¥ -लोकतंत्र का "हॉर्स-ट्रेडिंग"
€ -"टुकड़े-टुकड़े गैंग" की हत्या से
$ -सुरक्षा के शरणार्थी
🤔आधुनिक राजनीति का कड़वा सच
( त्रिलोकीनाथ )
प्रेस कॉन्फ्रेंस मे सही कहा था, हैदराबाद से लौटने के बाद कि उन्हें अपने परिवार की चिंता है, जिनकी हत्या हो सकती है.....! और वे दुहाई दे रहे थे कि कुछ भी कर लो लेकिन अमित शाह जी मैं भारतीय जनता पार्टी नहीं छोडूंगा, आप यकीन रखें और मुझे सुरक्षा दे।
देश के गृहमंत्री को संबोधित करते हुए उनका प्रेस कॉन्फ्रेंस एक कड़वा सच है, झूठ नहीं बोल रहे हैं... क्योंकि उन्हें मालूम है की "बलि का बकरा" जातिवाद के धंधे में "गैर ठाकुर" को ही बनना है या फिर अन्य को....।
ठाकुर याने राजतंत्र के वंशज और उनके सेवादार..,
ठाकुर याने सत्ता का प्रबंधन करने वाली विरासत और उनके चौकीदार....,
ठाकुर याने राजनीति माफिया गिरी की सफलता की गारंटी.......
(अब ठाकुर वर्ण व्यवस्था का क्षत्रिय नहीं है बल्कि वह शोले फिल्म का गब्बर सिंह या फिर ठाकुर है उसकी जात कुछ भी हो सकती हैं सिंह भी, शाह भी, अंबानी भी, अडानी भी और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र, दलित भी, स्वर्ण भी हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई भी उसकी योग्यता मात्र यह हैै कि माफिया गिरी में निपुण हो..., बेहद चाटुकार, चमचा और गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला सदा झूठ बोलने वाला वह योग्यतम पदाधिकारी हो सकता है)
कुछ इस अंदाज में 70 साल में ही भारत की राजनीति देश की आजादी के बाद दम तोड़ने की घोषणा करता है... यही कारण है कि 6 करोड़ की जनता के प्रतिनिधि 19 विधायक लोग मध्य प्रदेश छोड़कर बेंगलुरु में डीजीपी के शरण में हैं..., अपनी जान की सुरक्षा के लिए...! तो कांग्रेस के लोग राजस्थान के डीजीपी की सुरक्षा की चाहत में जयपुर चले गए हैं....! और भारतीय जनता पार्टी के विधायक उत्तर प्रदेश डीजीपी की सुरक्षा में गुड़गांव में चले गए हैं जिसे आजकल उन्होंने नाम दिया है गुरुग्राम...!
तो जब सबको अपनी हत्या की इतनी चिंता है... अब चाहे हत्या, जान की हो या फिर स्वाभिमान की अथवा सम्मान की हत्या की असुरक्षा तो है ही..... मध्यप्रदेश के छह करोड़ जनता को लावारिस छोड़ कर उनके हुए चुने हुए प्रतिनिधि मध्य प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं......... राजनीत की माफिया गिरी का आलम यह है कि देश का गृहमंत्री, कर्नाटक का मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और राजस्थान का मुख्यमंत्री इन्हें असुरक्षा के कारण शरणार्थियों का दर्जा दे रखा है......?
