मामला बी ई ओ सोहागपुर कार्यालय का
एक फूल दो माली.... महंगी पड़ती रखवाली
(त्रिलोकीनाथ)
जी हां वर्षों से भ्रष्टाचार के गंगा में शहडोल क्षेत्र में डुबकी लगा रहे खंड शिक्षा अधिकारियों का कारोबार उस समय थम सा गया था जब कमिश्नर आर प्रजापति ने सोहागपुर खंड शिक्षा अधिकारी बी ई ओ शिव प्रताप सिंह चंदेल को निलंबित कर दिया था। किंतु कहते हैं शेर बूढ़ा ही क्यों ना हो जाए मरते दम तक वह शेर ही होता है इस तरह है चंदेल के नजरअंदाज करने पर अंततः कमिश्नर ने जो झपट्टा मारा चंदेल साहब की वर्षों की शिक्षा महकमे में इलाकेदारी धराशाई हो गई। जो उनके शान के खिलाफ था और उन्होंने उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के जरिए पुनः बी ई ओ सोहागपुर का चार्ज एक तरफा 30 अप्रैल 2020 को ले लिया । तब से प्रशासनिक सेवाएं वही देते आ रहे हैं। मामला वहां फंस गया कि यदि प्रभार भी लेना है तो कमिश्नर के आदेश से ही प्रभार मिल सकता था किंतु एक कमिश्नर के सेवानिवृत्त हो जाने का इंतजार कर रहे थे। कहते हैं इनके ही एक सहयोगी इन्हीं के जैसे अपराध में निलंबित हुए थे, उन्हें उच्च न्यायालय ने अभी तक कोई राहत नहीं दी है ।
क्योंकि बीच में कोरोनावायरस कोविड-19 बाजी मार ले गया। बहराल चंदेल साहब ने अपने इलाकेदारी निरीहप्राणी प्रभारी खंड शिक्षा अधिकारी श्रीमती सावित्री शुक्ला से दवाब देकर ले लिया। पेज वहां फंस गया जब वित्तीय मामलों के आहरण के अधिकार पर कोषालय अधिकारी ने चंदेल साहब को आइना दिखा दिया कि आपका प्रभार गैरकानूनी है। फिर भी एसपीएस चंदेल ने अपना वजूद कायम रखा। अब श्रीमती सावित्री शुक्ला के लिए असमंजस के हालात हो गए क्योंकि चंदेल साहब उनके पुराने उच्च अधिकारी थे और भ्रष्टाचार के कुशल भी तो श्रीमती शुक्ला ने समर्पण करना ही उचित समझा और उनकी कुर्सी विहित सरकारी फार्म में प्रभार देकर उनको वापस सौंप दी। क्योंकि अब तक शिक्षक रही श्रीमती शुक्ला कार्यालय के भ्रष्ट सिस्टम में फिट नहीं हो पा रही थी। श्रीमती शुक्ला की गलती सिर्फ यह थी कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों से कानून संगत आदेश का इंतजार किए बिना दबाव में आकर प्रभार दे दिया क्योंकि हाईकोर्ट का फरमान देखकर, उन्हें लगा "भल मारा मुझे रोना ही था"।
किंतु उनका यह गैरकानूनी प्रभार देना अब दोनों खंड शिक्षा अधिकारियों याने s.p.s. चंदेल और श्रीमती सावित्री शुक्ला तथा सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग के लिए भी सिर दर्द है क्योंकि सहायक आयुक्त आदिवासी कार्यालय के नाक के नीचे कोई व्यक्ति गैरकानूनी तरीके से खंड शिक्षा अधिकारी बनकर कार्य कर रहा था और सहायक आयुक्त कार्यालय आंख मूंदकर तब तक उन्हें तवज्जो दे रहा था जब तक जिला कोषालय अधिकारी ने कानून संगत परिभाषा सरकारी महकमों को समझा नहीं दिया।
किंतु इस बीच एसपीएस चंदेल ने भ्रम फैलाकर
ऑफ द रिकॉर्ड खंड शिक्षा कार्यालय सोहागपुर के क्षेत्र में ऑफ द रिकॉर्ड जो गैरकानूनी गतिविधियां अथवा राजस्व संग्रह होता था उन पर उनपर वे तल्लीन रहे और उनकी सहायक आयुक्त कार्यालय में बैठे वर्षों से दीमक की तरह काम कर रहे कतिपय तथाकथित अधिकारी सहायक आयुक्त को भी भ्रमित करके उन्हें खंड शिक्षा अधिकारी बनाए रखा। जबकि जिम्मेदारी निर्माण की बात है तो श्रीमती सावित्री शुक्ला के ऊपर कार्यों की लापरवाही का ठीकरा फोड़ा जा रहा है यह कहकर कि खंड शिक्षा अधिकारी श्रीमती सावित्री शुक्ला ही हैं तो क्यों ना उन्हें ही दंडित किया जाए । देखना होगा, "एक फूल बीईओ कार्यालय, के दो माली और इनके मालिक सहायक आयुक्त कार्यालय अब किस करवट बैठता है.....?
