सोई संपदा विभीषनहि,
सकुचि दीन्हीं रघुनाथ....
( त्रिलोकीनाथ )
मैं एक समाजवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि का हूं ।और समाजवादी प्रणेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का कहना था "जिंदा को में 5 साल इंतजार नहीं करती....."
सकुचि दीन्हीं रघुनाथ....
( त्रिलोकीनाथ )
मैं एक समाजवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि का हूं ।और समाजवादी प्रणेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का कहना था "जिंदा को में 5 साल इंतजार नहीं करती....."
तो 21वीं सदी के राजनीतिज्ञों ने इसे माना , लेकिन अपने अंदाज में...
जैसे नरेंद्र मोदी रहते तो हमेशा प्लेन पर हैं... हेलीकॉप्टर से उतरते हैं... 15 लाख का सूट पहनकर और कहते हैं...
बड़ी विनम्रता से, चर्चित सफल खलनायक अमरीश पुरी की तरह,.." मैं तो एक फकीर हूं...."
तो इसी अंदाज में समाजवाद में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। इसे 21वीं सदी का समाजवाद मानना चाहिए। मूल समाजवाद को तो समाजवादियों ने अलविदा कह दिया है.... अपनी अपनी समाजवाद की परिभाषा भी कर दी है... कुछ ने परिवारवाद में समाजवाद देखा...., तो कुछ ने भ्रष्टाचार बाद में समाजवाद ,तो कुछ लोगों ने सांप्रदायिकता में समाजवाद देखा और अपने अपने समाजवाद को अपने अपने तरीके से चला रहे हैं ....
महात्मा गांधी का गांधी दर्शन अब पवित्र भी हो गया है... और परिवर्तित भी हो गया है अब बात तो गांधी की जाती है किंतु लाखों का सूट पहनकर, झाड़ू पकड़कर फोटो खींचने तक या फिर गंगा की सौगंध खाकर उसके तट पर कुछ दलितों का पैर पखारने और उसकी ब्रांडिंग करने तक मात्र विचारों का परिवर्तन हुआ है...
बहराल भलाई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कहते रहें कि "उन्होंने अपनी विचारधारा अपने जेब में रखकर वहां चले गए हैं "
तो आइए हम चलते हैं एक शादी में जहां अपने जफर इस्लाम तब कांग्रेस के युवा चेहरे में एक की ज्योति जगाने का काम कर रहे थे... तो ज्योतिरादित्य जब जाग रहे थे तो एक काल्पनिक संवाद का निर्माण हुआ क्योंकि वे "हिंदुत्व ब्रांड" में प्रवेश कर रहे थे, अपने दादी राजमाता सिंधिया के राजनैतिक महल में... तो संवाद तो रामायण की भाषा में ही होना था....
जफर इस्लाम ने कहा
ज्योतिरादित्य की आत्मा जागने लगी व स्वाभिमान की सीढ़ी बनाकर संभावना केे लक्ष्य को देखने लगे।
किंतु इस बीच मध्य प्रदेश की भाजपा की आंतरिक राजनीति में जैसे भूचाल
आ गया। सत्ता का हैट्रिक लगाने वाले शिवराज के अंतिम शब्द जैसे कोहराम मचाने लगे... "माफ करो महाराज... माफ करो महाराज" इतनी माफिया शिवराज ने 15 साल में भी नहीं मांगी।
महाराज, क्योंकि वे महाराज थे, श्री मंत थे... बहरहाल जफर इस्लाम ने अपने बात रखी... उनकी बात को सुनकर के ज्योतिरादित्य की आत्मा की आवाज बोलने लगी....
पूरी विनम्रता के साथ उन्होंने कहा और इस प्रकार यह तय हो गया की स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए निश्चय निसिचर कुल का महान त्याग करना होगा....
और उसकी तैयारियां होने लगी.., स्वागत के लिए वृंदगान तैयार होने लगे... सेवक गण भारत की आकाश मंडल में अलग-अलग जगह उड़ने लगे...
कई लोग तीर्थयात्रा कराएं, कहते हैं आकाश मंडल की यात्रा में बाजार कि दर 30 से 35 रुपया करोड़ प्रति यात्री थी। चार्टर्ड प्लेन का खर्चा अलग से। उधर उनके निशिचर कुल में कुछ लोग युद्ध की तैयारी में 1857 की गद्दारों की वीरगाथा का उल्लेख करने लगे.... तो कुछ कर्नाटक जाकर के सैनिकों से विवाद भी किए... बहरहाल इस बीच में पूरी शांति और व्यवस्था के साथ पलायन का सिलसिला चालू हुआ...
