गुरुवार, 13 जून 2019

विलुप्त हो गई नर्मदा ...



विलुप्त हो गई  
नर्मदा .............-1-






             सप्त कल्पक्षये क्षीणे,  न मृता तेन नर्मदा
                 नर्मदै कैव राजेंद्र परंतिष्ठेत्सरिव्दरा
( नर्मदा ही एक मात्र सात कल्पों से सदानीरा है पुराणों में नर्मदा को कल्पों तक सदानीरा रहने का उल्लेख  है)
 जो नरेंद्र मोदी सरकार और हिंदुत्व की शासन प्रणाली में विलुप्त हो गई है...., यही एक कड़वा सच है.
.................................................(  त्रिलोकीनाथ ).................

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट.., मध्य प्रदेश से लाई गई नर्मदा नदी के बीच में विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति सरदार वल्लभभाई पटेल को पता नहीं वहां से इतनी ऊंचाई पर होने के बाद भी उन्हें यह दिख रहा होगा या नहीं....?, की मध्य प्रदेश के अमरकंटक से उद्गम जन्म लेने वाली चिरकुमारी नर्मदा का उसकी बाल्यावस्था में  उसकी सांसो को प्रवाह देने वाली धमनियों में बोरिंग चलाकर कई अट्टालिका और नकली देवी देवताओं वाले संत महात्माओं ने धमनियों को  छिद्र-छिद्र कर दिया है. विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति को शायद इसीलिए वे इतने ऊंचे बनाए गए हैं कि वह सब को देख सकें और सब  उनको देखकर  गर्व कर सकें  किंतु हम  सिर्फ सिंधु नदी के इस बार  बसने वाले  पश्चिमी देशों के  हिंदू नहीं हैं,  हम  अपनी आंतरिक  अंतर चेतना में  गंगा ,यमुना और  नर्मदा वासी  नार्मदे भी हैं सिर्फ नर्मदा  के तटवासी , यदि  हमें सांप्रदायिक  कर दिया जाता है  तो भी हम  सोनांचल के हो जाते हैं  सोन नद के तटवासी  और यह सब  सरदार वल्लभ भाई पटेल की  मूर्ति को  दिखता होगा या नहीं ...? उनकी आंखों में यह तेज होगा या नहीं ..? गुजरात के पास पश्चिम देशों के  चौकीदार के रूप में खड़े हैं  किंतु  जब उन्होंने  अपने दूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब अमरकंटक भेजा रहा होगा तब भी उन्होंने देखने से शायद मना कर दिया होगा की नर्मदा अब विलुप्त होने वाले हैं.... क्या बताती भी सरदार को कि देश आजादी के बाद यही है विकास ..?.इसीलिए शायद नरेंद्र मोदी ने देखा भी नहीं होगा... पर पूछा भी नहीं होगा .., किसी से कि क्या नर्मदा खत्म हो सकती हैं या विलुप्त हो सकती हैं, या उनकी हत्या कोई कर भी रहा है...., शायद नहीं....., अगर उनकी चिंता होती... नर्मदा ..,अविरल होती...





