मंगलवार, 24 मार्च 2020

अथ सब्जीमंडी कथा..... क्या कोरोना को लेकर हम तैयार हैं...?

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क्या कोरोना को लेकर हम तैयार हैं...?

या फिर भगवान भरोसे है 

आदिवासी क्षेत्र शहडोल
(त्रिलोकीनाथ)
 आज जनता कर्फ्यू का तीसरा दिन है, जिस प्रकार से खबरें आ रही हैं और कम से कम कितने दिन हमें सतर्कता बरतना पड़ेगा जनता कर्फ्यू को बरकरार रखने के लिए....?
 उस हिसाब से 15 दिन कहीं नहीं गए हैं। कोरोना वायरस से संपर्क तोड़ने का फिलहाल इस एकमात्र इलाज के अलावा कोई इलाज नहीं दिखता है। तो संपर्क तोड़ने की शुरुआत बहुत शानदार हुई किंतु शाम के 5:00 बजे  शंख,घंटा ,घड़ियाल और ताली या थाली  ने उसे समझने में कमजोरी कर दी। कई जगह तो उत्सव मनाते देखा गया कि जैसे कोरोना खत्म हो गया हो।
 यह सूचनाओं की क्रांति के युग में अध कचरी खबरों का परिणाम था या खबर की सही तरीके से प्रधानमंत्री की बातों को नहीं समझा गया। बहराल धीरे से यह बता दिया गया की जनता कर्फ्यू चलेगा। फिलहाल शहडोल प्रशासन ने 26 तारीख तक सुनिश्चित किया है। पूरी धैर्य के साथ आंख मूंदकर 15 दिन सोच कर चलें.... ।
प्रशासन भी कहे तो भी ना माने और 15 दिन स्व-अनुशासन से जैसे कि महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई के दौरान स्व अनुशासन का पालन करने की सलाह दी थी, अब पुनः वह वक्त आया है एक अज्ञात हमलावर से लड़ने का और यह लड़ाई हम सब की है।
 किंतु आज तीसरे दिन सुबह जब मैं बाहर गया तो सब्जी मंडी मैं जो हालात देखें उसको लेकर मन बेचैन हो गया, छोटे कारोबारियों का आर्थिक हालात की गड़बड़ी और व्यापार के मर जाने का खतरा तो है ही किंतु उसे कैसे स्व अनुशासन के तरीके से करना है यह सुनिश्चित नहीं किया गया।

 कोरोना वायरस के दौरान ही मध्य प्रदेश की सत्ता परिवर्तन और नए मुख्यमंत्री शिवराज का शपथ हुआ उन्होंने भी अपने शपथ समारोह के जरिए कोई ऐसा प्रचार नहीं किया कि कोरोना मामले मैं हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए। दिखाने वाला व्यवहार और सिखाने वाला व्यवहार, सत्ता परिवर्तन का आकर्षण हमें नहीं बता पाया। एक सही समय का ,सही संदेश नहीं मिल पाया .......
यह ठीक है कि मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता कोरोना है किंतु देखा जाए तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दिया, क्योंकि कांग्रेस गवर्नमेंट गिराना ए प्राथमिकता थी। अब जबकि पूर्व सीजेआई राज्यसभा सदस्य बन गए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि केंद्र की सत्ता न्यायपालिका को अपने इशारे पर नहीं चलाती है... तो मध्य प्रदेश के मामले में 20 तारीख को बहुमत सिद्ध करने का आदेश कुछ इसी प्रकार का था। कोरोना की समस्या इसमें कोई प्राथमिकता नहीं थी।
 इतना तो तय है ऐसे में जनमानस के बीच में खासतौर से शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्रों प्रशासनिक पकड़ से बाहर, माफियाओं की पकड़ के अंडर में रहने वाले क्षेत्रों पर दूरगामी परिणाम क्या होंगे .... यह तो भगवान भरोसे है।
 किंतु शहडोल संभागीय मुख्यालय के सब्जी मंडी में आज सुबह जिस प्रकार से सब्जी बेचने के मामले में व्यावहारिक कोरोना संबंधी सावधानियां देखने को नहीं मिली वह नागरिकों के दुर्भाग्य के अलावा और कुछ नहीं है। यह सौभाग्य अलग है कि कोरोना वायरस का हमला शहडोल में नहीं हुआ है।
 न सिर्फ में शहडोल में सब्जी मंडी में बल्कि भोपाल के विधायिका में भी; जो सब्जी मंडी की तरह ही है व्यवहार करती दिखी ...।कोई स्व-अनुशासन महात्मा गांधी का इन्हें नियंत्रित करते नहीं दिखा.....
 सब्जी मंडी की गंदगी 2 दिन मार्केट बंद रहने के बाद भी सुबह वैसे ही दिखा, जैसा हमेशा रहा था। कुछ ब्लीचिंग वगैरह जरूर देखें थोड़ा सफाई भी । किंतु ज्यादा भीड़भाड़ वाले इलाके में प्रति घंटा निगरानी वाली सफाई बिल्कुल नहीं की गई , ना ही सब्जी विक्रेताओं को संदेश दिया गया कि वे किस प्रकार से आम आदमी आदमियों से व्यवहार करते हुए सब्जी का विक्रय कर सकते हैं ।नगर पालिका शहडोल हो या जिला का प्रशासन अथवा संभाग का प्रशासन, सब्जी मंडी शहडोल के व्यवहार को मॉडल के तौर पर संदेश दे सकती है.. कि सभी लोग एक जगह व्यवसाय ना करके शहडोल, पुरानी शहडोल ,सुहागपुर गौरतारा या पांडव नगर अन्य अन्य क्षेत्रों में कई केंद्र बनाकर सब्जियों को विक्रीकर वितरण की व्यवस्था की जा सकती थी .....साथ ही उन्हें कोरोना की समस्या से लड़ने का  संदेश देने का भी केंद्र बनाया जा सकता था ....।इससे सब्जी मंडी हो अथवा रेलवे स्टेशन यहां की भीड़ को भी नियंत्रित किया जा सकता था। और हर छोटी-छोटी गुमटीओ या दुकानों को  10 मीटर में अथवा पांच-पांच मीटर में अंतर देकर व्यावहारिक रूप से जीवन व्यवहार का संदेश जा सकता था, जो नहीं हुआ।
 यह हमारे पालिका प्रशासन अथवा प्रशासन या पुलिस प्रशासन सब की असफलता है ऐसे अवसर अक्सर हमारी चुनौतियों से नवाचार का अवसर भी देते हैं। क्या हम उन अवसरों को या हर समस्या को एक अवसर के रूप में बदल नहीं सकते......?
 क्या हम चूक गए हैं.....?
अथवा अन्य विकल्प पर हम क्या कर सकते हैं...... इस पर जरूर काम होना चाहिए ।फिलहाल जो होता नहीं दिखा।
 हो सकता है मेरी आलोचना अतिरेक हो किंतु भयभीत जीवन शैली में मैं यही समझ पाया कि हम संघर्ष करने में आज भी विशेष पिछड़ी जनजाति के शहरी आदिवासी हैं..., क्या हम इसमें सुधार ला सकते हैं...?
तो कैसे ........?
जरूर करना चाहिए....।

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