शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

वीर जवानों का कैसे करें , चरण वंदन ? : त्रिलोकी नाथ

"कहि न जाई का कहिए .........................................?"
आतंकवादी हमले पर नरसंहार की त्रासदी .....................
वीर जवानों का कैसे करें ,
चरण वंदन.......?
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======= त्रिलोकीनाथ =========
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एक भारतीय आत्मा के नाम से विख्यात कवि माखनलाल चतुर्वेदी कि वह अमर रचना जिसमें उन्होंने हमारी भावनाओं को समाहित किया कि

"... मुझे तोड़ लेना वनमाली 
           उस पथ पर देना तुम फेक ,
     मातृभूमि को शीश चढ़ाने
          जिस पथ जाएं वीर अनेक ...."

हम लोग शायद वह अभागे फूल भी नहीं है, जिन्हें कोई वनमाली तोड़कर "पुलवामा" की गलियों में फेंक दे.. हम तो लोकतंत्र की गंदी राजनीति के कीड़े मकोड़े बनकर प्रदूषण के वातावरण में जी रहे हैं
 कैसा दुर्भाग्य है.., हा ,यह कैसा दुर्भाग्य है....,?

श्रीनगर के पास पुलवामा मैं सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकवादी हमले पर हुए नरसंहार की त्रासदी को अभिव्यक्ति करने में मन और मस्तिष्क शायद जवाब दे देते हैं ....?
क्या आजादी के 70 साल के बाद राजनीतिक अपरिपक्वता इस प्रकार की परिणीति लेकर आई है कि वह आंतरिक व्यवस्था में सैनिक गतिविधियों में  इस प्रकार हस्तक्षेप का कारण बनी कि हमें अंततः हाल की सबसे बड़ी त्रासदी देखने को मिली। जिसने भारत की आत्मा को हिला दिया है। यह ठीक है कि सक्षम भारत हर प्रकार का जवाब दे सकता है किंतु किसी भी जवाब की तैयारी की कीमत हमारे देश के बहादुर जवानों के खून से या हत्या से रंगी होगी..? यह किस प्रकार का व्यवस्था है ...?


आज तक टीवी चैनल के एक बहस में कर्नल बख्शी के रहस्य उद्घाटन ने राजनीतिज्ञों के अविवेकपूर्ण पूर्ण हस्तक्षेप से निर्मित नियमित नेशनल हाईवे की सैन्य मॉनिटरिंग /जांच कार्यवाही में बाधा डालने वाली किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप का परिणाम इतना भयानक होगा यह कल्पना करने से ही मन कांप जाता है । कर्नल बख्शी की माने तो नियमित जांच की प्रक्रिया को ढीला करने के कारण ही उक्त सड़क में कार द्वारा आतंकवादी हमले को अंजाम दिया गया है, यदि राजनीतिक दल सैनिकों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप नहीं किए होते तो शायद यह आतंकवादी कार सीआरपीएफ में हमले का कारण नहीं बनती...?; इस मूल बिंदु का समावेश यदि इस आतंकवादी हमले का निर्णायक बिंदु नहीं बनता है तो यह एक बड़ी चूक होगी।
 और सच बात तो यह है इसके लिए जिम्मेदार चाहे वह कोई भी हो , किसी भी स्तर का हो, या लोकतंत्र के किसी भी स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाला हो ।उसे सैनिक कोर्ट मार्शल में क्यों नहीं खड़ा होना चाहिए...? यदि किसी सैनिक की किसी छोटी छोटी  त्रुटि के लिए भी उसे दंडित किया जाता है, तो जो भी राजनीतिज्ञ अथवा व्यक्ति इसमें शामिल है उन्हें क्यों ना कोर्ट मार्शल कर कार्यवाही की जाए...?
 हमारे वीर जवानों के लिए यही एक बड़ी श्रद्धांजलि होगी ..?
  ताकि भविष्य में आस्तीन के सांपों का फन कुचला जा सके ।यह मैं इसलिए भी सोच पा रहा हूं क्योंकि आतंकवादी अथवा दुश्मन देश साजिश करेंगे ही, उनका निर्माण ही आतंकवादी घटनाओं को संरक्षण दे कर अपने धंधे को बढ़ाना है। यह तो हमारी असफलता है कि उनके धंधे में जो दुनिया भर में चल रहा है हम फंस गए हैं। हमारी कार्यप्रणाली में आज आस्तीनो  के सांपों ने हमारे वीर जवानों को डस लिया है और यह भी सही है कि जिस प्रकार का दबाव या तो जम्मू कश्मीर में अथवा पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संरक्षण देने वाले तत्वों को मिलना चाहिए खासतौर से उन स्लीपर-सेल जो कि नेताओं और समाजसेवीओं का नकाब पहनकर जम्मू कश्मीर मेंसरकारी संरक्षण पर ही जी रहे हैं उन्हें भी जवाब देह ठहराया जाना चाहिए। 
 यह आश्चर्य लगता है कि भारत की राजनीतिज्ञ  जम्मू कश्मीर से निकाले गए गैर मुस्लिम निवासियों के पुनर्वास हेतु किसी भी प्रकार का कोई पहल नहीं कर पाए हैं..? और सिर्फ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति की सहारे देश की राजनीति में वोट बैंक को तलाश करते रहे.., यह उसी प्रकार का हथियार बन गया है जैसे कि हमारे महान नेताओं ने आरक्षण को आजादी के बाद दलित उत्थान का विशेष अवसर देखकर काम किया और बाद में आरक्षण से पैदा जातिवाद का वोट बैंक का इतना बड़ा कारोबार बन गया की जो बड़ी समस्या के रूप में स्थापित हो गया। शायद यह भी एक प्रकार का आरक्षण ही था जो जम्मू कश्मीर की पीडीपी के नेताओं द्वारा नेशनल हाईवे में नियमित मार्ग जांच का बाधक बना और जिसकी कीमत हमारे वीर जवानों को जान देकर चुकानी पड़ी...।
   निश्चित तौर पर हमारे सैनिकों और जवानों की कीमत इतनी सस्ती व बाजारीकरण नहीं होनी चाहिए जितना की राजनीतिज्ञों ने बना दिया है..?
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य दल के नेता कम से कम इस बात के लिए एकमत हुए कि हमारे सैनिकों को पहली बार इस बात की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है कि वे इस आतंकवादी हमले का समुचित जवाब दें,  यह अवसर हमारे सैनिकों के निर्णय से सुरक्षित होगा कि देश की सुरक्षा किस प्रकार से की जाए ..?देश की राष्ट्रीयता और एकता तथा उसकी मजबूती के लिए किसी भी प्रकार का निर्णय शक्तिशाली होगा ।फिर चाहे उसकी कीमत किसी भी प्रकार की क्यों ना चुकानी पड़े। 
 यह देश गांधी के सपनों का देश है जहां अहिंसा सर्वोपरि है और महात्मा गांधी गीता के उपदेश को तथा महाभारत की लड़ाई को अहिंसा का बड़ा संदेश मानते थे उस में छुपी हुई ताकत को समझने और देखने का अवसर निश्चित रूप मे हमें मिलेगा। क्योंकि राजनीतिज्ञों ने यह अवसर शायद खो दिया....।







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