मंगलवार, 18 जून 2019

प्रोपेगेंडा-प्रतियोगिता की छमाही परीक्षा भाजपा पास ...........( त्रिलोकीनाथ)............

 प्रोपेगेंडा-प्रतियोगिता की छमाही परीक्षा,

 भाजपा पास 
भाजपा कांग्रेस की पत्रकार वार्ता


...........( त्रिलोकीनाथ)............

यह न्यू इंडिया, नए हिसाब की राजनीति है ।राजनीति एक दुकान है..., दुकान को माल कैसा भी बेचें ,फर्नीचर और आकर्षण से सजा बाजार रहना चाहिए । कुछ इसी अंदाज में शहडोल की राजनीति अपना काम कर रही है और  राजनीति दुकान चलाने का प्रदर्शन कर रही है। इसीलिए राज्य की कांग्रेस सरकार और केंद्र की भाजपा  के प्रतिनिधि जिला स्तर पर छमाही परीक्षा का पेपर देने के लिए मीडिया के सामने आए ।
पेपर था, प्रोपेगेंडा-प्रतियोगिता, कौन कितना अच्छा प्रदर्शन करता है इस बात पर दबाव था।
 कल मैं एक बिजली पंचायत में था और जो बातें थी वह तो थी ही कि चर्चा में यह बात निकल कर पाई कि कांग्रेस के प्रवक्ता का प्रदर्शन शहडोल में अच्छा नहीं रहा। उन्होंने तैयारी नहीं की थी। और कांग्रेस ने पेपर देने के लिए भेज दिया। किंतु संभाग में ही एक अन्य स्थान पर प्रवक्ता ने अच्छी तैयारी की थी। वे होशियार थे और पढ़े लिखे हुए अनुभवी  रहा, इसलिए प्रोपेगंडा में माहिर थे । 
हकीकत तो आप भी जानते हैं कि स्वयं के बारे में कितना झूठ और पाखंड प्रकट किया जाए कि वह अंततः सच बनकर लोगों के "माइंड-सेट" का काम करता है वास्तविकता का इससे कोई नाता नहीं रहता। वास्तविकता अपने हिसाब से काम करती है ;प्रोपेगंडा अपने हिसाब से काम करता है।
 बहरहाल  प्रदेश का आदिवासी संभाग शहडोल में राजनीति की दुकान चलाने वाली दोनों ही पार्टियां अपने प्रोपेगंडा प्रदर्शन में जितनी भी बातों का उल्लेख किया उसमें हवा हवाई चर्चाएं रहीं। शहडोल में कांग्रेश के प्रवक्ता से अपेक्षा रखते हुए पत्रकारों में जो चर्चा की उससे उन के तोते उड़ गए। तो भारतीय जनता पार्टी ने जो पत्रकार वार्ता की और जितना प्रदर्शन किया उसे मीडिया के लोगों के प्रश्नों के तोते उड़ गए । की अब बचा क्या ...? 
यही हाल संभाग में मूल मुद्दों के मामले को लेकर चाहे अनूपपुर हो या उमरिया सब के तोते उड़ाते देखे गए। प्रोपेगंडा प्रतियोगिता में प्रयास इस बात का था की छमाही परीक्षा पास कौन करता है.....?  स्थानीय मुद्दों पर ना नेताओं ने अपनी बात कहनी चाही और न पत्रकारों ने प्रश्न पूछे... इसलिए कि पत्रकार भी जानता है सच यह है कि यह एक प्रोपेगंडा प्रतियोगिता है। और वह भी इस दुकान में आकर आनंद लेता है। यह एक अलग बात है लोकतंत्र के साथ बड़ी धोखाधड़ी है कर्तव्यनिष्ठा के खिलाफ एक बड़ी गद्दारी है।
 और हो भी क्यों ना...,  जब अन्ना हजारे देश की आजादी के बाद का सबसे बड़ा सफल आंदोलन चला रहे थे भीड़ की दृष्टि से और मुद्दों के दृष्टिकोण से भी, लोकपाल बनाने को लेकर। तब कहीं यह छोटी सी बात प्रकासित दिखी, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम की जरिए कि इस लोकपाल बनने से होगा क्या..?, कुछ और कमरों में शिकायतें भर जाएंगे या कुछ नए कमरे शिकायतों से भरे मिलेंगे ......?
झूठ और पाखंड  खूब बोलो,  जोर से बोलो  और चिल्लाकर बोलो....  यही ताकत है , अवधारणा  से; अब जिस प्रकार की राजनीति चल रही है जिस प्रकार का  प्रोपेगंडा-प्रतियोगिता को नेताओं ने स्वीकार कर लिया है और सिर्फ ऊपर के निर्देशों की जी हुजूरी करते दिख रहे हैं, धरातल और जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ते हैं.... या उस पर चर्चा नहीं करना चाहते .....उससे तो यही लगता है कि अब्दुल कलाम साहब की सोच बिल्कुल परफेक्ट रही। 
बहरहाल भाजपा इस प्रोपेगंडा में प्रदर्शन में सफल रही दिखती है ।उन्होंने बकायदा अपनी बातें लिखकर प्रस्तुत की और उतनी ही ताकत से उसे बोलकर बताएं। शहडोल आदिवासी संभाग में ढेर सारी स्थानीय समस्याएं हैं...,खनिज माफिया अपने पूर्णानंद पर है उस पर नियंत्रण प्राय: फेल है.. बी ओ टी बेस पर  निर्मित  रीवा-अमरकंटक  सड़क मार्ग बद से बदतर हालात में होता जा रहा है और खुलेआम जंगलों में घुसकर खनिज माफिया खनिज और वन संपदा की मनमानी लूट मचाए है इन सब से पर्यावरण संरक्षण बर्बाद हो रहा है जिसका परिणाम बड़ा स्पष्ट और सामने है की मध्य प्रदेश की हृदय रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी का उद्गम स्थल पर नदी स्रोत की धाराएं टूट रही हैं याने नर्मदा नदी इस गर्मी में तो विलुप्त ही हो गई .., अमरकंटक में।  प्रदेश में कैसे विलुप्त होगी यह एक अलग बात है......? भ्रष्टाचार और नैतिकता इन पर कोई चर्चा जरूरी नहीं है... क्योंकि जिले की सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं प्राइवेट अस्पतालों में दम तोड़ती नजर आती हैं। बचा खुचा शासकीय नीतियों में  जरिए बीमा-कारोबार प्राइवेट अस्पतालों के जलजले कायम हैं, डॉक्टरों की फीस और उनकी सेवा का नियंत्रण  नहीं है...?, अन्यथा घर द्वार सब गिरवी कर ले ..।संवेदना मर रही है, क्योंकि अगर राजनीति दुकान है तो उससे प्रेरित सभी सेवाएं पूरी तरह से दुकानदारी है ....भलाई करोड़ों अरबों रुपए की सरकारी स्कूले बन गई हैं किंतु किसी को भरोसा नहीं.., वे प्राइवेट स्कूल में कई गुना फीस देकर और स्कूल संचालकों से अपमानित होते हुए भी गुलामों जैसी जिंदगी जीने के लिए बच्चे और अभिभावक दोनों तैयार हो रहे हैं ..? यह एक प्रकार का माइंडसेट है ।
वर्तमान राजनीति और राजनीतिज्ञों ने इस प्रकार का माइंड सेट करने का काम कोई एक दिन में नहीं किया इसी प्रकार की प्रोपेगंडा प्रतियोगिता पैदा करके लोगों में भ्रम पैदा करने का काम किया ।वास्तविक मुद्दों पर ना तो चुनाव हुए और ना ही अब कोई बात करने को तैयार है, चूंकी प्रश्नपत्र ही नहीं है उस विषय का, तो पत्रकार भी इस पर कोई प्रश्न नहीं करना चाहते ,जो करना भी चाहते हैं उन्हें लगता है वह नक्कारखाने में तूती की आवाज बंद कर ना रह जाए....
