रविवार, 7 जून 2020

जाति न पूछो..... भाग 1





जाति न पूछो..... भाग 1

आदिवासी विभाग में आदिवासियों के नाम कब तक होगा भ्रष्टाचार...
जिला खनिज निधि न्यास मेें गैरजरूरी व्यय  कितना उद्देशपरक ....
विधायकों और सांसद की मूक सहमति एक बड़ा प्रश्न  ?

(त्रिलोकीनाथ)
जिला खनिज न्यास जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाया गया था क्या उसमें इस न्यास निधि का उपयोग हो रहा है...? यह प्रश्न इसलिए खड़ा होता है क्योंकि शहडोल के सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग ने एक परिपत्र जारी करके अपने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों से इस आशय के प्रस्ताव मांगे हैं। कि उनके स्कूलों में फर्नीचर्स आदि खरीद करने के लिए वे प्रस्ताव तैयार करें ।
    यह खरीदी उन्हें जिला खनिज न्यास निधि से करना है इसके पहले भी ऐसा हो चुका है कि जिला खनिज न्यास की निधि का समुचित उपयोग नहीं हुआ है ।जिला खनिज न्यास के संविधान में अथवा आचार संहिता में या फिर जिन उद्देश्यों के लिए वह बना है उसमें इस प्रकार का कहीं जिक्र नहीं है कि इस धनराशि का उपयोग किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों के लिए उन्हें राहत राशि के रूप में किया जाएगा बावजूद इसके संभवतः उच्च नेताओं के निर्देश पर जिला प्रशासन ने औरंगाबाद ट्रेन एक्सीडेंट में शहडोल के कट गए 11 मजदूरों की मृत्यु पर पांच-पांच लाख रुपए जारी किए हैं यानी 55 लाख खनिज न्यास का व्यक्ति के क्षतिपूर्ति के काम पर जारी किया गया।
    इसे यहीं छोड़ दें तो मृत व्यक्ति के लिए शासन के पास "राहत फंड" या केंद्र सरकार के पास हाल में बनाया गया "पीएम केयर फंड" पहले से तय है। और पीछे जाएं तो श्रम अधिनियम के अधीन श्रमिकों को दिया जाने वाला धन, तमाम बड़ी-बड़ी बीमा कंपनियों को "करोड़ों रुपए  सासन से प्रीमियम जमा करके राज्य सरकारों द्वारा किया गया अनुबंध से भी क्षतिपूर्ति" दिलाई जा सकती थी। खुद सही ढंग से पहल करके "रेलवे मंत्रालय से भी यह क्षतिपूर्ति" भारी मात्रा में दिलाई जा सकती थी।
      इस प्रकार कट गए मृत श्रमिकों के परिवारों को बहुत ज्यादा क्षतिपूर्ति भी मिल जाती और जिला खनिज न्यास निधि का दुरुपयोग भी नहीं होता.....।
 यह समझा जाना निहायत गलत होगा कि जिला प्रशासन के संबंधित उच्चाधिकारियों ने अपनी इच्छा से पांच पांच लाख जारी किए हैं। यह तय है कि अथवा मौखिक में या फिर लिखित में शासन में बैठे नेताओं के निर्देश पर खनिज न्यास का यहां दुरुपयोग हुआ है। ऐसा एक चिंतन पैदा होता है जो गलत भी हो सकता है।
    बहरहाल विषय यह नहीं था विषय यह है की आदिम जाति कल्याण विभाग में फर्नीचर खरीदी के लिए खनिज न्यास का क्यों उपयोग होना चाहिए...., जबकि आदिवासी विभाग में करोड़ों-अरबों रुपए सिर्फ इसी बात के लिए आते हैं कि स्कूल के बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं उच्च स्तर की प्रदान की जाए और उससे समग्र सामग्री खरीदी की जाए क्या..। यह आदिवासी विभाग में अच्छा  प्रवृत्ति को जन्म नहीं देता कि वह दवाब बनाकर के या बनवा करके खनिज न्यास का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसके पहले भी देखा है हमने की आदिवासी विभाग में विज्ञापन दिखाकर के वर्षों से पदस्थ भ्रष्ट अमला अवैध वसूली करता रहा है । 
     उसे ज्ञान है कि कहां से कैसे भ्रष्टाचार के अनुसंधान पूर्ण कार्य किए जा सकते हैं उसे मालूम है कि इस धनराशि को कैसे किस सिस्टम में कितना बंटवारा करना है और यह बंटवारा को जिला स्तर पर समाप्त नहीं हो जाता शहडोल जिले के किसी गांव कि किसी स्कूल से लेकर मंत्रियों के बंगले में  उनकी पत्नियों को सोने की चूड़ी पहनाने तक अथवा उनके लिए चप्पल खरीदने तक का कार्य कुशल-भ्रष्ट अमला अपने तरीके से करता रहा है।
     किंतु खनिज न्यास के माध्यम से प्रस्ताव की बात पहली बार आई है अभी कुछ समय पूर्व कमिश्नर शहडोल द्वारा लालपुर बैगा सम्मेलन के नाम पर  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के निमंत्रण पर बैगा परिवार के खाने और पीने के पानी के नाम पर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार का मामला ठंडा नहीं हुआ है। फर्जी बिल के कारण की जानकारी पर जो जांच हुई उसमें कुछ कर्मचारियों पर कार्यवाही भी हुई है किंतु जो माफियानुमा कर्मचारी हैं वे सुरक्षित हैं .....उन्हें मालूम है कि किस प्रकार से नए भ्रष्टाचार ओं को अंजाम देना है।
      यह भी उल्लेख करना उचित होगा कि कोई गैर हिंदू भ्रष्ट माफिया किस प्रकार से हिंदुत्व वाली पार्टी के साथ बैठकर सफलता पूर्ण तरीके से शासकीय धन को भ्रष्टाचार के लिए  पिछले  15-16 सालों से अंजाम देता रहा है। इसलिए यह धारणा भी गलत होगा कि हिंदुत्व को आदर्श मानने वाली भारतीय जनता पार्टी किसी गैर हिंदुत्व वाले व्यक्तियों के भ्रष्टाचार को नेक्सेस के मामले में अघोषित संबंध स्थापित करने पर कोई परहेज करती है । इसलिए यह धारणा भी गलत साबित होती है कि माफिया की कोई धार्मिक पहचान होती है। बल्कि माफिया सभी धर्म के विचारधारा के लोगों पर अपना पूर्ण पकड़ बनाए रखता है। सिर्फ आदिवासी विभाग के विभिन्न विज्ञापनों को समझने का प्रयास करें तो समझ में आएगा कि भ्रष्टाचार की मूल जड़ में यहां किस प्रकार के अनुसंधान होते हैं.... चाहे संभागीय आदिवासी विभाग का कार्यालय हो या जिला स्तर के सहायक आयुक्त का कार्यालय कम से कम शहडोल में छात्रावास अधीक्षकों के नाम पर कई बार विज्ञप्ति जारी की गई है किंतु भर्ती क्यों नहीं हुई आज तक समझ में नहीं आया....                     (जारी- दो)





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