रविवार, 17 मई 2020

वर्तमान युद्ध के शहीदों परिवार संरक्षण के मीसाबंदी के समकक्ष 5000 निधि दी जाए( सुशील कुमार शर्मा)

मीसा बंदियों  के आपातकाल  और वर्तमान आपातकाल में प्रताड़ित लोगों को  जख्म कैसे भरें....?
 वर्तमान युद्ध के शहीदों को
मीसाबंदी के समक्ष कम से कम 5000 का सम्मान निधि दी जाए


(सुशील कुमार शर्मा एक समाजसेवी) 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोनावायरस की आपदा को महाभारत से ज्यादा बड़े युद्ध के समकक्ष देखा था। और अपने पहले उद्बोधन में कहा भी था कि वह 18 दिन का युद्ध था, यह 21 दिन का युद्ध होगा। अब डेढ़ महीने से ज्यादा यही तो चल रहा है लगातार आपातकाल के हालात बने हुए हैं ।आपातकाल की पीड़ा जानने वालों को शहीद का दर्जा दिया गया था। वर्तमान आपातकाल अति दर्दनाक हालात का अनुभव कराते हैं एक तरफ जहां एक बड़ा वर्ग है  जिसमें सत्ता में बैठे हुए लोग अधिकारी और अमीर वर्ग अपने घरों में सुरक्षित होकर समय काटने का काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूर और प्रभावित पर आपातकाल से भी भयानक कष्टकारी परिस्थिति को लगातार सिर्फ महसूस कर रहा है ।भूखे प्यासे बंद कमरों में जब दम घुटने लगा वह अपने घर की तरफ चल पड़ा , कई लोग इस प्रक्रिया में वायरस से संक्रमित होकर मर गए हैं तो कई प्रभावित हैं दूसरी ओर इस आपातकाल के हालात में दुर्घटनाओं में भी लगातार लोग परेशान होकर मर रहे हैं। जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वर्तमान परिस्थिति आपातकाल से भी बदतर हालात के हैं। ऐसी स्थित में कम से कम उन परिवारों को जिनके परिवार में लोग मर गए हैं या मर रहे हैं उन्हें शासन से पेंशन योजना का लाभ उसी समकक्ष तरीके से देना चाहिए जिस प्रकार से आपातकाल के हालात में मीसा बंदियों को ₹25000 तक प्रतिमाह पेंशन दिया जा रहा है । क्योंकि इस महामारी में दुर्घटना बस आपात हालात में  मरने वाले प्रत्येक भारतीय नागरिक युद्ध के हालात की पीड़ा झेल रहा है, ऐसी स्थिति में इन्हें इस महामारी के युद्ध में शहीद  का दर्जा देकर मृतक के परिवार को कम से कम ₹5000 प्रतिमाह आजीवन पेंशन देना चाहिए। यह इसलिए भी न्याय उचित होगा क्योंकि यदि मात्र कुछ माह के लिए मीसाबंदी में कुछ लोगों को प्रताड़ना के कारण ₹25000 तक का पेंशन दिया जा रहा है तो यह भी आपातकाल से बदतर हालात का प्रताड़ना है.... जिसमें कम से कम ₹5000 का पेंशन दिया जाना चाहिए। शासन को आपातकालीन  बंदी के समकक्ष मीसा बंदियों को भी इन्हें के संकट से पेंशन देते हुए वर्तमान युद्ध में मारे गए परिवार जनों को संरक्षण देने का काम करना चाहिए। यह मानवीय कार्य में निश्चित तौर पर वे सभी मीसाबंदी जिन्होंने आपातकाल को भोगा है, वर्तमान हालात में अपने साथ ही भारतीय नागरिकों की मदद के लिए भी आगे बढ़कर हाथ बढ़ाएंगे ।
किंतु जब तक शासन स्वयं प्रोत्साहित करके मीसा बंदियों को वर्तमान आपात हालात के प्रताड़ितों  की दुख दर्द में आगे बढ़ने के लिए सहभागी बनने का प्रोत्साहित नहीं करेंगे मीसाबंदी कदम से कदम कैसे मिला पाएंगे।
 कई ऐसे मीसाबंदी हैं जो इस पक्ष में है की भलाई हमारी मासिक पेंशन कम कर दी जाए लेकिन आपातकाल से भी बदतर हालात में मृत हो रहे इस महामारी के सभी शहीदों को चाहे वे दुर्घटना में मरे हो अथवा बीमारी में उन्हें और उनके परिवार को मासिक पेंशन देकर संरक्षण दिया जाए।

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