जहां वे रहकर अपनी मर्यादा और लाज बचा के रह सकेंगे...... क्योंकि उन्हें कोई करोड़ों अरबों रुपए देकर खरीद सकता है, वह गुलाम हो सकते हैं और अपनी गुलामी के मद्देनजर देश का लोकतंत्र इन्हें आजादी की गारंटी देता है.... "
"हमें चाहिए आजादी...." कुछ इस अंदाज में मध्य प्रदेश के विधानसभा में 228 विधायक "टुकड़े टुकड़े में" कोई बेंगलुरु से कोई जयपुर से और कोई गुरुग्राम से आजादी के नारे लगा रहा है....... सबके अपने-अपने शाहिनबाग बन गए हैं..... क्योंकि इन विधायकों को आजाद कर देने का मतलब लोकतंत्र का आजाद हो जाना है..... खुद की कीमत खुद तय करने की घोषणा भी करनी है....... इसलिए यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए राजनीत की भाषा में "हॉर्स-ट्रेडिंग" यानी "घोड़ों का व्यापार" के यह सिर्फ "घोड़े" हैं ...और इनका व्यापार राजनीतिक माफिया कर रहा है... "घोड़ों" को आखिर लोकतंत्र का वोटर चिंता ही क्यों हो....? अगर करोड़ों अरबों रुपए खर्च करके जनता जिन्हें चुनती है वह घोड़े बन जाते हैं। तो इतना फिजूलखर्ची की क्या जरूरत है...।
यह एक चिंता का विषय भी है तो क्या यहां यह बात साबित नहीं होती
"कि जब झूठ बोलने वाला यह जाने कि झूठ बोल रहा है.... और सुनने वाला भी है जाने कि वह झूठ ही सुन रहा है..... तो उसे एक सच के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है........"
हॉर्स ट्रेडिंग की राजनीतिक माफिया गिरी को हम सब ने स्वीकार कर लिया है ......बस इस पर कानून बनना बाकी है.... और इलेक्शन कमिशन इसके लिए बजट भी पारित कर दे कि हॉर्स ट्रेडिंग एक प्रक्रिया है.... लोकतंत्र को बचाए रखने की...?, अन्यथा क्या कारण है कि ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार, ना ही न्यायपालिका इस पर संज्ञान लेकर विधायकों के अपहरण और उनकी स्वतंत्रता के लिए कोई आदेश पारित क्यों नहीं करती.. कि यदि मध्यप्रदेश में मुट्ठी भर 228 व्यक्ति अपने जीवन की स्वाभिमान की स्वतंत्रता की या कहना चाहिए अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा नहीं पा रहे हैं तो 6 करोड़ की जनता के साथ आप क्या कर रहे हैं.... क्या उन्हें मूर्ख समझ कर सिर्फ एक वोटर क पद देकर मूर्ख नहीं बना रहे हैं .....
"दिन के होली, रात दिवाली..; रोज मनाती मधुशाला..." के अंदाज पर मतदाता क्या शराब के नशे में इस कदर धुत है कि उसे दिख नहीं रहा कि लोकतंत्र, "घोड़ों का व्यापार" बन गया है और और मतदाता जिन्हें चुनता है वे "विधायक कम घोड़े ज्यादा" बन जाते हैं।
"घोड़ों के व्यापार" के लिए क्या यही लोकतंत्र हमारी कल्पना का हिस्सा था.. यह बात अब एक सच्चाई होती जा रही है..। हां यही कड़वा सच है, की संजय पाठक को अपने और अपने परिवार की हत्या की भय सता रहा था... क्योंकि वह विधायक था और शतरंज की बिसात में मात्र एक प्यादा..... और प्यादा तो सिर्फ बलिदान के लिए होता है....
या तो निष्ठा से.... या जबरजस्ती...।
तो समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने कहा था राजनीति की परिभाषा याने लोगों की सेवा है जो"अब लोगों की सेवा" नहीं "घोड़ों की दुकानदारी" है जिसे आधुनिक सभ्य समाज"हॉर्स ट्रेडिंग" कहते हैं...।
आरोप-प्रत्यारोप की भाषा में व पतन की राजनीति में यह स्वीकार कर लेना कि "टुकड़े-टुकड़े गैंग" में बटे विधायकों की सुरक्षा उनका "माफिया-चीफ" कर रहा है लोकतंत्र का खुला अपमान है... जहां हमारा नेतृत्व गुलामों की तरह, घोड़ों की तरह दिखने को मजबूर है...।
क्या इसी लोकतंत्र की कल्पना की थी हमारे नेताओं ने...? क्या लाखों लोगों का बलिदान इसी लोकतंत्र के लिए हुआ था....? यह एक वैचारिक सतत स्वतंत्रता का अभिमत है.. आप माने या ना माने .......शुभम मंगलम ।
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