गुरुवार, 16 जनवरी 2020

मामला 6 मासूमों की मौत का, निरर्थक हुए मंत्री की बात, बीत गए 3 दिन (त्रिलोकीनाथ)


-मामला जिला चिकित्सालय 6 मौतों का....


-बीत रहा है तीसरा दिन कोई परिवर्तन नहीं
-3 तीनमंत्रियों ने कियाथा जिला चिकित्सालय का भ्रमण 
-कहा.., 3 दिन के अंदर सुधरे व्यवस्था..
प्रभावितों को नहीं मिला न्याय।
औसत मृत्यु दर एक, 5 अधिक मरे 
तो खड़ा हुआ हंगामा....
------------------(त्रिलोकीनाथ)------------------------------------------------------------------
शहडोल– टुकड़े टुकड़े गैंग में फैले खनिज माफिया के जिला शहडोल अचानक जिला अस्पताल 13-14 जनवरी को मध्य रात्रि में में 6 नवजात बच्चों की मौत हो गई । इन मौतों के बाद राजनीति चालू हो गई। किंतु प्रदेश स्तर पर गर्म हो चुकी गंदी राजनीति में उन परिवारों को न्याय मिला क्या...? अब तक तो नहीं दिखता है शायद किसी भी राजनीतिक दल के नुमाइंदे इन परिवारों की चौखट तक भी नहीं पहुंचे जिन परिवारों के आंगन सूने हो गए । मध्य प्रदेश के शहडोल स्थित शासकीयजिला अस्पताल में पिछले 12 घंटों के दौरान छह आदिवासी नवजात बच्चों की मौत हो गई. प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने इस मामले में जांच के आदेश दिये हैं. जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश पांडे ने मंगलवार को बताया कि खरेला गांव की निवासी चेत कुमारी पाव और भटगंवा गांव की निवासी फूलमती के नवजात बच्चों और श्याम नारायण कोल, सूरज बैगा, अंजलि बैगा, और सुभाष बैगा को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सभी छह बच्चों की 13 और 14 जनवरी की दरमियानी रात मौत हो गई.
सवाल वह खड़ा हुआ है कि न्याय मिला क्या....?
यह हुई व्यक्तिगत बात अब करते हैं जिला अस्पताल के बदनामी की और उसे अपनी असफलता के ठीकरा फोड़ने का अड्डा बनाने की साजिश की जो आदिवासी जिले संभाग मुख्यालय में एक स्थाई जरिया बन के रह गया है। बहरहाल कांग्रेस की संवेदनशील सरकार का यह एक नजरिया ही है कि उन्होंने आनन-फानन में स्वास्थ्य मंत्री प्रभारी मंत्री को भेजकर मामले के तह पर जाने का प्रयास किया क्योंकि मामला मीडिया में उछल चुका था अभी हाल में ही राजस्थान में कोटा शहर में एकमुश्त कई बच्चों की मौतों के बाद फिर कई मौतों के बातें राष्ट्रीय स्तर पर छाई रही और शायद इसीलिए बच्चों के मौत का ब्रांड का बाजार चर्चा में रहा इसलिए थोड़ा से भी हरकत ने शासन को हिला दिया अन्यथा जैसा कि जिला अस्पताल ने बताया की औसतन एक मौत रोज होती है जिला अस्पताल में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने का मतलब जिला अस्पताल का नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे केबीटी जो भाजपा के नेता रहे उनके नाम से कर देने का था क्योंकि राजनीति का बाजार जिला अस्पताल में वोट बैंक की बढ़ोतरी कुछ इस नजर से देखता था बहरहाल जिला अस्पताल केबीटी से जुड़ गया यह अलग बात है क्यों उनका कोई योगदान नहीं था जिला चिकित्सालय को आगे बढ़ाने में सिर्फ वह भाजपा के नेता थे 15 साल भाजपा सत्ता पड़ रही रोगी कल्याण समिति में इनके प्रतिनिधि भी रहे और शानदार जिला अस्पताल पर्यावरण से संरक्षित कंक्रीट का अस्पताल बनकर रह गया क्योंकि भवन निर्माण के भ्रष्टाचार ने अस्पताल परिसर की पूरी जमीन खाली मेडिकल वार्ड को उठाकर आम की पहुंच से दूर कर दिया गया सांस लेने के लिए शुद्ध हवा अब एक समस्या है।


पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल भी  जिला अस्पताल पर 

6 बच्चों की मौत की खबर ने सबसे पहले क्षेत्रीय भ्रमण पर आए पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल ने जिला अस्पताल पर नजर डाला और डालते ही जैसे निर्णय ले लिया जांच भी कर लिया और शायद संतुष्ट भी हो गए उनके संतोष में कोतमा के विधायक सुनील हां में हां कर। शायद सहमति दी...।
किंतु मामला गर्म होते ही सत्ता परिवर्तन के बाद जादू की छड़ी के जरिए स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट सहित प्रभारी मंत्री ओमकार सिंह मरकाम एकमुश्त 6 बच्चों के बलिदान के बाद 3 दिन के अंदर जिला अस्पताल में क्रांतिकारी परिवर्तन का आदेश किस भरोसे कर गए, यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है.....?
तो चलिए लौटते हैं,व्यवस्था पर, जिला अस्पताल की यायावर-समस्या को देखने के बाद निश्चित तौर पर समस्याओं को समझने के बाद जब उन्होंने पत्रकारों से बातचीत की तो प्रदेश में 18% डॉक्टरों के कम होने की बात प्राथमिकता से बताएं।

