शनिवार, 11 जनवरी 2020


  सोन का संसार, यह मेरी अपनी कृति नहीं है देव शरण मिश्रा  लेखक के तपस्या का परिणाम है जिन्हें सामान्य रूप से मैं नहीं खोज पाया हूं फिर भी उनकी इस कृति को मैं प्रणाम करता हूं जिन्होंने इस कालजई रचना का काम किया है सोन के पानी का रंग कोई सामान्य पुस्तक नहीं क्योंकि इसका कॉपीराइट मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशक ने शायद कर रखा है इसलिए हूबहू इस पर काम करना तब तक कठिन है जब तक कि इस बात की गारंटी ना मिल जाए कि कोई व्यक्ति इस पर दावा नहीं करेगा खासतौर से मुआवजे का क्योंकि अपना उद्देश्य तो सोन नदी के जरिए और इस प्रकाशन के जरिए सोन के पानी रंग के जरिए पर्यावरण संरक्षण की चाहत है फिर भी हम यह दुस्साहस ब्लॉगर के जरिए करना चाहते हैं अगर किसी को आपत्ति हो तो उसका स्वागत है हम उससे सप्रेम कोई मध्य मार्ग निकाल लेंगे इस आशा से सोन के पानी का रंग आप सब को समर्पित है यह एक सतत चलने वाली सीरियल की तरह होगा क्योंकि अगर देव शरण मिश्रा जी ने इतनी तपस्या की तो हम इसे कम शब्दों में नहीं समझ पाएंगे इसके वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए गूगल मैप का सहारा भी लेते रहेंगे ताकि आप समझ सके सोनल का हमारे जीवन भारत के हृदय स्थल से निकलने वाले सोन नद और पृथ्वी में इसकी उपयोगिता का असर देख पाएंगे आइए चलते हैं सोन के साथ कभी चले थे जो शरण जी करीब 40 वर्ष पहले तो तुलना करते भी चलेंगे कि कितना परिवर्तन हुआ फिलहाल इसकी सीमा रेखा शहडोल मध्य प्रदेश के इर्द-गिर्द होगी( त्रिलोकीनाथ-12.01.20-1)















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