 क्योंकि व्यवस्था ने प्रश्नों को पैर की जूती की नोक पर रखना सीख लिया है ।अनूपपुर जिले के पत्रकार वार्ता में ना तो भाजपा या कांग्रेश अथवा वहां की मीडिया ने नर्मदा उद्गम के सूख जाने पर कोई बहस करनी चाहिए अथवा कोई प्रश्न या प्रश्नों की बौछार इन नेताओं के सामने की। यह नेता भी चाय और समोसा और अगर देर शाम हो गई तो शाम के रंग में अंधियारे मैं प्रश्नों को घुमा देने का काम हुआ या फिर पूरा सिस्टम ही कायर अथवा कमजोर हो गया है। वह मूल मुद्दों पर चर्चा ही नहीं करता, प्रोपेगंडा पर विश्वास करता है, यही हमारा माइंडसेट है... 
कांग्रेश के लिए माइंडसेट की दुकान इसलिए खतरनाक है क्योंकि भाजपा ने देश का जो माइंड सेट किया उसके परिणाम तमाम समस्याओं और भ्रष्टाचार व अनैतिकता के बावजूद पूरी सफलता के साथ प्रोपेगेंडा की पॉलिटिक्स पूरी ताकत के साथ जीत गई ।यह बात कांग्रेस भी जानती है कि 3 राज्यों में जनता की सोच.., व्यवस्था के खिलाफ एक बड़े मतदान का प्रयास था और यह बड़ा मतदान अपनी पूरी ताकत से जब सामने आया तो छत्तीसगढ़ में तख्तापलट कर दिया और मध्यप्रदेश और राजस्थान में चेतावनी देकर कांग्रेस को बैठाया...। किंतु कांग्रेश है  कि सुधरने को तैयार नहीं है... वह उन्हीं बातों को आगे बढ़ा रही है या विश्वास कर रही है जो भाजपा करती आई है... भाजपा में अच्छाई के खिलाफ सिर्फ यह बात है कांग्रेश अवसर का लाभ उठाते हुए जमीनी रूप से मजबूत होने के लिए कोई काम नहीं कर रही है.... ना हुई उसकी नीतियां कार्यकर्ताओं को मजबूत करने पर विश्वास करती दिखती हैं ।और ना ही हर कड़वे सच का सामना करने का साहस दिखाते हैं। क्या कांग्रेसी आंतरिक रूप से भयभीत हो चलें  है...? या फिर अवसर मिले ना मिले...., जितनी गुट बंदी या कबीलाई राजनीति करके लाभ उठाया जा सके अवसर का लाभ उठा ले, फिर तो डूबना ही है... या फिर प्रोपेगंडा सफल हो गया तो यह है भारतीय राजनीति की हवा पर चलने का प्रयास होगा ।जमीनी धरातल से मुंह मोड़ने का एक प्रमाणपत्र भी है ।बहरहाल जब तक आदिवासी संभाग में पर्यावरण संरक्षण को लेकर भाजपा या कांग्रेश अथवा चतुर्थ स्तंभ जो भी बचा खुचा है वह उठे प्रश्नों पर चर्चा नहीं कर रहा है तब तक वह एक प्रोपेगंडा-सेट, "माइंडसेट" डिबेट पर  सिर्फ  प्रतियोगिता करता नजर आता है...। 
 






 



हम सबको सच  स्वीकार करना चाहिए और कैसे पर्यावरण संरक्षण के लिए हर छोटे छोटे कदम उठाए जाने चाहिए इस पर इमानदारी से काम करना चाहिए और यह फिलहाल होता नहीं दिखता.....?
 यही है लोकतंत्र की छमाही पत्रकार वार्ता का कम से कम आदिवासी संभाग शहडोल में कड़वा सच है ।
फिलहाल आदिवासी संभाग शहडोल  की छमाही परीक्षा "प्रोपेगंडा-प्रतियोगिता" में भारतीय जनता पार्टी पास हो गई दिखती है.. बधाई हो..!

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