शुक्रवार, 7 जून 2019

नर्मदा उद्गम जल-स्रोत सूख रहा..,गायब होती महिलाएं..., --------( त्रिलोकी नाथ )-----------


नर्मदा उद्गम जल-स्रोत सूख रहा..,उठा मुद्दा

ईद मिलन के बाद, पुष्य नक्षत्र में  हुए  दो पत्रकार वार्ता।
क्या अधिकारियों  के स्थिरता का संदेश है.....?







गायब होती महिलाएं..., क्या रहेंगी प्राथमिकता.....?




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शहडोल में आज प्रेस कॉन्फ्रेंस का दिन रहा, नए अधिकारियों से मुलाकात का । पुलिस अधीक्षक अनिल सिंह जी 11:00 बजे शहडोल के प्रेस से मुलाकात की ,बहुत सहज और आत्मीयता भरी मुलाकात रही। औपचारिक मुलाकात परिचयात्मक ही रही लगे हाथ नए एसपी साहब को उनकी प्राथमिकताओं में शहडोल जिले में गुमशुदा हो चुकी महिलाओं को गुमा देने की पुलिस कार्यवाही मैं समीक्षा और प्राथमिक रूप से देखने की बात रखी गई।
 तो करीब 4:00 बजे आर. प्रजापति  शहडोल आयुक्त प्रेस से मुखातिब हुए, हालांकि यह दोनों प्रेस कॉन्फ्रेंस परिचयात्मक रहे। जब तक पत्रकार वार्ता के जरिए जारी क्रियात्मक संदेश जमीनी धरातल में ना देखा जाए..। तब तक यह औपचारिक पत्रकार वार्ता की मानी जानी चाहिए ।
 बहर हाल शहडोल कमिश्नर श्री प्रजापति की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक प्रश्न ने मन को छू लिया, प्रश्न पत्रकार कैलाश पांडे जी का था, जिन्होंने अमरकंटक में नर्मदा उद्गम स्थल पर जल स्रोत के सूखने का मुद्दा उठाया और उन्होंने लगे हाथ यह भी कहा कि जिसका आशय था की कमिश्नर  यदि कभी अमरकंटक जाएं  तो नर्मदा उद्गम स्थल पर जाएं तो जरूर और जमीनी धरातल के समाधान की ओर कोई ठोस कार्रवाई करें ।बात दिल को छूने की थी ।
हाल में.... जैसे कपड़े उतार कर रख दिए जाते हैं कुछ इस अंदाज में शहडोल आदिवासी संभाग का मुख्यालय में प्रशासनिक स्थानांतरण हुए ....यह एक अलग बात है की विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के बाद स्थानांतरण एक्सप्रेस लगातार चलती रही किंतु कमिशनर जैसे पद मैं अगर स्थिरता नहीं है जिसका सीधा हस्तक्षेप संभाग स्तर पर होता है और वह लगभग जो एक स्थाई मॉनिटर की तरह की होते हैं, यदि उनमें भी स्थिरता नहीं है तो फिर प्रशासन मे कुशलता का रंग कहां देखने को मिलेगा.....?  हाल में तो कमिश्नर इतनी जल्दी बदले कि उनका नाम याद रखना भी शायद जाकर बोर्ड में याद करने जैसा कहलाएगा। डीपी अहिरवार के बाद, रजनीश श्रीवास्तव फिर आरके जैन बाद में शोभित जैन और अब श्री प्रजापति जी के आने के बाद जल्दी बदलाव को लेकर बोरिंग जैसा वातावरण बन गया । जब तक नए कमिश्नर से कुछ कहें और आशा करें कि वह कुछ करेंगे... ?तब तक उनका स्थानांतरण आदेश अलग अलग राजनीतिक कारणों से हो जाता रहा.....।
राजनीतिक कारण चाहे जो भी रहे हो किंतु आईएएस अधिकारी को मामले में कथित तौर पर एक आचार संहिता का निर्माण हुआ है जिसमें कम से कम 2 वर्ष तक आईएएस अधिकारियों को  ना हटाने का  निर्णय किया गया था, जिसका पालन जिम्मेदार तत्वों को खासतौर से मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को हमेशा करना चाहिए। यदि लगता है की कमिश्नर जल्दी बदल देना चाहिए तो पारदर्शी तरीके से यह भी घोषित करना चाहिए कि कमिश्नर का अपराध क्या था......? अथवा किस स्तर पर अयोग्य थे..... अथवा उनकी गुणवत्ता ही उनका अपराध था ......?आदि आदि..।

