बैठा नगर पालिका परिषद को सोचना चाहिए।
  अपन तो यह जानते हैं की बावजूद इसके की पूर्व पार्षद गण इसी अपराध-बोध के इस भ्रष्टाचार से उनका पानी मर गया था और वे पानी की दर इसलिए नहीं बढ़ा रहे थे क्योंकि नागरिकों को कष्ट होगा.... क्योंकि तालाब आपने भाठ दिये थे। और उसे बैठने के बाद संपत्ति कर भी वसूल रहे , जिससे वाटर लेवल डाउन हुआ शहर का और कुएं सूख गए..।
    फिर जो डाका, बोरिंग की अनुमति देकर.. हर घर में ट्यूबवेल बनवाए गए उससे बची कुची नेताओं के "आंख का पानी भी मर गया" इसी दौरान प्रशासनिक व्यवस्था आई उसने इस भ्रष्ट व्यवस्था में ठीक करने के लिए आंख मूंदकर तत्कालीन एसडीएम गजेंद्र सिंह जब प्रशासक बने तो पानी का रेट जो शायद ₹40 था उसे ₹100 कर दिया और जुर्माना भी इस तरह शहर के तालाब और कुएं को नष्ट कर उसमें मकान बनाकर संपत्ति कर तो वसूला ही जा रहा था साथ में पानी भी नष्ट कर दिया गया फिर नल का पानी की कीमत नागरिकों से वसूले जाने लगा.. जुर्माना अलग से..।
     यह लगातार प्राकृतिक संसाधन पर लूट और डाका दोनों एक साथ पड़ता रहा जो भी परिषद आई उसने भी डाका डालने में नागरिकों को मौलिक अधिकार पर हनन करने पर कोई कसर नहीं छोड़ा । शायद  इस संदर्भ में परिषद सिर्फ लूट के लिए बैठती है , प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से सस्ता पानी या मुफ्त के पानी जो उसे प्राप्त होता था वापस देने पर कभी चिंतन नहीं करते.... अब यह एक व्यवस्था बन गई है..। पालिका परिषद के बाद प्रशासनिक अधिकारी मिलकर इस डाके को और लूट को कानून बना दिए।
     अब यह कानून शहर से बाहर चला प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण , पांच बड़ी नदियां से परिपूर्ण असीमित रेत संसाधन से परिपूर्ण... शहडोल जिला पिछले 15 साल से "माइंडसेट" होकर अद्यतन व्यवस्था में खनिज विभाग के लेडी डॉन के साथ रेत की तस्करी इस कदर बढ़ी... कोयले की तस्करी को लोग भूल गए ,पत्थर की तस्करी को याद रखना गिरा हुआ काम बन गया था।
     तो 15 साल में लूट की प्रक्रिया जो चालू हुई तब तत्कालीन कलेक्टर ने जब हो-हल्ला मचा, ₹300 ट्राली का रेट ₹2000 से ₹4000 ट्राली बिक रहा था.... तत्कालीन कलेक्टर संभवत मुकेश शुक्ला ने हस्तक्षेप किया और रेत के दर निर्धारित किए..... जो संभवत ₹2400 प्रति ट्राली निश्चित हुआ..., नागरिकों को कितना लाभ मिला वह बहुत मायने नहीं रखता ।
     फिर एक नई व्यवस्था आई जिले के ठेका एक ठेकेदार वंशिका ग्रुप को दे दिया गया 3 वर्ष का ठेका है
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