शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

संविधान में लुटता शहडोल संभाग( त्रिलोकीनाथ)

"माफिया -उन्मूलन -अभियान" 
की है जरूरत


संविधान की पांचवी अनुसूची
 
के जंजीरों  में सिसकता
आदिवासी संभाग शहडोल

--------------(त्रिलोकीनाथ)------------------
या तो शहडोल का पुलिस-प्रशासन अक्षम है....? या फिर, देशभक्ति जनसेवा का नारा जोरदार बुलंद करते हुए वह सक्षम है....। यही उपाधि प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी हैं...., क्योंकि शहडोल खनिज क्षेत्र में "टुकड़े-टुकड़े माफिया गैंग" के साथ अघोषित गठबंधन कर रखा है...? कि, आप जैसा चाहे इस जिलों को लूटते रहे। बस औपचारिकताओं का समय-सीमा के साथ पालन करें ।आपको ना तो इस जिले  के लोगों से डरने की जरूरत है, और ना ही हां कि राजनीतिज्ञों से, क्योंकि राजनीतिज्ञ, राजनीति कम माफियाओं की दलाली पर उनके द्वार में लाइन लगाकर खड़े होते दिखते हैं.... कि कब उनकी बारी आवे और वे अघोषित भ्रष्ट व्यवस्था के हिस्सा बनकर गौरवान्वित हो सके....।

 कुछ यही संभाग मुख्यालय के हृदय स्थल में में बहने वाली सबसे बड़ी सोननदी के तट पर कटनी का कोई माफिया सिद्ध कर रहा है। और यह बात इसलिए निकल कर नहीं आ रही है कि वहां की जनता, ग्राम पंचायत, ग्राम सचिव अथवा पुलिस या प्रशासन कहना चाहती है.... वह तो गुलाम है, वहां पर माफिया का...?

 समस्या यह है कि सड़क निर्माण करने वाली एक कंपनी जो मध्यप्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण से अनुबंधित है, श्री राधेकृष्ण एंटरप्राइजेज ग्वालियर ।उसने शहडोल कलेक्टर को कथित तौर पर 29 नवंबर 2016 के एक सड़क निर्माण पैकेज जिसका निर्माण  सिलपरी इसे सोनटोला तक करने के लिए हुआ है। वह इसलिए नहीं कर पा रहा है क्योंकि वह निर्माण करता है और रात को माफिया रेत निकालता है रोज कोई 100-200 गाड़ियां निकलने से उसका सड़क खराब हो जाता है। इसलिए वह सिलपरी से सोनटोला तक सड़क निर्माण नहीं कर पा रहा है। जो निश्चित तौर पर किसी समय सीमा में उसे ठीक करके प्रशासन को सौंपना है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसका रोजगार यानी सड़क कंस्ट्रक्शन का काम का बिल नहीं निकलेगा।

 यह अलग बात है कि क्या वह अनुबंध के आधार पर काम कर रहा है अथवा नहीं...? क्योंकि अक्सर शहडोल में सड़क निर्माण पर भारी भ्रष्टाचार हुआ है ।खासतौर से रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग के नाम पर जो खुली डकैती सड़क कंस्ट्रक्शन वाले ने किया उसके रिजल्ट चीख चीख कर वर्तमान में शहडोल की प्रशासनिक व्यवस्था कब मुंह चिढ़ा रहे हैं....। कि हम कोई काम भी नहीं करेंगे और पैसा भी लेंगे।
 शायद प्रदेश का पहला बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर (यानी वी ओ टी) के तहत बड़ा भ्रष्टाचार का टेस्ट-ट्यूब, रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग बना था।
 25 साल के लिए हुए अनुबंध में 15 साल टोल टैक्स वसूलना था, 10 साल मरम्मत करना था। हमारे  लोकतांत्रिक रहनुमाओं के संरक्षण में ठेकेदार टोल टैक्स वसूल के गायब हो गया और 10 साल के लिए सड़क छोड़ दिया प्रशासन के भरोसे...., कि लोग मरे, प्रशासन उसकी व्यवस्था करें..। बहरहाल ये एक बड़ी लंबी कहानी है चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के ही हाथ इस सड़क मार्ग की हत्या के खून से रंगे हैं। इसलिए दोनों शांति व्यवस्था बनाए रखे हुए हैं।


