छटवी इन्द्रिय का मेरा अनुभव :डॉ सुधा नामदेव
जिसे आज हम सब इंग्लिश में 6 th सेंस कहते हैं, जो कभी कभी हमारे अपने अंदर से कोई आवाज हमे सुनाई पड़ती है, कि जो हम करने जा रहे हैं, वह गलत हो रहा है ।ये वही पल होता है, जिसमे हमारी अपनी अनसुनी हमारे लिए घातक हो
सकती है ।तो इसी 6 वी इन्द्रिय का अपने ऊपर कई बार हमने असर देखा,कुछ अच्छा भी और कुछ बुरा भी ।बुरा बताने की तो कोई वजह नही है,पर अच्छा जरूर शेयर करना चाहते हैं ।वास्तविक घटना ,नौकरी के शुरुवाती सालो की ।
रीवा मेडिकल कॉलेज से एम डी पैथोलोजी पास करके अक्टूबर 1988 में शहडोल जिला चिकित्सालय जॉइन किया । हमसे पहले जिला चिकित्सालय की पैथोलॉजी एवम ब्लड बैंक की कमान तकनीशियन ही सम्हालते थे ।ज़ाहिर है उनमें से जो हमसे उम्र में बड़े थे उनको हमारा बॉस बनके आना अच्छा नही लगा ,किसी को नही लगेगा, शायद उनकी जगह हम होते तो हमे भी नही ,ये तो इंसान की फितरत होती है ।तो वो हमसे दूरी ही बनाये रहते थे ,विभाग में शीत युद्ध चलता रहता था ।खैर कोई बात नही थी ,हम भी अनुभव हीन ही थे ।अभी तक सबके अंडर में रहके काम करने की ही आदत थी तो बॉस बनके काम लेना नही आता था ।ख़ुद से काम करते रहते थे ।
उन दिनों ब्लड बैंक की स्थिति हर जगह बहुत दयनीय हुआ करती थी ।एक छोटे से कमरे में ब्लड बैंक चलता था ।बैंक क्या वो किसी का भी ब्लड निकालके उसके मरिज को प्रदाय करने का साधन होता था ।
बात दिसंबर 1988 की होगी ,शहडोल की किसी महिला बाल विकास अधिकारी महिला को आफिस में ही किसी दुश्मन ने पेट मे चाकू मार दिया था ,महिला सीरियस हालात में हॉस्पिटल लायी गयी ।उसको ब्लड चढ़ाने की डिमांड वार्ड से आई ।ऐसे तो हमारे टेक्नीशियन रूटीन टाइम के अलावा कभी क्रॉस मैच फॉर्म में सिग्नेचर करने के लिए हमे नही बुलाते थे ,उस दिन ड्यूटी में मौजूद तकनीशियन को पता नही क्या सूझा, हमको कॉल भेजी ।चलिए हम आये हॉस्पिटल ।ब्लड
रेडी था ।उसके अटेंडेंट को सौंपने के लिए । उन दिनों कांच की बोतल में ब्लड निकाला जाता था ।(जैसा कि एम डी के समय मेडिकल कॉलेज में आदत थी कि तकनीशियन ने सब रेडी करके रखा ,हमने क्रॉस मैच चेक करके सिग्नेचर करके ब्लड हैंड ओवर कर देते थे )तो उसी ईमानदार आदत के तहत एक बार क्रॉस मैच माइक्रोस्कोप में देखा और क्रॉस मैच फॉर्म में सिग्नेचर करके ब्लड सौप दिया ।उनके अटेंडेंट 2,,,4 कदम ही आगे बढ़े तो हमारे 6 वी इन्द्रिय ने कहा रोको इन्हें ।ब्लड का ग्रुप तो देखा ही नही ।तुरन्त वापस बुलाया एक सिरिंज अंदर ब्लड बोतल में डालके ब्लड निकाला और ग्रुप किया तो हमारे होश उड़ गए ।मारीज ओ पॉजिटिव ग्रुप का था और ये बी पॉजिटिव का ब्लड दिया जा रहा था ,, ,,, अगर ये ब्लड मरिज को लग गया होता तो उसकी तो जान पर बन गयी होती ।अपनी ही आवाज़ ने उसे और हमे दोनों को बचाया ।।हम पसीना पसीना हो गए थे ।हमने दूसरा ब्लड यूनिट तैयार कराया फिर ओ पॉजिटिव ग्रुप उन्हें सौपा ।
उन दिनों शहडोल में क्रॉस मैच भी तरीके से नही होता था ,फिर धीरे धीरे सारे सिस्टम बदलते गए ।हमे आज तक नही पता की हमारे विरुद्ध ये साजिश थी या वो महाशय खुद धोखे से कर गए थे ।हमने उसके बाद जानने की कोशिश भी नही की ।पर हाँ ब्लड बैंक के किसी भी पेपर में आज तक स्वयम बिना जांचे परखे कभी अपने सिग्नेचर नही करते ।उस दिन के बाद से अभी तक 6 वी इन्द्रिय की बात हम हमेशा मानते हैं ।एक बार ,बस एक बार न मानने का खामियाजा जिंदगी भर महसूस कर रहे हैं।
6 वी इन्द्रिय को हम अन्तरात्मा की आवाज भी मान सकते है।
डॉक्टर सुधा नामदेव |
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