-37 पद मेडिकल विशेषज्ञ में, 34 विशेषज्ञ नहीं है...
-शिशु विशेषज्ञ 7 में एक भी नहीं है... 
किंतु जब उनसे पूछा गया आदिवासी जिले के अस्पताल में 37 मेडिकल विशेषज्ञ के पद मैं सिर्फ तीन मेडिकल विशेषज्ञ पदस्थ हैं....? जो वास्तव में शासन की लापरवाही का परिणाम है, उन्होंने पूरी ताकत लगाकर कॉन्ग्रेस शासन की आदिवासी क्षेत्रों में चिकित्सकों की नियुक्ति की नीतिगत बातें बताना चालू कर दिया, कि किस प्रकार बोनस देकर चिकित्सकों को आदिवासी जिलों में कार्य करने का प्रेरित किया जा रहा है।
वे शासन स्तर पर शहडोल जिला चिकित्सालय में स्टाफ की कमी पर कोई बात ना बता सके.... कि भोपाल स्तर केकिस अधिकारियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाए.... जो वहां बैठकर व्यवस्थाओं को देख रहे हैं, कि आखिर आदिवासी क्षेत्र में जैसा भी है, जिला अस्पताल के मूलभूत ढांचे में मेडिकल विशेषज्ञ क्यों नहीं भरे गए......?
यही हालात शहडोल जिला चिकित्सालय के

 अन्य पदों पर भी है। जिसका एक नजरिया ऐसा भी है

याने उन्हें मरना ही था..... यह अलग बात है कि किन-किन स्थानों यह बच्चे किन परिस्थितियों में यहां मरने के लिए भेज दिए गए.....
क्या इस पर जांच का फोकस होगा....?
यह तो परिणाम बताएगा। बताएगा भी कि नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता..., सिर्फ शिशुओं की मौत के मामले मैं स्वच्छ पर्यावरण के दृष्टिकोण से खुली जमीन पर बनाए गए जिला अस्पताल की पूरी जमीन पर कंक्रीट का ढांचा खड़ा कर संबंधीतो ने अपनी जेबे तो जरूर गर्म कर ली ।
किंतु वेंटिलेटर के लिए पैसे नहीं है...?
यही हाल मरीजों के मूलभूत अधिकार बिस्तर, स्वच्छता व संसाधन की उपलब्धता चाहे एग्जास्ट फैन हो, जिससे बदबूदार मुक्त कमरे हो अथवा बैड के बगल में रखा हुआ टेबल हो, या फिर स्वच्छ आधुनिक शौचालय की बात हो..., उसके लिए पैसा किसी भी शासन मैं नहीं रहता...., ऐसा प्रतीत होता है।


रोगी कल्याण समिति का जो भी पैसा आता है वह समिति सदस्यों के लिए शायद मुफ्त खोरी का एक जरिया मात्र ही है। क्योंकि वह भी मरीजों के हित में मूलभूत सुविधा दे पाने पर या तो लाचार हैं, अथवा बुद्धिहीन या फिर पूर्णत: भ्रष्ट....? प्राथमिक संसाधन उपलब्धता से संबंधित सभी प्रश्न रोगी कल्याण समिति के सभी सदस्यों से क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए......?
अथवा उन्हें प्राथमिक दृष्टिकोण से क्यों निलंबित नहीं कर दिया जाना चाहिए....?
अगर प्रबंधन देख रहे सिविल सर्जन अस्पताल स्तर पर, और जिला स्तर पर सीएमएचओ को हटाया जा सकता है.... तो,
बेहतर तो यह होता कि गत 15 वर्षों में रोगी कल्याण समिति के सभी कार्य पर श्वेत-पत्र जारी हो। कम से कम आदिवासी जिला अस्पतालों में। नहीं तो, जहां मंत्री जी ने 3 दिन के अंदर जादू की छड़ी के जरिए केबीटी शहडोल हॉस्पिटल के मामले में परिवर्तन चाहा है, श्वेतपत्र जारी होने चाहिए.... ताकि पता चले के शानदार जिला अस्पताल को किस प्रकार से भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया गया.... और उसे इस बात के लिए छोड़ दिया गया ताकि लोग, मरीज भयभीत होकर मजबूरी के हालात में ही यहां पहुंचे अन्यथा निजी चिकित्सालय में जाकर लूटते रहे....?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माने तो, स्वास्थ्य में बीमा का धंधा के जरिए जिस कारोबार को प्रोत्साहित किया गया है.... जिसे निशुल्क होना चाहिए, उसके केंद्र में भी जिला अस्पताल का अनुमोदन और चिन्हित अस्पतालों में सुविधाओं के लिए प्रेषित किया जाना.....?, क्या छह बच्चों की मौत का कारण हो सकती है....?,
यह भी देखा जाना चाहिए।