 यदि हम कार्यपालिका के अधिकारियों पर भरोसा नहीं करेंगे तो उनसे अच्छे कार्य की उम्मीद करना स्वयं को धोखा देना जैसा  है....। कार्यपालिका के अधिकारी  किसी भी राजनीतिक दल के छोटे-भैया नेताओं की हैसियत के भी ना हो यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है.... विधायिका को कार्यपालिका का उपयोग लोकहित में और लोकतंत्र के हित में ही करना चाहिए। व्यक्तिगत तुष्टि के लिए कार्यपालिका को क्षतिग्रस्त करना कार्यपालिका की और अधिकारियों की विश्वसनीयता को हिला देता है..... । और यह बात जितनी जल्दी कांग्रेस के नेताओं को समझ आ जाए उतना बेहतर है ...।
और नहीं तो जो परंपरा आर एस एस की सहयोगी संगठन भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन मंत्री बैठाकर उनके अधीन कार्यपालिका को नियंत्रित करने का काम किया वह काम खुलेआम कांग्रेश को भी करना चाहिए....., इसमें कोई हर्ज नहीं है। भ्रष्टाचार एक पारदर्शी व्यवस्था की तरह ही चले इससे लोकतंत्र को चलने में और समझने में या कहना चाहिए करेपसन-अप्रूव्ड समाज सरलता से चल सकेगा... । वैसे भी बहुत सारे करप्शन सहज हो गए हैं ...,जैसे चिकित्सा का निजी करण अथवा शिक्षा का निजी कारण या फिर बीओटी के माध्यम से बनी खिचड़ी व्यवस्था से हम सब कहीं ना कहीं वर्तमान व्यवस्था को स्वीकार तो कर ही रहे हैं..... चाहे जवाब देकर या तानाशाही से लोकतंत्र चल ही रहा है ....?, 
तो फिर बिना लाग लपेट के पारदर्शी तरीके से प्रशासनिक अधिकारियों के जल्दी जल्दी होने वाले स्थानांतरण को भी जनता को समझने और जानने और उसे पचाने के रास्ते प्रदर्शित करने चाहिए अन्यथा जो भ्रम पैदा होता है उससे यह प्रश्न खड़ा हो जाता है...? 
"... यदि आपको अवसर मिले या आप अगर जा सके...?" जैसे प्रश्न खड़े होते हैं कि क्या अधिकारी को इतना समय राजनीतिज्ञ क्या देंगे...? कि वे अपने फील्ड के किसी चर्चित स्थान पर अगर वह विश्वव्यापी है तो वहां तक पहुंच पाएंगे या नेशन का तमाम बिंदु चरम बिंदु को पार कर जाती है किन ना कहो कुछ घंटे बाद स्थानांतरण आदेश आ जाए और हमें जानने का भी हक नहीं कि क्यों हुआ यह स्थानांतरण....? यह विचारणीय है शहडोल आदिवासी संभाग मुख्यालय है, थोड़ा इतिहास में जाएं तो पुष्पराजगढ़ क्षेत्र अपने आदिवासी पन के लिए आईएएस अधिकारियों का प्रशिक्षण कॉल के लिए सबसे अधिक अवसर देता था। अब क्या बदल गया है के अधिकारी चुटकी बजाते ही हटा दिए जाते हैं.... क्या कार्यपालिका के लोग विधायिका के गुलाम हैं या वे लोकतंत्र के लिए काम कर रहे हैं...... यह प्रश्न भी खड़ा होता है । 
बहराल पत्रकार वार्ता में एक प्रश्न का कीड़ा हमारे मन में घूमा कि अगर अमरकंटक शहडोल के बीच का बीओटी सड़क मार्ग 25 वर्ष की अनुबंध पर बना था और 15 वर्ष टोल टैक्स वसूला जाना था शेष 10 वर्ष ठेकेदार को प्रबंधन करना था ,सड़क की मरम्मत करना था... तो अचानक सड़कें क्यों खराब होने लगी....? क्या चुटकी बजाकर हटा देने वाली विधायिका और कार्यपालिका में बैठा हुआ व्यक्ति इस भ्रष्टाचार को पारदर्शी तरीके से आदिवासी संभाग के आदिवासी स्तर की सोच वाले पत्रकारों को और नागरिकों को बताएगा या फिर 10 वर्ष प्रबंधन न करके सड़क को लगातार बद से बदतर करते हुए शहडोल के नागरिकों या यात्रियों की हजारों की संख्या में दुर्घटनाओं के जरिए कई लोगों की मौतों का कारण बनेगा.....? हम सोचते हैं क्या यही है लोकतंत्र..? यह ठीक है कि कथित तौर पर रीवा शहडोल फोरलेन सड़क मार्ग का मुआवजा घोटाला दिख रहा है जिससे सड़क मार्ग बनने का संदेश भी है किन्तु इसका मतलब यह क्यों है कि 10 वर्ष के प्रबंधन का ठेका से ठेकेदार को मुक्त कर दिया गया है....? अथवा उसकी जमानत राशि मिल बांटकर कार्यपालिका और विधायिका के लोग खा पी रहे क्या...... ? यही है आदिवासी संभाग के बदकिस्मती का एक बड़ा दाग, ऐसी हमारी घटिया सोच है या यू कहना चाहिए घटिया स्तर का प्रश्न है... जिसे आदिवासी स्तर का मानकर नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए अथवा कोई परिणाम मूलक कार्यवाही भी होनी चाहिए .....? 
देखते हैं आखिर हम आदिवासी जिले के आदिवासी पत्रकार हैं सिर्फ इतना ही कर सकते हैं.. क्योंकि 15 वर्ष की भाजपा का लोकतंत्र , मानसिक रूप से इतना तो कुचल ही दिया है कि हमारी सहनशक्ति और न बोलने की ताकत बहुत बढ़ गई है..

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