शनिवार, 18 मई 2019

इति आदिवासी क्षेत्रे....शुद्ध मनसा की चाहत में मरता है तालाब..... ( त्रिलोकीनाथ )

इति आदिवासी क्षेत्रे.... 
अमरकंटक कार्यशाला और 
जल संरक्षण






शुद्ध मनसा की चाहत में 
मरता है तालाब.....

( त्रिलोकीनाथ )
इस 20 साल पहले जब "विजयआश्रम" अपने अख़बार को जिला पंचायत शहडोल से "ग्रामीण-पत्रकारिता" के लिए प्रयोग कर रहा था, उस समय शैलेश पाठक मुख्य कार्यपालन अधिकारी शहडोल हुआ करते थे .....शायद मई का महीना बीत गया था.., जून आ गया था । एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए तालाब संरक्षण और और  नए तालाबों  के बारे में  शहडोल अनूपपुर और उमरिया  के कार्यों  की जानकारी दी गई।  क्योंकि पारंपरिक रूप से माना जाता है कि 15 जून के आसपास मानसून आ जाता है .. ऐसे करते कराते  हो हल्ला हुआ ,लोकज्ञान, के जरिए  यह सब  भ्रष्टाचार के संरक्षण के लिए और पैसे का अपव्यय  का प्रयोग है......  शायद आईएएस अधिकारियों ने जल्दी समझ लिया  और  फिर प्रेस विज्ञप्ति आई
  और तालाब  निर्माण गहरीकरण आदि के काम रोक दिए गए।  यही काम  मार्च, 
फरवरी  में यदि  प्रस्तावित होते  तो शायद सरकारी नजरिए से कुछ हो सकता था .... मौसम  को देखते हुए  बरसात की शुरूआत में  ऐसे निर्माण कार्यों का का मतलब सिर्फ खानापूर्ति की तरह होता है....!
 बहरहाल देर से ही सही और इस बार तो चुनावी चक्कर ने पहले विधानसभा बाद में लोकसभा के चुनाव के इलेक्शन अर्जेंट के कारण भी पर्यावरण संरक्षण के संबंध में कमिश्नर शहडोल का प्रयास जून से काफी पहले हो गया है.., इसलिए अवसर अभी गए नहीं हैं कहा जा सकता है... किंतु कितनी इमानदारी से और कर्तव्यनिष्ठा से सरकारी अमला निर्देशों पर अमल करता है, यह उस पर निर्भर करता है ।

"....कमिश्नर के दो पीछे कमिश्नर............."
तालाबों के संबंध में आयुक्त शोभित जैन के निर्देश के पूर्व एक कदम आगे बढ़कर तत्कालीन कमिश्नर हीरालाल त्रिवेदी ने बड़ा कदम उठाया था.... उन्होंने कड़ी कार्यवाही करते हुए 1959 के पहले के सभी दर्ज तालाबों को संरक्षित करने हेतु भू अभिलेख में तालाब दर्ज करने का निर्देश दिया था । हालांकि वह भी जल्दबाजी में उठाया गया कदम लगता रहा... इसलिए कई नागरिक न्यायालय की शरण में गए और अपने अपने हिसाब से राहत पाई ।फिर भी काफी तालाब बचाने के लिए उन्होंने एक अच्छा प्रयास किया.... कमिश्नर श्री जैन की कार्यवाही भी इसी दिशा का एक अच्छा प्रयास है। 2009 में तत्कालीन कमिश्नर अरुण तिवारी के सानिध्य में एक बैठक मोहनराम तालाब संरक्षण के संबंध में हुई किंतु आज 10 साल बाद जो भी प्रगति हुई उससे परिणाम यह देखने को मिला कि मोहनराम तालाब तीन-चार करोड रुपए खर्च करने के बाद सिर्फ भ्रष्टाचार का प्रमाण पत्र बन कर सामने आया है।
 यह एक अत्यधिक दुखद "प्रशासनिक-ऐतिहासिक-दुर्घटना" है क्या अद्यतन प्रशासन इस अनुभव से कुछ सीखना चाहेगा अथवा नए निर्देशों में सिर्फ खानापूर्ति और औपचारिकता की पहल ही प्रशासनिक विकास का नजरिया होगा.... यह भी देखने लायक और अध्ययन करने लायक विषय होगा ।अमरकंटक कार्यशाला 17 मई के बाद, उंगली में गिने तो महज 28 दिन मानसून आने के रह गए हैं ....,कहने को एक पल भी काफी है यदि मनसा अच्छी हो...? किंतु 23 मई को मत गणना की प्रक्रिया होगी 25 तक जश्न होगा बाकी बचे 20 दिन...; 20 दिन में शायद तालाबों का सीमांकन भी हो पाए..... इसलिए बेहतर होगा कि तालाबों की खोज जारी रहे... जो अद्यतन तालाब दिख रहे हैं उन पर काम तत्काल हो... मैं अपनी मानूं चुकी तालाब पर जो भी थोड़ा बहुत हमने सीखा है काम करके... तो मोहनराम तालाब को आईकॉन मानकर और वर्क मॉडल के रूप में देख कर काम करना सहज होगा कि एक खराब तालाब और उससे जुटे हुए एक अच्छे तालाब की संभावना को कैसे क्रियान्वित किया जा सकता है.... यदि अमरकंटक कार्यशाला के सफल क्रियान्वयन और उच्चस्तरीय विद्वानों के मंथन से निष्कर्ष तक मोहनराम तालाब 20 दिनों के अंदर अपने वास्तविक स्वरूप में आ जाए तो मानना चाहिए कि अमरकंटक कार्यशाला पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य को पा सका ...।
पुराणों और बात करें तो मोहनराम तालाब ही समय की कसावट में "बीजमंत्र" है यदि इस छोटे से सफलता मिली तो माने... ।और यही मेरी छोटी-समझ से उसका प्रमाण पत्र होगा क्योंकि मोहनराम तालाब करीब 60% बना हुआ है 40% शुद्ध मनसा ,कर्तव्य निष्ठा और नागरिकों के प्रति संवेदना तथा क्षेत्रीय हित के संरक्षण का प्रयास होगा।
 क्या नागरिक और प्रशासन तथा कानून..., लगे हाथ नेताओं को भी जोड़ लीजिए कुछ कर पाने में सक्षम है.....? 
नहीं तो..... मानसून को तो आना ही है , वह सब मनसा को पानी में बहाकर ले जाएगा..... किसी हाथ में रखे हुए बर्फ  के सिल्ली की तरह..... हार्दिक शुभकामनाएं... प्रशासन की मंशा के लिए।

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