 किंतु सोनटोला से सिलपरी सड़क मार्ग तो "भ्रूणहत्या" होने के हालात में है ।इसलिए गर्भधारण किए हुए किसी अपराधिक महिला की तरह ठेकेदार राधे कृष्ण एंटरप्राइजेज प्रसवपीड़ा को झेल रहा है। क्योंकि उसके गर्भ में रेत माफिया बलात्कार कर रहा है, और वह भी खुल्लम-खुल्ला सामूहिक बलात्कार ।
उसकी शिकायत है की पूरी प्रशासनिक और पुलिस की व्यवस्था,राजनीतिक व्यवस्था... इन बलात्कारियों को संरक्षण दे रही है...? कुछ ऐसा ही समझना चाहिए, आम भाषा में।
 किंतु जब पुलिस और प्रशासन के उच्चाधिकारी इसे बोलते हैं, तो वह कहते हैं शांति-व्यवस्था कायम है....?
 तो अलग-अलग बोली के लोग, अलग-अलग भाषा के लोग, किसी घुसपैठिए की तरह आदिवासी जिले की सोननदी को लूट रहे हैं..., अथवा लूटवा रहे हैं....? शायद उसी का वे टेंडर लेकर यहां आए हैं?
 इसीलिए प्रशासन अथवा पुलिस का नीचे वाला हाथ बांधे गुलामों की तरह इस खुली खनिज-डकैती को होता देखता है...। भलाई प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ किसी ई खनिज माफिया के खिलाफ सख्ती से कार्यवाही करने का आदेश क्यों न दे शहडोल पांचवी अनुसूची क्षेत्र में यह लागू होता नहीं दिखता।
 क्योंकि खनिज विभाग में एक अबला-महिला डकैतों की चौकीदार है....? शायद वह भी अपना घर परिवार पालने की जुगत में ही चौकीदारी करती है...। यही शहडोल का प्रशासन है ।और कम से कम मध्यप्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण के सिलपरी से सोनटोला सड़क के निर्माण कि विकास के विकास पुरुष ने यह सिद्ध करने का काम किया है। अन्यथा यह सब खुला माफिया गिरी का खेल सामने नहीं आ पाता।
 दरअसल सोननदी के रेत के खनिज व्यापार में माफियाओं के "टुकड़े-टुकड़े गैंग"  खनिज माफिया हैं और यह अनूपपुर, शहडोल और उमरिया जिले के सभी पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के कल्याण कारक देवताओं के रूप पर हैं। सभी उनकी आराधना करते हैं। कौन कहता है कि हमारी नदियां के आसपास माफियाओं के देवता नहीं बसते। जहां भी संभव है इन देवताओं के अपने अज्ञात स्थल बन गए हैं,
पहले नदी के आसपास मंदिर और आश्रम होते थे बस रूप परिवर्तन हो गया है.... इन्हीं माफिया देवताओं से पुलिस प्रशासन और राजनीतिज्ञो का पेट पलता है... उनकी कृपा से व्यवस्थाएं चलती हैं... फिलहाल तो यही होता दिख रहा है।
 अब सवाल यह है कि संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल संभाग की सुरक्षा के लिए क्या केंद्रीय पुलिस फोर्स अथवा सेना जब व्यवस्था संभाल लेगी... तभी इन माफियाओं से निजात मिलेगी...? यह चुनौती शहडोल के संभाग आयुक्त और पुलिस महा निरीक्षक के लिए लगातार बनी हुई है.... किंतु सवाल यह है कि क्या यह अधिकारी इसे चुनौती मानते भी हैं...? अथवा वह भी "शांति-व्यवस्था" कायम होने का दम भरते हैं...?
 क्योंकि नौकरी है उन्हें भी पेट पालने की मजबूरी है... फिर संविधान की चौकीदारी कौन करेगा...?
 पांचवी अनुसूची में शामिल होने की सुरक्षा का ढोंग और पाखंड किस हेतु बना है...  यह "यक्ष-प्रश्न" शहडोल की संपूर्ण व्यवस्था के लिए तब तक बना रहेगा जब तक की शहडोल की आदिवासी नेतृत्व जिसे संविधान ने अधिकार दिया है वह गांधीगिरी करते हुए कहीं एकमत होकर आमरण अनशन जैसा हथियार नहीं उठा लेते.....? क्या यह जीवटता और जमीन हमारे राजनीतिज्ञों में बचा हुआ है...?
 अन्यथा वह भी प्रमाणित होगा की वह  खनिज माफिया, बल्कि वन माफिया, शिक्षा माफिया और खुद के राजनीतिक माफिया की गुलामी से मुक्त नहीं .. । और हां हाल में 6 बच्चों की मौत के बाद दिखा चिकित्सा माफिया

 दाल में नमक जरूरी है मजबूरी भी हो सकती है किंतु दाल नमक से भर जाता है तो मुंह को खराब कर देता है हमारे राजनीतिक विधायक और सांसद कैसी दाल पसंद करते हैं देखना होगा..?

देखना होगा, आने वाला 26 जनवरी याने गणतंत्र दिवस हमारे लिए उत्साह का कारण होता है या फिर आदिवासी क्षेत्र के लिए बरसी का...., हम मातम मनाए या फिर खुशी..... कि शहडोल क्षेत्र पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के हाथ में डाका डलवाने के लिए माफियाओं के सुरक्षा में छोड़ दिया गया है....?
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

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