और अंत में अपने "हाथ के पंजे" से ज्योतिरादित्य "कमल" पकड़ लिया। क्योंकि कमलनाथ...., कमल को छोड़ नहीं रहे थे। इसलिए जिस प्रकार हाथी को जल में रहने वाला मगर लील रहा था और हाथी के प्रार्थना पर स्वयं भगवान गरुड़ पर चढ़कर याने जफर इस्लाम में चढ़कर हाथी की आकर रक्षा किए उन्हें राजयोगी का सन्यास दीक्षा दिया...
कुछ इसी अंदाज में ज्योतिरादित्य ने भाजपा में प्रवेश लिया और आकाश मार्ग से चलकर "हैट्रिक लगाने वाले" और "माफ करो महाराज" की बंदना सुनते-सुनते उन्हें माफ करने के लिए शिवराज के धाम पर आ गए। स्वभाविक है वंदन-अभिनंदन महाराज का हक है ..... साथ में इस्लाम के जफर भी रहे..., तोमर जी ने शिवराज के कहर से बचाने के लिए छत्र भी धारण कर रखा था.. दीनदयाल धाम में अंततः अभिनंदन भाषण की बंदना चल रही थी।
बारी थी शिवराज की, उन्होंने अपनी हर लोक शैली के साथ लोक गायन के साथ पूर्ण कला दिखाते हुए कमलनाथ को चुनौती देते हुए महाराज का अभिनंदन किया और कहा, संपूर्ण समर्पण के साथ "लंका में आग लगाने के लिए विभीषण बहुत जरूरी है अब सिंधिया जी आ गए हैं....."
किंतु आगे नहीं कहा कि माफ करो महाराज किंतु भावेश में वे भूल गए थे कि जब विभीषण आता है राम के पास तो व्यक्ति राम हो जाता है। विभीषण को तो पहचान लिए लेकिन अपने राम को भूल गए ।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पार्टी भारतीय जनता पार्टी यह भावनात्मक द्रवित कर देने वाला दृष्टांत था। क्योंकि जैसे ही विभीषण राम के पास गए तो राम भावुक हो गए थे, वे दयालु थे, रामायण में उनकी भावनाओं का इजहार शिवराज की नजर में शायद स्पष्ट नहीं था या फिर यह उनका समर्पण था...
आतिथ्य प्रेम में जो उन्होंने विभीषण को स्वीकारा और भोपाल की तालाब से पानी लेकर कहा जिसका वर्णन रामायण काल में कुछ इस प्रकार कहा गया हालांकि ज्योतिरादित्य ने भी इसका प्रत्युत्तर पूरी विनम्रता के साथ कहा
की एक और एक दो नहीं होंगे बल्कि 11 होंगे इस तरह उन्होंने स्वागत अभिनंदन खंड का वर्णन यह कहकर किया।
किन्तु बाद में शिवराज को समझ आया होगा कि कुछ ज्यादा हो गया बहराल यह 21वीं सदी की रामायण का कालखंड है परिवर्तित रामायण के दृष्टांत हैं...
इसलिए सब सही है "माफ करो महाराज" भी और "शिवराज" भी
महात्मा गांधी का गांधी दर्शन अब पवित्र भी हो गया है... और परिवर्तित भी हो गया है अब बात तो गांधी की जाती है किंतु लाखों का सूट पहनकर, झाड़ू पकड़कर फोटो खींचने तक या फिर गंगा की सौगंध खाकर उसके तट पर कुछ दलितों का पैर पखारने और उसकी ब्रांडिंग करने तक मात्र विचारों का परिवर्तन हुआ है...
बहराल भलाई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कहते रहें कि "उन्होंने अपनी विचारधारा अपने जेब में रखकर वहां चले गए हैं "
तो आइए हम चलते हैं एक शादी में जहां अपने जफर इस्लाम तब कांग्रेस के युवा चेहरे में एक की ज्योति जगाने का काम कर रहे थे... तो ज्योतिरादित्य जब जाग रहे थे तो एक काल्पनिक संवाद का निर्माण हुआ क्योंकि वे "हिंदुत्व ब्रांड" में प्रवेश कर रहे थे, अपने दादी राजमाता सिंधिया के राजनैतिक महल में... तो संवाद तो रामायण की भाषा में ही होना था....