थोड़ा सा मौत पर हुई राजनीति की बात पर ।
जैसी भी है सड़ी-गली ही व्यवस्था में जिला अस्पताल चल रहा था। इस बात को भाजपा की सरकार भलीभांति जानती है। क्योंकि वह शहडोल के क्योंकि वह शहडोल के क्योंकि वह शहडोल के सबसे लंबे रहे अपने सांसद दलपत सिंह परस्ते का इलाज यहां न करा सकी इस सत्य को जानने के बाद भी अगर यहां के विधायक जय सिंह मरावी पूर्व राजस्व मंत्री शायद कोई सुधार नहीं करवा पाए...। नहीं जानते हैं, तो यह और दुखद है किंतु 6 मासूमों की मौत राजनीत की रोटी कैसे से पकाई जाए इसका उदाहरण विधायक जय सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने करके बताया। जब मंत्रीगण अस्पताल का मुआयना करके लौट रहे थे, तो उन्हें ज्ञापन देकर कारवाही की बात भाजपा ने की। और ठंडे तरीके से नहीं, गरमा-गरम मलाई की तरह बना देने के लिए दोनों ही राजनीतिक दलों के नेताओं ने मौत की दावत को उड़ाना चाहा। बजाएं ठंडे और शांत मन से बैठकर समस्या के समाधान का स्थाई हल निकालने के....?
कि किसकी फोटो कितनी चर्चा के साथ अखबारों में छप सके.... ताकि वह अपने नेताओं के गद्दार, मूर्ख, कर्तव्यहीन कार्यकर्ता साबित ना हो... ?
अन्यथा स्वच्छ पर्यावरण वाले जिला अस्पताल को केबीटी बनाते वक्त उसके पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ गलियां तो छोड़ी गई होती.....?
बहरहाल 3 दिन के अंदर सुधार की बात के बाद आज हालात जस के तस हैं....? कोई सुधार प्रत्यक्ष नजर तो नहीं आता। स्टाफ की भर्ती को लेकर कोई आनन-फानन भर्तियां भी पदस्थापना भी नहीं हुए हैं। सफाई, स्वच्छता के लिए भी भगवान मालिक है।

बलि का बकरा बने, सीएमएचओ,सीएस

जो नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर बारिया अपना पूरा कार्यकाल अस्वच्छता और गंदगी के नेत्र विभाग के वातावरण से मुक्ति के लिए परेशान थे, उन्हें जिला अस्पताल की परेशानी का कबाड़ दे दिया गया...? जो उनके लिए चुनौती है। की कितनी स्वतंत्रता से वह क्या कुछ कर पाते हैं... ? सीएमएचओ ओम प्रकाश चौधरी के लिए पहली चुनौती तो यह है कि उनके कार्यालय के सामने से निकलने वाली गंदी नाली जो सड़क पर बहती है क्या उसे ठीक कर पाते हैं....? आदि आदि ।
ऐसे में 3 दिन के अंदर स्वास्थ्य मंत्री तुलसी जिला अस्पताल के आंगन में कितनी पवित्रता भर पाएंगे बहुत दूर की कौड़ी है.... शायद असंभव ।
क्योंकि पूत के पांव पालने में देखने के लिए जब स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री विजयलक्ष्मी साधो आदिवासी जिले के मेडिकल कॉलेज में पहुंची तो उन्हें गुस्सा इस बात पर आया कि प्रथम वर्ष के छात्रों को स्वस्थ वह स्वच्छ भोजन भी नसीब नहीं था..। छात्र भी भोजन की शिकायत मंत्री जी से किए। मंत्री जी ने तत्काल कार्यवाही भी की ।अब अमल कितना हुआ यह भगवान ही जानते होंगे। क्योंकि मंत्री के जाने के बाद जिला माफिया गिरी में व्यस्त हो जाता है। और समाचार ,अखबारों में कब्जा कर लेते हैं।
ऐसे में 6 मासूमों की बलिदान कितना कुछ जिला अस्पताल को दे पाएगी... यह वक्त बताएगा? अथवा वक्त कुछ भी ना बताएगा ।
सब चलता रहेगा "चलती का नाम गाड़ी" की तरह क्योंकि इसी में निजी चिकित्सालय का धंधा आश्रित है...
क्योंकि जिला अस्पताल एक बड़े बुकिंग सेंटर का अघोषित केंद्र भी है....
इसे जितना बदनाम करोगे लोग अस्पताल से उतनी ही आस्था खत्म करेंगे.. और निजी चिकित्सक की तरफ भागेंगे।
जीवन की आशा से...
क्योंकि 6 मासूमों की मौत का बाजार तब तक गर्म रहेगा और राजनीतिज्ञ अपनी भी रोटियां पकाते रहेंगे,
अन्यथा ईमानदारी की बात तो यह है कि प्रतिदिन इसका एक बुलेटिन जारी हो..
कि सुधार क्या किया आपने और समस्या क्या थी.... देखते हैं, क्या होता है .....?
इति आदिवासी क्षेत्रे...।

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