एक फूल दो माली.... महंगी पड़ती रखवाली
(त्रिलोकीनाथ)
जी हां वर्षों से भ्रष्टाचार के गंगा में शहडोल क्षेत्र में डुबकी लगा रहे खंड शिक्षा अधिकारियों का कारोबार उस समय थम सा गया था जब कमिश्नर आर प्रजापति ने सोहागपुर खंड शिक्षा अधिकारी बी ई ओ शिव प्रताप सिंह चंदेल को निलंबित कर दिया था। किंतु कहते हैं शेर बूढ़ा ही क्यों ना हो जाए मरते दम तक वह शेर ही होता है इस तरह है चंदेल के नजरअंदाज करने पर अंततः कमिश्नर ने जो झपट्टा मारा चंदेल साहब की वर्षों की शिक्षा महकमे में इलाकेदारी धराशाई हो गई। जो उनके शान के खिलाफ था और उन्होंने उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के जरिए पुनः बी ई ओ सोहागपुर का चार्ज एक तरफा 30 अप्रैल 2020 को ले लिया । तब से प्रशासनिक सेवाएं वही देते आ रहे हैं। मामला वहां फंस गया कि यदि प्रभार भी लेना है तो कमिश्नर के आदेश से ही प्रभार मिल सकता था किंतु एक कमिश्नर के सेवानिवृत्त हो जाने का इंतजार कर रहे थे। कहते हैं इनके ही एक सहयोगी इन्हीं के जैसे अपराध में निलंबित हुए थे, उन्हें उच्च न्यायालय ने अभी तक कोई राहत नहीं दी है ।
क्योंकि बीच में कोरोनावायरस कोविड-19 बाजी मार ले गया। बहराल चंदेल साहब ने अपने इलाकेदारी निरीहप्राणी प्रभारी खंड शिक्षा अधिकारी श्रीमती सावित्री शुक्ला से दवाब देकर ले लिया। पेज वहां फंस गया जब वित्तीय मामलों के आहरण के अधिकार पर कोषालय अधिकारी ने चंदेल साहब को आइना दिखा दिया कि आपका प्रभार गैरकानूनी है। फिर भी एसपीएस चंदेल ने अपना वजूद कायम रखा। अब श्रीमती सावित्री शुक्ला के लिए असमंजस के हालात हो गए क्योंकि चंदेल साहब उनके पुराने उच्च अधिकारी थे और भ्रष्टाचार के कुशल भी तो श्रीमती शुक्ला ने समर्पण करना ही उचित समझा और उनकी कुर्सी विहित सरकारी फार्म में प्रभार देकर उनको वापस सौंप दी। क्योंकि अब तक शिक्षक रही श्रीमती शुक्ला कार्यालय के भ्रष्ट सिस्टम में फिट नहीं हो पा रही थी। श्रीमती शुक्ला की गलती सिर्फ यह थी कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों से कानून संगत आदेश का इंतजार किए बिना दबाव में आकर प्रभार दे दिया क्योंकि हाईकोर्ट का फरमान देखकर, उन्हें लगा "भल मारा मुझे रोना ही था"।
किंतु उनका यह गैरकानूनी प्रभार देना अब दोनों खंड शिक्षा अधिकारियों याने s.p.s. चंदेल और श्रीमती सावित्री शुक्ला तथा सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग के लिए भी सिर दर्द है क्योंकि सहायक आयुक्त आदिवासी कार्यालय के नाक के नीचे कोई व्यक्ति गैरकानूनी तरीके से खंड शिक्षा अधिकारी बनकर कार्य कर रहा था और सहायक आयुक्त कार्यालय आंख मूंदकर तब तक उन्हें तवज्जो दे रहा था जब तक जिला कोषालय अधिकारी ने कानून संगत परिभाषा सरकारी महकमों को समझा नहीं दिया।
किंतु इस बीच एसपीएस चंदेल ने भ्रम फैलाकर
ऑफ द रिकॉर्ड खंड शिक्षा कार्यालय सोहागपुर के क्षेत्र में ऑफ द रिकॉर्ड जो गैरकानूनी गतिविधियां अथवा राजस्व संग्रह होता था उन पर उनपर वे तल्लीन रहे और उनकी सहायक आयुक्त कार्यालय में बैठे वर्षों से दीमक की तरह काम कर रहे कतिपय तथाकथित अधिकारी सहायक आयुक्त को भी भ्रमित करके उन्हें खंड शिक्षा अधिकारी बनाए रखा। जबकि जिम्मेदारी निर्माण की बात है तो श्रीमती सावित्री शुक्ला के ऊपर कार्यों की लापरवाही का ठीकरा फोड़ा जा रहा है यह कहकर कि खंड शिक्षा अधिकारी श्रीमती सावित्री शुक्ला ही हैं तो क्यों ना उन्हें ही दंडित किया जाए । देखना होगा, "एक फूल बीईओ कार्यालय, के दो माली और इनके मालिक सहायक आयुक्त कार्यालय अब किस करवट बैठता है.....?
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