मुझे ठीक से याद नहीं किंतु झिलमिल तरीके से मन में अभी भी स्पष्ट चित्र हैं की तब मैं पहली बार अपने जानते अमरकंटक गया था। एम्बेसडर कार का नंबर था एमपी18 -7197 अगर सही है ।यह कार शहडोल नगर में उंगली में गिनी जानी वाली कारों में एक थी ,जो लोकप्रिय नेता स्वoप्रेमजी निगम याने बाबा जी की थी। बाबाजी थे तो हिंदू, किंतु गोहपारू में एक मुस्लिम बाबा के दरगाह में उनकी गहरी आस्था थी, आज भी यह दरगाह बरकरार है। वहां के मुखिया थे बाबाजी। बाबाजी व मेरे पिताजी स्वo भोलाराम जी के ंंमैत्री पूर्ण पारिवारिक सम्बन्ध रहे।उनकी कार में मुझे भी साथ अमरकंटक ले गए ,वाक्य क्या था याद नहीं किंतु यह याद है कि जब कपिलधारा में कार की डिक्की से बिस्तर बंद और अटैची निकाली गई अटैची के अंदर लाल मिट्टी की धूल घुस चुकी थी क्योंकि सड़क अमरकंटक की पक्की नहीं थी..... धूल के गुबार में हम अमरकंटक पहुंचे थे। यह कोई 1975 76 की बात रही होगी ,मैं कोई 10-11 साल का रहा हूंगा मैंने पहली बार नर्मदा जी को देखा था।
 अब भयानक विकास हो गया है, कपिलधारा के ठीक पहले एक बेरियल लगता है और सैकड़ों की संख्या में चार पहिया वाहन भी वहां खड़े होते हैं, फिर पैदल जाना पड़ता है लगे हाथ टोल टैक्स वाले पैसा भी वसूलते हैं तब से अब तक बहुत विकास हो गया है।अमरकन्टक व नर्मंंदा में पक्के मकान बनने प्रारंभ हुए थे .....भू-जल निकास या ड्रिंल करके बोरिंग के जरिए पानी निकालना काल्पनिक घटना थी......; हरी-भरी पहाड़ी में नर्मदा की स्वतंत्रता और उसका वैभव अत्यंत मनोरम और दर्शनी रहा अभी कहानियों में लिखे जाने वाली कथा की तरह है, 
जिस पर कुछ दिन बाद लोग भरोसा नहीं करेंगे ...., कि कभी अमरकंटक या यू कहना चाहिए अभी लोग भरोसा नहीं करेंगे की अमरकंटक कभी ऐसा था.....! क्योंकि अब नर्मदा अपने उद्गम से कपिल धारा के बीच तक सूख चुकी है !,नर्मदा है ही नहीं कहना चाहिए विलुप्त हो गई है ।तो इस कथा को यहीं छोड़ते हैं ... । शहडोल जिला मुख्यालय है  कभी अमरकंटक का भी मुख्यालय शहडोल होता था। मुख्यालय मे एक मंदिर है , जिसमें एक कुआं है, शहडोल मे कथित तौर पर इस मंदिर के बगल में  जहां अभी अधिवक्ताकच्छ लगता है। कभी  रीवा राज्य के  महाराजा  का यह गेस्ट हाउस हुआ करता था,  शिकारगाह का।  पीपल के पेड़ के पास मंदिर के सामने  एकमात्र कुआं था जिस के पानी के भरोसे पूरे कलेक्ट्रेट के कर्मचारी/ चतुर्थ वर्ग कर्मचारी आश्रित थे ,बल्कि तहसील केे भी ।क्योंकि तब यह कुआं तहसील कार्यालय सोहागपुर का इकलौता कुआं था ।पानी इसलीए साफ सुथरा रहा क्योंकि पीपल के नीचे था। पर्याप्त ऑक्सीजन पानी को मीठा रखती थी ।इसी पानी से ऐतिहासिक शिव मंदिर के शिव का स्नानादि  रहा। यह सिलसिला तब तक बरकरार था जब तक कलेक्ट्रेट में खनिज भवन का निर्माण नहीं हुआ ।भवन निर्माण के लिए एक बोरिंग  हुआ और इस बोरिंग की जलधारा जो शायद कुआं  से मिलती थी,  बोरिंग होने के बाद खत्म हो गई ।अभी सूखा कुआ रह गया है। भगवान को भी पानी नसीब नहीं...,  हम आदमियों के सभ्यता विकास के कारण।
 यह पहला बोरिंग नहीं था शायद कलेक्टरेट केंपस का चौथा या पांचवा बोरिंग रहा होगा..., फिर भगवान के पानी के लिए  पुजारी ने  सब  भाजपा सरकार की  एक कथित अनशन  में आए  सांसद  ज्ञान सिंह  और उनके नेतृत्व में जयस्तभ स्थान पर बैठे  अन्य विधायक  के समक्ष  इस समस्या को रखा गया  कि भगवान को पानी उपलब्ध कराया जाए .... ज्ञान सिंह  आदिवासी थे, ऊपर से रामायण प्रेमी..,  भावुक हो गए और उन्होंने तत्काल संज्ञान लेते हुये, उपलब्ध  सभी विधायकों,  जिला भाजपा अध्यक्ष , नगर पालिका अध्यक्ष  आदि से  इस आवेदन पर भी हस्ताक्षर कराए .., जो पुजारी सुरेन्द्रद्विबेदी जी ने ज्ञान सिंह को दिया। ताकि एक बोरिंग हो सके जो मंदिर में भगवान के लिए और भगवान रूपी प्रचारित जनता याने नेताओं के भगवन "जनता-जनार्दन" के लिए, पक्षकारों के लिए जो कलेक्ट्रेट में आकर भटकते थे....प्यास लगने पर। सांसद जी  को कई बार याद दिलाया गया,  उन्होंने कहा भी  कि  जल्द ही  पानी की व्यवस्था हो जाएगी ......, अब सांसद जी की टिकट भी कट गई..,  और वह चिट्ठी भी  शायद कहीं गुम हो गई ....संसद के  गलियारे में  या फिर शहडोल जिला योजना समिति के  जंगल में.....,?
 बहराल  यह भी एक कथा है जब  अमरकंटक में  1986 के आसपास शायद पहली बार साडा का निर्माण हुआ, हुडको के लोन के सहयोग से तत्कालीन कांग्रेस की गवर्नमेंट  बराती दादर में मकान बनानेे का काम प्रारंभ किया। योजना अनुसार हमनेे भी एक मकान का आवेदन दिया क्योंकि  अमरकंटक में  सुकून और तपस्या  की साधना  तब हमारी कल्पना थी..., अभी तक मकान 36- 37 साल बाद भी आवंटन नहीं  हुआ है ...,तब बन चुके मकान मैं पानी की समस्या थी ,क्योंकि नर्मदा जल का पानी ही सप्लाई करना था ..फिर अन्य कारण बनते गए इस सरकारी योजना.. में ।अब बहुत सारे पानी के अभाव में आवंटित ना होने का कारण रखने वाली बराती दादर की यह योजना जिस बात पर प्राय: फेल हो गई, उस पानी की बोरिंग के लिए संत और महात्मा और नेता लोग पूरे अमरकंटक को जगह-जगह ड्रिल करके नष्ट कर दिए और पानी निकाल कर अपनी अट्टालिका की वासना को पूर्ति कर रहे हैं ....? 



शेस भाग .... 2 मे-






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