जफर इस्लाम ने कहा
ज्योतिरादित्य की आत्मा जागने लगी व स्वाभिमान की सीढ़ी बनाकर संभावना केे लक्ष्य को देखने लगे।
किंतु इस बीच मध्य प्रदेश की भाजपा की आंतरिक राजनीति में जैसे भूचाल
आ गया। सत्ता का हैट्रिक लगाने वाले शिवराज के अंतिम शब्द जैसे कोहराम मचाने लगे... "माफ करो महाराज... माफ करो महाराज" इतनी माफिया शिवराज ने 15 साल में भी नहीं मांगी।
महाराज, क्योंकि वे महाराज थे, श्री मंत थे... बहरहाल जफर इस्लाम ने अपने बात रखी... उनकी बात को सुनकर के ज्योतिरादित्य की आत्मा की आवाज बोलने लगी....
पूरी विनम्रता के साथ उन्होंने कहा और इस प्रकार यह तय हो गया की स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए निश्चय निसिचर कुल का महान त्याग करना होगा....
और उसकी तैयारियां होने लगी.., स्वागत के लिए वृंदगान तैयार होने लगे... सेवक गण भारत की आकाश मंडल में अलग-अलग जगह उड़ने लगे...
कई लोग तीर्थयात्रा कराएं, कहते हैं आकाश मंडल की यात्रा में बाजार कि दर 30 से 35 रुपया करोड़ प्रति यात्री थी। चार्टर्ड प्लेन का खर्चा अलग से। उधर उनके निशिचर कुल में कुछ लोग युद्ध की तैयारी में 1857 की गद्दारों की वीरगाथा का उल्लेख करने लगे.... तो कुछ कर्नाटक जाकर के सैनिकों से विवाद भी किए... बहरहाल इस बीच में पूरी शांति और व्यवस्था के साथ पलायन का सिलसिला चालू हुआ...
और अंत में अपने "हाथ के पंजे" से ज्योतिरादित्य "कमल" पकड़ लिया। क्योंकि कमलनाथ...., कमल को छोड़ नहीं रहे थे। इसलिए जिस प्रकार हाथी को जल में रहने वाला मगर लील रहा था और हाथी के प्रार्थना पर स्वयं भगवान गरुड़ पर चढ़कर याने जफर इस्लाम में चढ़कर हाथी की आकर रक्षा किए उन्हें राजयोगी का सन्यास दीक्षा दिया...
कुछ इसी अंदाज में ज्योतिरादित्य ने भाजपा में प्रवेश लिया और आकाश मार्ग से चलकर "हैट्रिक लगाने वाले" और "माफ करो महाराज" की बंदना सुनते-सुनते उन्हें माफ करने के लिए शिवराज के धाम पर आ गए। स्वभाविक है वंदन-अभिनंदन महाराज का हक है ..... साथ में इस्लाम के जफर भी रहे..., तोमर जी ने शिवराज के कहर से बचाने के लिए छत्र भी धारण कर रखा था.. दीनदयाल धाम में अंततः अभिनंदन भाषण की बंदना चल रही थी।
बारी थी शिवराज की, उन्होंने अपनी हर लोक शैली के साथ लोक गायन के साथ पूर्ण कला दिखाते हुए कमलनाथ को चुनौती देते हुए महाराज का अभिनंदन किया और कहा, संपूर्ण समर्पण के साथ "लंका में आग लगाने के लिए विभीषण बहुत जरूरी है अब सिंधिया जी आ गए हैं....."
किंतु आगे नहीं कहा कि माफ करो महाराज किंतु भावेश में वे भूल गए थे कि जब विभीषण आता है राम के पास तो व्यक्ति राम हो जाता है। विभीषण को तो पहचान लिए लेकिन अपने राम को भूल गए ।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पार्टी भारतीय जनता पार्टी यह भावनात्मक द्रवित कर देने वाला दृष्टांत था। क्योंकि जैसे ही विभीषण राम के पास गए तो राम भावुक हो गए थे, वे दयालु थे, रामायण में उनकी भावनाओं का इजहार शिवराज की नजर में शायद स्पष्ट नहीं था या फिर यह उनका समर्पण था...
आतिथ्य प्रेम में जो उन्होंने विभीषण को स्वीकारा और भोपाल की तालाब से पानी लेकर कहा जिसका वर्णन रामायण काल में कुछ इस प्रकार कहा गया हालांकि ज्योतिरादित्य ने भी इसका प्रत्युत्तर पूरी विनम्रता के साथ कहा
की एक और एक दो नहीं होंगे बल्कि 11 होंगे इस तरह उन्होंने स्वागत अभिनंदन खंड का वर्णन यह कहकर किया।
किन्तु बाद में शिवराज को समझ आया होगा कि कुछ ज्यादा हो गया बहराल यह 21वीं सदी की रामायण का कालखंड है परिवर्तित रामायण के दृष्टांत हैं...
इसलिए सब सही है "माफ करो महाराज" भी और "शिवराज" भी
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