आखिर क्या है 14 फरवरी की इन वायरल तस्वीरो का सच ?
14 फरवरी आते ही लोगो के स्टेटस में कुछ ऐसी तस्वीरें फ़ैल जाती है और व्हाट्सप्प फेसबुक पे इन्ही का राज़ रहता है , विजय आश्रम की टीम ने इन वायरल तस्वीरों के नतीजे में पहुँचने की कोशिश की तो पता चला इन तस्वीरों का तथ्यों से कोई लेना देना नहीं है। नेट पे पड़ताल करने के बाद यह नतीजा आया की यह खबर झूठी है की शहीद भगत सिंह को फांसी १४ फरवरी को दी गई। शहीद भगत सिंह की फांसी से जुडी सारी बात विजय आश्रम ग्रुप लाया है आपके सामने।
|
वायरल तस्वीर |
26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया।
|
भगत सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र |
7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी, 1931 को अपील दायर की कि वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा माफ कर दें। भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तर्को के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की। यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्यों कि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए। लेकिन वाइसराय जनरल द्वारा लिया गया निर्णय को अंतिम फैसला माना गया तथा यह तय कर दिया गया कि २३मार्च 1931 को इन्हें फांसी की सजा दी जाएगी। तथा 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
- मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।
- मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥
- इंटरनेट का एक फायदा यह भी है की कोई भी अफवाह फ़ैलाने में बड़ी मुश्किल होति है क्यूंकि इंटरनेट के माध्यम से खबरे पुष्ट होजाती है , और नुक्सान भी यही की कोई भी अफवाह फैलाना बहुत आसान होगया है क्यूंकि मानव दिमाग ये मन चूका होता है की इंटरनेट पे कोई भी चीज़ ट्रेंडिंग है तो वो सच ही होगा।
- तो हमारी पड़ताल में निकलती है यह वायरल तस्वीर फेक |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें